हरिद्वार से कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है. शिव भक्त पवित्र गंगाजल लेकर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ से होते हुए दिल्ली, गुरुग्राम और पंजाब की ओर बढ़ रहे हैं. लेकिन इस धार्मिक यात्रा के प्रमुख मार्गों पर ज़्यादातर होटल और ढाबे बंद दिखाई दे रहे हैं. आजतक की टीम ने इस पूरे मामले की ग्राउंड जीरो पर जाकर पड़ताल की और जानने की कोशिश की कि आखिरकार जब लाखों शिवभक्त कांवड़ यात्रा लेकर हरिद्वार से निकलते हैं, तो उस वक्त ढाबों के कारोबार का पीक सीजन होता है, ऐसे समय में होटल और ढाबा मालिकों ने अपने प्रतिष्ठान बंद क्यों कर दिए.
हम सबसे पहले मेरठ के मशहूर ‘मलिक ढाबा’ पहुंची, जिसे पूरी तरह से ढककर बंद किया गया था. जब आसपास के लोगों से पूछा गया कि ढाबा बंद क्यों है, तो उन्होंने बताया कि पिछले साल यात्रा के दौरान इस ढाबे में जमकर तोड़फोड़ की गई थी. इसी डर से इस बार ढाबा मालिक ने उसे बंद रखने का ही निर्णय लिया है.
इसके बाद हम मेरठ से मुजफ्फरनगर की ओर बढ़े. रास्ते में 'जैन शिकंजी' नामक ढाबा पूरी तरह से सुनसान और पर्दों से ढका हुआ मिला. यहां भी सन्नाटा पसरा था. जब हमने ढाबा मालिक से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने कैमरे के सामने आने से इनकार कर दिया. हालांकि, उन्होंने यह साफ कहा कि कांवड़ियों के डर से ही ढाबा बंद किया गया है.
आगे चलकर टीम ‘नीलकंठ ढाबा’ पर पहुंची. यह ढाबा भी पूरी तरह बंद मिला. जब मालिक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यात्रा के दौरान कई असामाजिक तत्व हुड़दंग मचाते हैं, और उसका खामियाजा ढाबा मालिकों को भुगतना पड़ता है. कई बार कुछ कांवड़िए तोड़फोड़ पर उतर आते हैं. ऐसे में नुकसान उठाने से बेहतर है कि कुछ दिनों के लिए ढाबा बंद कर दिया जाए. उन्होंने यह भी बताया कि अधिकतर कांवड़िए होटल या ढाबों की बजाय कांवड़ कैंपों में बना प्रसाद या खाना ही पसंद करते हैं, जिससे कमाई भी कम होती है.
ऐसे में यह सवाल जरूर उठता है कि जब पूरे मार्ग पर चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात है, तब भी ढाबा मालिकों को विश्वास क्यों नहीं हो पा रहा? हालांकि पुलिस-प्रशासन का कहना है कि किसी भी तरह का हुड़दंग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. पिछले दिनों जो कोई विवाद जैसी घटना सामने आई, उसमें जरूरी कार्रवाई की गई.
सुशांत मेहरा