Mental Health Disorders in Women: आज की तेज रफ्तार लाइफ में मेंटल स्ट्रेस हर किसी को इफेक्ट करता है, लेकिन सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर दिखाई देता है. घर और बाहर दोनों जगह जिम्मेदारियों का बोझ, समाज का दवाब,इकोनॉमिक इक्वलिटी और कई बार मारपीट जैसी चीजों का सामना करना, ये सब महिलाओं के मेंटल हेल्थ को गहराई से प्रभावित करते हैं, यही कारण है कि महिलाएं डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी समस्याओं से पुरुषों की तुलना में अधिक जूझती हैं.
ऐसा हम नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की लेटेस्ट रिपोर्ट कह रही है, रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में दुनिया भर में करीब 58.2 करोड़ महिलाएं किसी न किसी मेंटल हेल्थ की परेशानी से जूझ रही थीं,जबकि पुरुषों की संख्या 51.39 करोड़ रही.
WHO की रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं महिलाओं में पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा देखी जाती हैं. डिप्रेशन के मामलों में महिलाओं की हिस्सेदारी 64.9% है, जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 35.1% है. इसी तरह एंग्जायटी डिसऑर्डर के 62.6% मामले महिलाओं में पाए जाते हैं और ये समस्या खासकर 20 से 24 साल की महिलाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है.
वहीं ईटिंग डिसऑर्डर के मामलों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी 63.3% है, जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा केवल 36.7% है. WHO का कहना है कि डिप्रेशन महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग 1.5 गुना ज्यादा आम है जो मेंटल हेल्थ के सेक्टर में महिलाओं और पुरुषों में बड़ा फर्क है.
महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कई बड़े कारण सामने आते हैं, हार्मोनल बदलाव जैसे पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, डिलीवरी के बाद का समय और मेनोपॉज़, महिलाओं को मानसिक तौर से ज्यादा सेंसिटिव बना देते हैं. इसके अलावा, मारपीट और इक्वलिटी भी बड़ा कारण हैं, घरेलू हिंसा और यौन हिंसा का सामना करने वाली महिलाएं डिप्रेशन, एंग्जायटी और PTSD जैसी समस्याओं से ज्यादा जूझती हैं.
वहीं, सामाजिक दबाव भी मेंटल हेल्थ पर असर डालता है. घर की देखभाल, बच्चों और बुजुर्गों की जिम्मेदारी, ऑफिस में भेदभाव और आर्थिक असुरक्षा, तनाव को और बढ़ा देते हैं. इसके साथ ही, कोविड-19 ने इस स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया, रिपोर्ट्स के अनुसार महामारी के दौरान महिलाओं में डिप्रेशन के मामले लगभग 30% और एंग्जायटी के मामले करीब 28% तक बढ़ गए.
एक्सपर्ट मानते हैं कि इस गैप को खत्म करने के लिए महिलाओं के लिए जेंडर-सेंसिटिव मेंटल हेल्थ पॉलिसी, प्रेग्नेंसी और पोस्टपार्टम केयर, घरेलू हिंसा पीड़ितों के लिए सपोर्ट और वर्कप्लेस सुधार की तुरंत जरूरत है. ये बात तो साफ है कि महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य की लड़ाई पुरुषों से कहीं ज्यादा भारी बोझ के साथ लड़ रही हैं. इस फर्क को कम करना न सिर्फ महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए जरूरी है.
आजतक हेल्थ डेस्क