जेल पुलिस ने नहीं देखा जमानत वाला मेल, तीन साल ज्यादा सलाखों में बंद रहा युवक

27 वर्षीय चंदनजी ठाकोर हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. 29 सितंबर 2020 को उसकी सजा निलंबित कर दी गई थी और बेल के आदेश दिए गए थे. मगर, उसे जेल से छूट नहीं मिली और वह साल 2023 तक जेल में बंद रहा. उसने इसी साल बेल के आवेदन किया था.

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सांकेतिक तस्वीर. सांकेतिक तस्वीर.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:34 PM IST

गुजरात पुलिस की एक गलती के कारण हत्या के आरोप में जेल में बंद युवक को सजा माफी के बाद भी तीन साल ज्यादा जेल में बितानी पड़ी. साल 2020 में उसे कोर्ट द्वारा बेल दी गई थी. इसका मेल जेल पुलिस को भेजा गया था. मगर, जेल पुलिस द्वारा मेल के साथ अटैच फाइल ओपन नहीं की गई. बात आई गई हो गई.

आजीवन सजा काट रहे दोषी ने फिर से बेल के लिए एप्लाई किया था. तब जाकर इस बात का खुलासा हुआ है. मामले में कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा है युवक को 14 दिन भीतर राज्य सरकार एक लाख रुपए दे. क्योंकि, पुलिस की गलती के कारण उसे तीन साल सलाखों के पीछे बिताने पड़े.

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दरअसल, हुआ यूं कि 27 वर्षीय चंदनजी ठाकोर हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था. 29 सितंबर 2020 को उसकी सजा निलंबित कर दी गई थी और बेल के आदेश दिए गए थे. मगर, उसे जेल से छूट नहीं मिली और वह साल 2023 तक जेल में बंद रहा. उसने इसी साल बेल के आवेदन किया था. इसमें सामने आया कि साल 2020 में उसकी सजा निलंबित कर दी गई थी. मगर, जेल से छूट नहीं सका.

मामला कोर्ट में पहुंचा. सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति एमआर मेंगडे की खंडपीठ को जेल पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि कोविड का समय था. जो मेल आया था उसके साथ अटैच फाइल नहीं देख पाए थे. पुलिस ने कहा कि वह फाइल नहीं खोल पा रहे थे. खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार को आदेश दिया वह युवक को 1 लाख रुपये का मुआवजा 14 दिनों के भीतर दे. 

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जिला सत्र न्यायालय को भी भेजा गया था मेल

आदेश में अदालत ने कहा है, "वर्तमान मामले में इस न्यायालय की रजिस्ट्री ने आवेदक को नियमित जमानत पर रिहा करने के इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश के बारे में जेल अधिकारियों को स्पष्ट रूप से सूचित किया था. ऐसा नहीं है कि ऐसा ई-मेल जेल अधिकारियों को नहीं मिला. यह जेल अधिकारियों का मामला है कि कोविड ​​-19 महामारी के मद्देनजर आवश्यक कार्रवाई नहीं की जा सकी और हालांकि उन्हें ई-मेल प्राप्त हुआ, लेकिन वे अटैचमेंट फाइल को खोलने में असमर्थ रहे."

अदालत ने आगे कहा कि ईमेल जिला सत्र न्यायालय को भी भेजा गया था,लेकिन यह देखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया कि दोषी को जमानत पर रिहा करने के आदेश को उचित रूप से लागू किया गया है या नहीं किया गया है. 

कैदियों का डेटा एकत्र करके का आदेश जारी

मामले की गंभीरता को देखते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने सभी जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को उन सभी कैदियों का डेटा एकत्र करने का भी निर्देश दिया, जिन्हें जमानत मिल चुकी है, लेकिन अभी तक रिहा नहीं किया गया है.

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