दिल्ली-एनसीआर इस समय गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। हालात को देखते हुए सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का स्टेज-IV लागू कर दिया है. इसके तहत निर्माण गतिविधियों पर सख्ती और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं.
दिल्ली में गैर-जरूरी ट्रकों की एंट्री बैन है, सिर्फ CNG, इलेक्ट्रिक और जरूरी सामान ले जाने वाले वाहनों को ही इजाजत है. डीजल वाहनों पर भी रोक है, सिवाय BS-VI वाहनों और इमरजेंसी सेवाओं के. डीजल से चलने वाले कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट वाहनों को भी चलाने की इजाजत नहीं है और पुराने वाहन जैसे BS-III पेट्रोल और BS-IV डीजल पर रोक लगा दी गई है. BS-III पेट्रोल और BS-IV डीजल जैसे पुराने वाहनों में इंजन तकनीक आज के मानकों के मुकाबले कमजोर होती है। इनमें ईंधन पूरी तरह नहीं जल पाता, जिससे धुएं के रूप में ज्यादा पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) निकलता है. यही बेहद महीन कण हवा में घुलकर सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंचते हैं.
चौंकाने वाली बात ये है कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड के डेटा से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर में अभी भी बड़ी संख्या में पुराने वाहन चल रहे हैं. वाहन डैशबोर्ड के अनुसार, 5.56 प्रतिशत वाहन BS-I इंजन नॉर्म्स के तहत आते हैं और 9.15 प्रतिशत वाहन BS-II इंजन पर चल रहे हैं. इसके अलावा 12.84 प्रतिशत वाहन BS-III इंजन के साथ NCR की सड़कों पर चल रहे हैं, जबकि BS-IV वाहन 16.16 प्रतिशत हैं. कुल मिलाकर, इसका मतलब है कि आज सड़क पर दिल्ली-एनसीआर के लगभग 27 प्रतिशत वाहन अभी भी भारत स्टेज I से III नॉर्म्स को पूरा करते हैं, जो पुराने हो चुके हैं.
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि BS-IV और BS-VI वाहन अब एनसीआर में सबसे ज्यादा हैं. एनसीआर की सड़कों पर 12,43,355 BS-IV वाहन हैं, जो कुल वाहनों का 16.16 प्रतिशत हैं. वहीं BS-VI मानकों वाले वाहन 25.26 प्रतिशत हैं, जो अपेक्षाकृत कम प्रदूषण फैलाते हैं. व्यावसायिक और निर्माण क्षेत्र के वाहनों की बात करें तो BS-IV इंजन वाले CEV सिर्फ 0.06 प्रतिशत हैं, जबकि स्टेज-V CEV वाहन मात्र 0.02 प्रतिशत ही हैं. इससे साफ है कि निर्माण क्षेत्र में नए और स्वच्छ तकनीक वाले वाहनों की संख्या बेहद कम है.
इसके अलावा, यूरोपीय उत्सर्जन मानकों (Euro norms) वाले वाहन भी एनसीआर में बड़ी संख्या में मौजूद हैं. इनकी संख्या 13,42,424 है, जो कुल वाहनों का 17.45 प्रतिशत बनती है. यूरो मानक वाहनों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और पार्टिकुलेट मैटर जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा सीमित करते हैं जो वाहनों से निकलती है. कुछ ऐसे वाहन भी हैं जिनके उत्सर्जन मानकों की जानकारी उपलब्ध नहीं है. इनकी संख्या 6,72,694 (8.74 प्रतिशत) है. वहीं अन्य श्रेणियों में आने वाले वाहन 3,55,066 (4.62 प्रतिशत) हैं.
पल्लवी पाठक