दिल्ली में जहरीली हवा की असली गुनहगार पराली नहीं, नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की जहरीली हवा का असली विलेन ट्रैफिक और स्थानीय कारक है, पराली का धुआं नहीं. इस बार दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली के धुएं का योगदान 5% से भी कम रहा, फिर भी अक्टूबर और नवंबर में ज्यादातर दिन AQI लगातार ‘बेहद खराब' और 'गंभीर’ में बना रहा.

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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पराली का धुआं नहीं बल्कि ट्रैफिक और स्थानीय कारक जिम्मेदार हैं. (Photo: PTI) सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पराली का धुआं नहीं बल्कि ट्रैफिक और स्थानीय कारक जिम्मेदार हैं. (Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:24 PM IST

इस बार पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कई साल के निचले स्तर पर हैं, फिर भी दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली बनी हुई है. राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर-नवंबर में ज्यादातर दिन AQI ‘बेहद खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में रहा. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट कहती है कि  दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए ट्रैफिक और स्थानीय कारण जिम्मेदार हैं और इसमें पराली का योगदान न के बराबर है.

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रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के 22 प्रदूषण निगरानी स्टेशनों पर 59 में से 30 से ज्यादा दिन कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा तय सीमा से ऊपर रही. द्वारका सेक्टर-8 में सबसे ज्यादा 55 दिन, जहांगीरपुरी और दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस में 50-50 दिन हवा में CO की मात्रा तय मानकों से ज्यादा रही.  जहांगीरपुरी दिल्ली का सबसे प्रदूषित हॉटस्पॉट बनकर उभरा है, जहां सालाना PM2.5 औसत 119 µg/m³ दर्ज किया गया. इसके बाद बवाना-वजीरपुर 113 µg/m³ और आनंद विहार 111 µg/m³ का नंबर आता है.

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विवेक विहार, अलीपुर, नेहरू नगर, सिरी फोर्ट, द्वारका सेक्टर-8 और पटपड़गंज प्रदूषण के अन्य हॉटस्पॉट के रूप में उभरे हैं. स्टडी में बताया गया है कि दिल्ली में सुबह 7-10 बजे और शाम 6-9 बजे पीक ट्रैफिक ऑवर के समय हवा में PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) दोनों की मात्रा एक साथ बढ़ती दिखी.  सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिसर्चर अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं, 'सर्दियों में हवा नीचे बैठी रहती है, जिससे वाहनों का धुआं वायुमंडल में फंस जाता है. यह रोज का जहरीला कॉकटेल बन रहा है.'

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इस बार दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली के धुएं का योगदान ज्यादातर दिन 5% से कम रहा और सिर्फ 12-13 नवंबर को अधिकतम 22% तक पहुंचा था. बावजूद इसके दिल्ली के प्रदूषण में कोई खास सुधार नहीं हुआ. नवंबर में पूरे महीने AQI ‘बेहद खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी के बीच रहा. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट  की  रिपोर्ट चेताती है कि 2018-2020 के बाद प्रदूषण में गिरावट रुक गई है. 2024 में सालाना PM2.5 औसत फिर बढ़कर 104.7 µg/m³ हो गया. 

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सीएसई ने दिल्ली में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जो उपाय सुझाएं हैं, उनमें मुताबिक पुरानी डीजल और पेट्रोल गाड़ियों को तेजी से स्क्रैप करना, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देना, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और लास्ट-माइल कनेक्टिविटी बढ़ाना, साइकिल-वॉकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना, पार्किंग कैप और कंजेशन टैक्स, कल कारखानों में कोयले की जगह स्वच्छ ईंधन का उपयोग, खुले में कचरा जलाने पर पूरी तरह पाबंदी, सभी घरों को साफ ईंधन उपलब्ध कराना, फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाना, बायो-मेथनेशन और एथेनॉल-गैस उत्पादन को बढ़ावा देना शामिल है.

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