दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के बीच यमुना में फिर दिखे जहरीले झाग ने टेंशन बढ़ा दी है.आम तौर पर यमुना में बारिश के बाद विंटर शुरू होते ही ये झाग नदी पर तैरता नजर आता था. छठ त्योहार हर साल इसे लेकर खूब राजनीति भी होती है.लेकिन इस बार यह मार्च के महीने में ही यमुना नदी में दिखने लगा है. पिछले साल छठ त्योहार पर दिल्ली सरकार ने इन झाग को छुपाने के लिए सिलिकॉन केमिकल का इस्तेमाल जरूर किया था, लेकिन अब एक बार फिर से हालात पहले जैसे हो गए हैं.
यमुना नदी में फिर प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है. कालिंदी कुंज में यमुना में सफेद रंग की झाग की चादर छा गई है. यमुना में प्रदूषण के चलते ये झाग नजर आता है. दरअसल, यमुना के पानी में डिसाल्व ऑक्सीजन का मात्रा या तो खत्म होने या टॉक्सिक बढ़ने की स्थिति में झाग नजर आने लगता है.
छठ में ओखला बैराज का गेट खोला जाता है तो काफी ऊंचाई से पानी यमुना में गिरता है लिहाजा झाग की परत बन जाती है. सीपीसीबी की रिपोर्ट ये कहती है कि छठ में ओखला बैराज के साथ ही आईटीओ पर इसी वजह से झाग दिखती है. सीपीसीबी के साथ ही डीपीसीसी ने झाग की इस परते के लिए फास्फेट और सर्फेक्टेंट को जिम्मेदार माना है.
झाग के 2 बड़े स्रोत
यमुना के पानी में डिटरजेंट की मात्रा सीवेज से या फिर इंडस्ट्री से निकलने वाले कचरे से आती है. इंडस्ट्री से निकला कचरा भले ही कम हो, लेकिन सीवेज से निकले कचरे से ज्यादा खतरनाक होता है. यमुना जिए अभियान के कन्वीनर मनोज मिश्र का कहना है कि ज्यादातर सरकारों का ध्यान महज सीवेज ट्रीटमेंट प्लान बनाने पर रहता है, जबकि यमुना के पानी में industrial affluent ज्यादा गिरने की वजह से यमुना के पानी में झाग बनता है.
मार्च में झाग क्यों?
मार्च के दूसरे हफ्ते में झाग दिखने की बड़ी वजह है, दिल्ली में तापमान का कम हो जाना. बारिश की वजह से तापमान गिरा तो झाग पानी के ऊपर आ गया जबकि गर्मियों में अगर इतना ही टॉक्सिक झाग इसलिए पानी की सतह पर नही आ पाता क्योंकि बैक्टीरियल एक्टिविटी हो जाती है और झाग खत्म हो जाता है.
दिल्ली के बड़े नालों में झाग के कारक फास्फेट की मात्रा कितनी?
दिल्ली के बड़े नजफगढ़ नाले में फास्फेट का स्तर 74.5 एमजी प्रति लीटर है. जबकि आईएसबीटी नाले में 65.5 एमजी प्रति लीटर है. वहीं, बारापुला नाला में 57.2 एमजी प्रति लीटर और इंद्रपुरी नाले में 54.2 एमजी प्रति लीटर है.
राम किंकर सिंह / सुशांत मेहरा