उत्तर प्रदेश के अमरोहा की 16 साल की कक्षा 11 की छात्रा अहाना की मौत ने फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) के खतरों को एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में ला दिया है. परिजनों ने बताया कि उनकी बेटी को चाऊमीन, मैगी, पिज्जा और बर्गर जैसे फास्ट फूड खाने की आदत थी. हालत बिगड़ने पर उसे दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया, जहां सर्जरी के बावजूद उसकी जान नहीं बच सकी.
डॉक्टरों ने बताया कि अहाना की आंतें आपस में चिपक गई थीं, उनमें छेद हो गए थे और पाचन तंत्र लगभग काम करना बंद कर चुका था. ये मामला दुर्लभ जरूर है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ये अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के बढ़ते सेवन से जुड़ी गंभीर चेतावनी है, खासकर बच्चों और किशोरों के लिए.
इसी खतरे की ओर इशारा हाल ही में द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अहम सीरीज भी करती है. नवंबर में आई इस स्टडी में 100 से ज्यादा शोधों की समीक्षा के बाद विशेषज्ञों ने कहा है कि दुनिया भर में UPFs का सेवन तेजी से बढ़ रहा है और ये पारंपरिक, घर के ताजे खाने को पीछे धकेल रहे हैं. पैकेज्ड स्नैक्स, इंस्टेंट नूडल्स, शुगर-ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड मीट जैसे फूड्स में बड़ी मात्रा में केमिकल एडिटिव्स, फ्लेवर, कलर और स्वीटनर होते हैं, जो इन्हें स्वादिष्ट तो बनाते हैं लेकिन पोषण के लिहाज से खोखला छोड़ देते हैं.
क्या कहते हैं डॉक्टर
सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली के सीनियर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. आशीष कुमार कहते हैं कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का सबसे बड़ा असर आंतों पर पड़ता है. वो कहते हैं, 'लगातार जंक फूड खाने से गट माइक्रोबायोम बिगड़ता है, आंतों की परत कमजोर होती है और सूजन बढ़ती है. लंबे समय में इससे लीकिंग गट, पाचन में रुकावट, पोषक तत्वों का अवशोषण कम होना और गंभीर मामलों में जानलेवा जटिलताएं भी हो सकती हैं.'
वहीं, लैंसेट सीरीज के मुताबिक ज्यादा UPF सेवन मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, कुछ कैंसर, डिप्रेशन और समय से पहले मौत के खतरे को बढ़ाता है. खास चिंता की बात ये है कि बच्चे और युवा इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं, क्योंकि ये फूड्स सस्ते, आसानी से उपलब्ध और आक्रामक तरीके से प्रचारित किए जाते हैं.
अहाना की मौत ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जंक फूड सिर्फ वजन या लाइफस्टाइल की समस्या नहीं है. ये गंभीर हेल्थ एमरजेंसी पैदा कर सकते हैं. डॉ आशीष कुमार का कहना है कि परिवारों को बच्चों की खाने की आदतों पर नजर रखनी होगी और घर के ताजे, कम प्रोसेस्ड भोजन को प्राथमिकता देनी होगी. साथ ही सरकार को भी स्कूलों और बच्चों को लक्षित मार्केटिंग पर सख्ती करनी चाहिए, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पर सख्त नियम और टैक्स लगाए जाएं.
क्या होते हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (UPFs)?
लैंसेट की स्टडी के मुताबिक, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जो प्राकृतिक भोजन से बहुत दूर होते हैं. इन्हें फैक्ट्रियों में सस्ते कच्चे माल जैसे मक्का, गेहूं, सोया और पाम ऑयल आदि से तैयार किया जाता है. इनमें रंग, स्वाद, खुशबू और बनावट बढ़ाने वाले केमिकल एडिटिव्स मिलाए जाते हैं. इंस्टेंट नूडल्स, पैकेज्ड स्नैक्स, कोल्ड ड्रिंक्स, प्रोसेस्ड मीट, रेडी-टू-ईट फूड और फास्ट फूड इसी श्रेणी में आते हैं. ये पेट तो भर देते हैं, लेकिन शरीर को जरूरी पोषण नहीं देते.
बॉडी पर कैसा असर पड़ता है?
लैंसेट की सीरीज के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का लगातार सेवन पाचन तंत्र के लिए जोखिम बढ़ाता है. स्टडी बताती है कि UPFs में मौजूद कई आर्टिफिशियल एडिटिव्स जैसे इमल्सिफायर, फ्लेवरिंग एजेंट और नॉन-शुगर स्वीटनर्स गट माइक्रोबायोम यानी आंतों में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं. इस असंतुलन से शरीर में क्रॉनिक सूजन बढ़ने, मेटाबॉलिक गड़बड़ियों और दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा पैदा होता है.
मानसी मिश्रा