'मैगी खाने के बाद वो फोटोग्राफी कर रहे थे तभी अचानक...' 11 पर्यटकों की जान बचाने वाले नजाकत ने बताई पहलगाम की आंखों-देखी

नजाकत अहमद शाह छत्तीसगढ़ से आए पर्यटकों को बचाने की खातिर वह अपने चचेरे भाई आदिल हुसैन शाह के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए. आदिल हुसैन की पर्यटकों को बचाते समय आतंकियों की गोली का शिकार हो गए. 

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नजाकत अहमद शाह (बाएं) और छत्तीसगढ़ से आए पर्यटकों की तस्वीर नजाकत अहमद शाह (बाएं) और छत्तीसगढ़ से आए पर्यटकों की तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST

पहलगाम में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई. इस हमले के बाद देशभर के लोगों में गुस्सा है और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं. आतंकियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग की जा रही है. 

इन सबके बीच आतंकी हमले में कुछ लोग बाल-बाल भी बचे हैं, जिन्होंने मौत को करीब से देखा.ऐसे ही 11 लोग छत्तीसगढ़ के हैं जो मौत के उस खौफनाक मंजर से निकलकर सुरक्षित बाहर आए. इन लोगों को बचाने वाला कोई और नहीं बल्कि पहलगाम का एक स्थानीय निवासी और टूरिस्ट गाइड नजाकत अहमद शाह था.

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नजाकत ने बताया कैसे की मदद
पहलगाम के हलवान गनीगुंड  में रहने वाले नजाकत अहमद शाह ने कहा, 'हमारे पहलगाम में ये नहीं होना चाहिए था, बदकिस्मती से ये हो गया. मैं खुद एक टूरिस्ट गाइड हूं. विंटर में 3 महीने में छत्तीसगढ़ में जाकर शॉल का काम करता हूं. कुछ लोग यहां छत्तीसगढ़ से घूमने आए थे, जिसमें 4 कपल थे, यानि 8 लोग थे और तीन बच्चे थे. कुल मिलाकर 11 लोग थे. हम उन्हें जम्मू से दो इनोवा से यहां लाए. उन्हें कश्मीर में घुमाया, गुलमर्ग में घुमाया, सोनमर्ग में घुमाया और फिर लास्ट में पहलगाम इसलिए रखा था, क्योंकि उन्हें अपने घर में लाना था, मेहमाननवाजी करनी थी...रात को लेकर हम उन्हें पहलागाम आए और होटल एक्सीलेंट में रूके.'

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नजाकत आगे बताते हैं, 'सुबह हम मिनी स्विटजरलैंड के लिए निकले. वो वहां घूमे. ग्राउंड में उन्होंने मैगी खाई और फिर फोटोग्राफी हो रही थी. करीब डेढ़ के बाद दो बजे के करीब मैं उनके पास गया और बोला कि चलो अब चलते हैं लेट हो गए हैं. उन्होंने (लकी) कहा कि इतनी दूर आए हैं थोड़ा फोटोग्राफी कर लें. इसी दौरान फायर हुआ. लकी ने कहा ये क्या हो रहा है, मैंने कहा शायद पटाखे फूट रहे होंगे. इसके बाद फायरिंग बढ़ने लगी. इसी दौरान वहां भीड़ जमीन पर लेटने लगी. मैं भी लकी का बेटा और बेटी को लेकर जमीन पर लेट गया. जब फायरिंग बढ़ने लगी तो मैं किसी तरह से लकी के बेटे और टीटू की बेटी को लेकर निकल गया.साथ में बांकी साथियों को लेकर भी भाग गया. भागते-भागते मैं पहलगाम पहुंच गया और सबको होटल में पहुंचा दिया. इसके बाद फिर मैं उन दोनों की वाइफ जो पीछे रह गई थी उनको भी ले आया.सही सलामत उनको पहुंचा दिया और आज सुबह उनको श्रीनगर छोड़ आया.'

इंसानियत का हुआ कत्ल- नजाकत
नजाकत बताते हैं कि उस समय बहुत खौफनाक मंजर था. उन्होंने कहा, 'मैंने भी अपना मोबाइल निकाला और सोचा कि लास्ट समय में अपनी बेटियों से बात कर लूं तो बदकिस्मती से मेरे फोन में नेटवर्क नहीं था. वहां पर चीख-पुकार मची थी. इस घटना से यहां टूरिज्म बहुत प्रभावित होगा. हमारा जो कजन ब्रदर था आदिल हुसैन था, वो घोड़ा चलाने के साथ टूरिस्ट गाइड था. बांकी हमारे आधे भाई लोग होटल चलाते हैं कुछ मैगी बनाते हैं. हमारी बदकिस्मती है कि बहुत नुकसान होगा. मैंने जब उन दो बच्चों को बचाया था, तो सीने पर लगाया था तांकि मुझे गोली भी लग जाए लेकिन इन बच्चों को कुछ नहीं होना चाहिए. क्योंकि मेरी भी दो बेटियां भी हैं. ये हमारा फर्ज था. वहां इंसानियत का कत्ल हुआ.'

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नजाकत छत्तीसगढ़ से आए पर्यटकों को बचाने की खातिर वह अपने चचेरे भाई आदिल हुसैन शाह के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए. आदिल हुसैन की पर्यटकों को बचाते समय आतंकियों की गोली का शिकार हो गए.

(इनपुट- ओमैसुर गुल) 

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