मंगल ग्रह पर इंसानी बस्तियां बसाने पर अमेरिका समेत दुनिया के कई देश काम कर रहे हैं. इसपर टाइम-लाइन तक बन चुकी कि कितने सालों में दूसरे ग्रहों पर बसाहट हो जाएगी, वहीं समुद्र अब तक रहस्यमयी है, जबकि वो स्पेस की तुलना में काफी करीब है. लेकिन अब इसपर भी काम शुरू हो चुका.
भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी गहरे समुद्र में लैब बनाने जा रही है. यहां तमाम तरह के प्रयोग होंगे, और समुद्र में रहते जीवों को देखा-समझा जाएगा. इससे उम्मीद बढ़ी है कि आने वाले समय में इंसानों को कॉलोनी बनाने के लिए दूसरे ग्रहों तक नहीं जाना पड़ेगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियन टैक्नॉलॉजी इसपर काम करने जा रहा है. इसके तहत पहले चरण में लगभग पांच सौ मीटर की गहराई पर एक स्टेशन बनाया जाएगा, जहां तीन वैज्ञानिक एक दिन या उससे अधिक समय तक रहेंगे. लैब में लाइफ सपोर्ट सिस्टम के साथ एक डॉकिंग का सिस्टम भी होगा.
यह स्टेशन अंतरिक्ष में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरह काम कर सकता है. यहां पारदर्शी दीवारें होंगी, जिससे वैज्ञानिक समुद्री जीवों को देख सकें और रिसर्च कर सकें. साथ ही ऑक्सीजन और तापमान मेंटेन करने की भी व्यवस्था होगी. यहां एक डॉकिंग सिस्टम होगा, ताकि जरूरत पड़ने पर बाहर निकला जा सके. हालांकि समुद्री प्रेशर की वजह से स्टेशन को बनाना और मेंटेन करना काफी चुनौतीभरा हो सकता है.
हाल में वैज्ञानिकों की एक टीम ने फ्रांस के रॉसकॉफ मरीन बायोलॉजिकल स्टेशन को विजिट किया और तकनीकी चीजें देखीं, जो अपने यहां अपनाई जा सकें. यह स्टेशन काफी गहराई पर होगा जो दुनिया में सबसे ज्यादा गहरा समुद्री अनुसंधान केंद्र हो सकता है. उम्मीद है कि अगले ढाई दशक में इसपर काम पूरा हो जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि लाखों किलोमीटर दूर स्पेस पर कॉलोनी बसाने पर लंबे समय से काम शुरू हो चुका, लेकिन अपनी ही धरती पर समुद्र में यह आजमाने से वैज्ञानिक क्यों बचते रहे?
ज्यादातर हिस्सा अब तक अनछुआ
एक्सपर्ट मानते हैं कि समुद्र में जाना, स्पेस से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है. यही वजह है कि अब तक लगभग एक दर्जन एस्ट्रोनॉट्स तीन सौ के करीब घंटे चंद्रमा पर बिता चुके हैं, जो धरती से कई लाख किलोमीटर दूर है. वहीं समुद्र के सबसे गहरे तल पर कुछ घंटे भी रहा नहीं जा सका. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो, साल 2022 तक दुनिया में 20 प्रतिशत सी-फ्लोर ही देखा गया.
जून 2023 में टाइटेनिक जहाज को देखने गया टाइटन नाम का सबमर्सिबल अटलांटिक महासागर में दुर्घटना का शिकार हो गया. इसमें सबमर्सिबल में बैठे सभी पांच यात्रियों को मौत हो गई. वहीं स्पेस में दुर्घटनाएं तो होती हैं लेकिन उनमें मौतों का आंकड़ा वैसा भयावह नहीं.
चाहे समुद्र की गहराई में जाना हो, या अंतरिक्ष नापना हो, स्पेसक्राफ्ट और सबमर्सिबल लगभग एक तकनीक पर काम करते हैं. यात्रियों का चैंबर एक तरह का प्रेशर वेसल होता है, जो बाहरी और अंदरुनी दबाव को सह सके. इसके बाद भी स्पेस में लगातार शोध हो रहे हैं, आना-जाना हो रहा है, जबकि समुद्र की गहराई इससे बची हुई है.
क्यों अब तक अछूता रहा समुद्र
समुद्र की गहराई में दबाव इतना ज्यादा होता है कि इंसानी शरीर कुछ ही सेकंड में कुचल सकता है. लगभग 6 किलोमीटर की गहराई पर दबाव अंतरिक्ष से भी कई गुना ज्यादा हो जाता है.
अंतरिक्ष में हवा नहीं है, ठीक उसी तरह समुद्र की गहराई में भी सांस लेने का कोई प्राकृतिक तरीका नहीं है. इंसानों को कृत्रिम हवा, ऑक्सीजन सिस्टम और पावर की जरूरत होगी. इन सिस्टम्स में हल्की सी चूक भी पूरी बस्ती को खतरे में डाल सकती है.
गहराई में सूरज की रोशनी बिल्कुल नहीं पहुंचती. ऐसे में ऊर्जा, खेती, खाना और विटामिन-D जैसी बेसिक जरूरतों की आपूर्ति बहुत मुश्किल हो सकती है.
समुद्र की गहराई में रहने वाले कई जीव बेहद विशाल और आक्रामक होते हैं. वे इंसानी स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसा खतरा स्पेस में नहीं. वहां रेडिएशन का डर है, जो मैनेज करना अपेक्षाकृत आसान है.
अगर कोई दुर्घटना होती है तो बचाव दल गहराई तक पहुंच ही नहीं सकते. पनडुब्बियों की क्षमता भी सीमित है, जबकि अंतरिक्ष में रेस्क्यू मिशन तुलनात्मक तौर पर ज्यादा आसान रहा.
समुद्र के भीतर सैकड़ों सालों से जहाजों का मलबा जमा होता रहा है. इंटरगर्वनमेंटल ओशनग्राफिक कमीशन के मुताबिक, समुद्र के तल पर 3 मिलियन से भी ज्यादा जहाजों का मलबा जमा हो सकता है. इसमें फंसकर जान जा सकती है, या बस्तियों के लिए बनाया जा रहा सिस्टम भी बिगड़ सकता है.
समुद्र में बस्ती के साथ एक मुश्किल ये भी है कि यहां सतह पर लगातार जहाजों की आवाजाही होती रहती है, जबकि स्पेस इससे बचा हुआ है. ऐसे में गहरे समुद्र की एक्सेस लगातार चुनौतियां ला सकती है.
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