हर साल सर्दी बढ़ने के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जहरीली धुंध की चादर में लिपट जाती है, लेकिन डॉक्टर का मानना है कि इस बार वायु की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी पहले से कहीं अधिक जहरीली हो चुकी है. कुछ स्थानों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) लगातार 300 के पार बना हुआ है. आनंद विहार का AQI 3 नवंबर को 371 जबकि लोधी रोड पर 312, कर्तव्य पथ के करीब 307 रिकॉर्ड किया गया है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के पूर्व निदेशक और प्रमुख श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. रणदीप गुलेरिया ने आगाह किया है कि शहर में स्वास्थ्य संकट जैसी परिस्थिति पैदा हो गई है. जो लगातार लोगों के फेफड़ों, हृदय और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा रही है.
दरअसल, सर्दी के साथ हवाओं का थमना प्रदूषण के कणों को हवा में ही रोके रखता है. इससे आसमान में धुंध छाई रहती है. प्रदूषण के कारण सांस लेने में मुश्किल, आंखों में चुभन, गले में खराश समेत तमाम तरह की दिक्कतें अब आम हो गईं हैं. सड़कों पर दिखाई देने वाली मोटी धुंध वाहन चालकों के लिए भी चुनौती बन गई है.
AIIMS के पूर्व निदेशक व पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि अस्पतालों में सांस की समस्या, खांसी और पुरानी फेफड़ों की बीमारियों (अस्थमा, COPD) के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है. डॉ. गुलेरिया ने बताया कि जब से वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी AQI बिगड़ा है, तो सांस की बीमारियों के मामलों में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. डॉ. गुलेरिया ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह प्रदूषण लोगों को धीरे-धीरे मौत की ओर धकेल रहा है और इसका खतरा महामारी कोविड-19 से भी अधिक जानलेवा है.
प्रदूषण के कारण बढ़ीं ये समस्याएं
अब सिर्फ बुजुर्ग और पहले से बीमार व्यक्ति ही नहीं, बल्कि युवा, जिनमें कोई पुराना रोग नहीं था, वे भी सीने में जकड़न, लगातार खांसी और सांस फूलने जैसी शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. डॉ. गुलेरिया ने बताया कि यह वृद्धि आमतौर पर प्रदूषण बढ़ने के चार से छह दिन बाद दिखाई देती है. इसके साथ ही, सिरदर्द, आंखों में जलन, थकान, और अपर्याप्त नींद जैसी दिक्कतें भी आम हो गई हैं.
मौसम विभाग (IMD) की मानें तो तापमान में गिरावट और हवा की गति धीमी होने की वजह से प्रदूषण की एक परत जम गई है. आया नगर में न्यूनतम तापमान 13.4 डिग्री दर्ज किया गया जो इस मौसम का सबसे ठंडा दिन है. वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली का औसत AQI 318 रहा, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में माना जाता है. बता दें कि प्रशासन ने कई इलाकों में धूल और कणों को दबाने के लिए ट्रक-माउंटेड वॉटर स्प्रिंकलर लगाए हैं.
कैसे साइलेंट किलर है प्रदूषण?
डॉ. गुलेरिया के मुताबिक, बारीक कण जैसे पीएम2.5 खून में चले जाते हैं, जो रक्त-वाहिकाओं में सूजन लाते हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ाते हैं, कोलेस्ट्रॉल में बदलाव और शुगर लेवल बढ़ाते हैं. उन्होंने वायु प्रदूषण को साइलेंट किलर करार दिया है. साल 2021 में यह वैश्विक स्तर पर आठ मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार था, जो कोविड-19 से भी अधिक है. दरअसल, डेथ सर्टिफिकेट्स पर भले ही वायु प्रदूषण कभी दर्ज नहीं होता लेकिन यह संबंधित बीमारियों को तेजी से बढ़ाता है.
प्रदूषण का असर दिमाग पर भी देखा जा रहा है. डॉ. गुलेरिया के अनुसार, यह क्लासिक ब्रेन फॉग नहीं है, फिर भी लोग स्पष्ट रूप से कम सतर्क और कम ऊर्जा महसूस कर रहे हैं. मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रदूषण का असर है. विभिन्न रिपोर्ट्स में पाया गया है कि स्मॉग के महीनों में कई लोगों को थकान और काम पर फोकस में कमी की शिकायतें हैं. प्रदूषण की वजह से ही आलस्य भी बढ़ रहा है.
ऐसे में प्रदूषण से बचाव के लिए मास्क पहनना, अधिकतर समय घर के अंदर रहना, संतुलित भोजन लेना और बच्चों की बाहरी गतिविधि सीमित करना जरूरी है.
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