दिल्ली-NCR की हवा में प्रदूषकों से फेफड़ों की हालत खराब हो रही है. डॉक्टरों का कहना है कि लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रहा है. अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो ये असर स्थायी भी हो सकता है. लेकिन यदि प्रदूषण या किन्हीं अन्य कारणों से आपके फेंफड़ों को नुकसान पहुंचाता है तो क्या ये फिर से पूरी तरह हील हो सकते हैं. आइए एक्सपर्ट से जानते हैं.
प्रदूषण फेफड़ों को कैसे नुकसान पहुंचाता है?
गुरुग्राम के सीके बिड़ला हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर एंड पल्मोनोलॉजी के हेड डॉ. कुलदीप कुमार ग्रोवर ने बताया कि वायु प्रदूषण में मौजूद PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे कण सांस के जरिए फेफड़ों में गहराई तक पहुंच जाते हैं. ये फेफड़ों में जलन, सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पैदा करते हैं जिससे फेफड़ों की संरचना और काम करने की क्षमता प्रभावित होती है. सबसे ज्यादा खतरा बच्चों, बुजुर्गों, धूम्रपान करने वालों और दिल या फेफड़ों की पुरानी बीमारी वाले लोगों को होता है. इसके अलावा गर्भवती महिलाएं और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोग भी प्रदूषण के असर को झेल नहीं पाते.
फेफड़ों के खराब होने के शुरुआती लक्षण
लगातार सूखी खांसी या गले में खराश
हल्की मेहनत में भी सांस फूलना
छाती में भारीपन या सीटी जैसी आवाज आना
बलगम बढ़ना
थकान या एनर्जी कम महसूस होना
बता दें कि कई बार नाक बंद रहना, बार-बार सर्दी-जुकाम या आंखों में जलन जैसे लक्षण भी दिखते हैं. अगर ये कुछ हफ्तों से ज़्यादा बने रहें तो डॉक्टर से जांच जरूर करानी चाहिए.
क्या फेफड़े दोबारा ठीक हो सकते हैं?
डॉ. ग्रोवर के मुताबिक फेफड़ों में खुद को रिपेयर करने की क्षमता होती है, खासतौर पर जब उन्हें प्रदूषण और धुएं से राहत मिले. अगर इंसान साफ हवा में रहने लगे तो कुछ महीनों से लेकर सालों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार आ सकता है. हालांकि, अगर नुकसान बहुत पुराना या गंभीर हो जैसे COPD है तो पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है, लेकिन सही इलाज और सावधानी से स्थिति को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है.
प्रदूषण में फेफड़ों को कैसे रखें हेल्दी
घर में HEPA फिल्टर वाला एयर प्यूरिफायर इस्तेमाल करें.
बाहर जाते वक्त N95 या KN95 मास्क लगाएं.
धूम्रपान और सेकंडहैंड स्मोक से बचें.
रोज केवल साफ हवा वाले माहौल में हल्की और ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें.
दिनभर पर्याप्त पानी पिएं ताकि फेफड़ों में जमा गंदगी साफ हो सके.
डायफ्रामैटिक ब्रीदिंग जैसे डीप ब्रीदिंग प्रैक्टिस करें.
जब AQI बहुत खराब हो तब बाहर की एक्टिविटी कम करें.
सबसे ज्यादा खतरे में कौन
1. बच्चों के फेफड़े अभी डेवलप हो रहे हैं और वे ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं.
2. बुजुर्गों के फेफड़ों की क्षमता कम हो चुकी होती है.
3. अस्थमा या COPD के मरीजों में प्रदूषण बढ़ने से लक्षण बढ़ जाते हैं और अस्पताल जाने की नौबत आ सकती है.
4. दिल या डायबिटीज़ के मरीजों में भी प्रदूषण से शरीर में सूजन (inflammation) बढ़ती है, जो इन बीमारियों को और खराब कर देती है.
प्रदूषण वाली खांसी या ब्रीदिंग दिक्कत कैसे पहचानें?
थोरेसिक एंड लंग ट्रांसप्लांट सर्जन और सीनियर कंसल्टेंट डॉ हर्षवर्द्धन पुरी के अनुसार अगर आपकी खांसी बार-बार होती है खासकर AQI बढ़ने पर या हल्की मेहनत में भी सांस फूलने लगती है, तो ये प्रदूषण से हुए फेफड़ों के नुकसान के शुरुआती संकेत हो सकते हैं. अगर बुखार या गले में दर्द नहीं है फिर भी लक्षण बने हैं तो ये वायरल इंफेक्शन नहीं बल्कि प्रदूषण की वजह से हो सकता है.
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