जब पूरी दुनिया शरणार्थियों से जूझ रही है, पोलैंड कैसे खुद को सुरक्षित रखे हुए है?

लंदन में हाल में लाखों लोग इकट्ठा हुए. मुद्दा था, इमिग्रेंट्स की बढ़ती आबादी का विरोध. इस दौरान प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच छुटपुट संघर्ष भी हुआ. ब्रिटेन ही नहीं, दुनिया के कई देशों में बाहरियों पर गुस्सा बढ़ रहा है. यूरोपियन यूनियन के ज्यादातर देशों पर शरणार्थियों का दबाव वाकई बढ़ चुका. इधर पोलैंड एक ऐसा देश है, जो लंबे समय से विदेशी आबादी के अपने यहां बसने के खिलाफ रहा.

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पश्चिम शरणार्थियों की आबादी बढ़ने की शिकायत कर रहा है. (Photo- Pixabay) पश्चिम शरणार्थियों की आबादी बढ़ने की शिकायत कर रहा है. (Photo- Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:54 PM IST

शनिवार को लंदन की सड़कों पर इमिग्रेंट्स की बढ़ती आबादी के खिलाफ एक रैली निकली, जिसकी अगुवाई कर रहे थे ब्रिटेन के कट्टरपंथी नेता टॉमी रॉबिन्सन. ब्रिटिशर्स का आरोप है कि उनके नेता सबको खुश रखने की नीति के चलते लगातार इमिग्रेंट्स को बुला-बसा रहे हैं. यहां तक कि घुसपैठियों की तरफ से भी वे आंखें बंद किए हुए हैं. इससे ब्रिटिशर्स अपने ही देश में माइनोरिटी हो सकते हैं. ऐसा आक्रोश खासकर यूरोपियन यूनियन के देशों में दिख रहा है. वहीं इक्का-दुक्का मुल्क ऐसे हैं, जिनके यहां शरणार्थी आबादी बहुत कम है. 

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पोलैंड इन्हीं में से एक है. पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, दस साल पहले यहां लगभग एक लाख माइग्रेंट्स थे. दशकभर में उनकी संख्या बढ़ते हुए दोगुनी से कुछ ज्यादा हो गई. हालांकि बाकी देशों के मुकाबले अब भी ये काफी कम है. यहां तक कि ईयू के कई मुल्क आरोप लगाते रहे कि पोलैंड शरणार्थियों को लौटा देता है, जिसकी वजह से उनपर दबाव बढ़ रहा है. 

यूरोपियन यूनियन की नीति है कि वो हर साल कुछ निश्चित शरणार्थियों को स्वीकार करेगा. इन अप्रवासियों या शरणार्थियों की संख्या हालात के अनुसार बदलती रहती है. मसलन, अगर किसी देश में युद्ध छिड़ जाए, या कहीं कोई भारी कुदरती आपदा आ जाए, तो जाहिर तौर पर शरण लेने वाले बढ़ेंगे. ईयू कोशिश करता है कि शरणार्थियों को सिर्फ एक या दो देशों के भरोसे छोड़ने का बजाए सब मिलकर काम करें. 

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ईयू का एक अहम नियम है डब्लिन रेगुलेशन . इसके अनुसार, शरणार्थी का आवेदन आम तौर पर उस देश में किया जाता है जहां वह सबसे पहले यूरोप में एंट्री लेता है. लेकिन यहीं समस्या शुरू हो गई. यूरोप के सीमावर्ती देशों जैसे ग्रीस, स्पेन, इटली में सबसे ज्यादा शरणार्थी पहुंचने लगे. तब ईयू ने कोटा सिस्टम का तरीका निकाला ताकि हर देश अपनी क्षमता के अनुसार शरणार्थियों को स्वीकार करे.

ब्रिटेन में बाहरियों की बढ़ती आबादी के खिलाफ भारी प्रोटेस्ट शुरू हो चुका. (Photo- AP)

ईयू ने पोलैंड पर आरोप लगाया है कि वह नियमों का पालन नहीं कर रहा और शरणार्थियों को ठीक-ठाक जगह नहीं दे रहा. लेकिन पोलैंड ऐसा क्यों कर रहा है? इसकी जड़ों में इतिहास भी है, धर्म भी और आर्थिक वजहें भी. 

पोलैंड मूल रूप से कैथोलिक ईसाई देश है. यहां धर्म का समाज पर गहरा प्रभाव है. कैथोलिक चर्च यहां की राजनीति और कल्चर में लंबे समय से मजबूत रहा है. इमिग्रेशन का मतलब है अलग धर्म, भाषा और अलग परंपराओं वाले लोगों का समाज में आना. ज्यादातर पोलिश नागरिकों को डर है कि इससे उनकी धार्मिक पहचान छिन जाएगी, या कमजोर पड़ जाएगी. ये डर इतना बड़ा है कि कुछ साल पहले मिडिल ईस्ट में भारी अस्थिरता के बावजूद पोलैंड ने मुस्लिम शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे नहीं खोले. 

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पोलैंड भले ही ईयू में शामिल है, लेकिन आर्थिक तौर पर बाकी देशों के बराबर आने के लिए उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी. दरअसल दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान ये जर्मनी से लेकर सोवियत संघ के लिए जंग का मैदान बना रहा. नाजी सेना ने पोलिश जनता पर भारी हिंसा की और उसे दो टुकड़ों में बांट दिया. लाखों लोग मारे गए, शहर तबाह हो गए. लड़ाई के बाद पोलैंड कम्युनिस्टों के कब्जे में रहा, और अस्सी के दशक के आखिर में आजाद हो सका. इसके बाद से ये देश यूरोप के बाकी देशों के साथ कदमताल करने की कोशिश करता रहा. लेकिन ये बराबरी काफी मुश्किल से आ सकी. 

पोलैंड ने मिडिल ईस्ट के शरणार्थियों को अपनाने से साफ मना कर दिया. (Photo- Pixabay)

इस देश की सीमाएं भी इसे ज्यादा संवेदनशील बनाती हैं. पोलैंड यूक्रेन से सटा हुआ है. फिलहाल रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है और इसमें पोलैंड खुद को सबसे ज्यादा असुरक्षित पा रहा है. उसे डर है कि यूक्रेन के बाद वो सबसे पहले रूस की जद में आएगा. अगर रिफ्यूजी बढ़ते रहे तो उनके साथ कहीं न कहीं बॉर्डर ब्रेक होने का खतरा भी रहेगा. यही वजह है कि वो रिफ्यूजियों के विरोध में रहा. हां, ये बात जरूर है कि रूस के हमले के बाद यूक्रेन से काफी बड़ी आबादी यहां विस्थापित हो गई. हालांकि पोलैंड का कहना है कि उसने अस्थाई तौर पर उन लोगों को जगह दी है और हालात ठीक होते ही उन्हें वापस भेज दिया जाएगा. 

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किन तरीकों से रोक रहा शरणार्थियों को

- पोलैंड और बेलारूस सीमा पर कांटेदार तार, कैमरे और सशस्त्र गार्ड तैनात किए हैं. 

- अगर कोई भीतर प्रवेश कर ले तो गार्ड्स उसे वहीं रोक देते हैं और जबरन सीमा पार धकेल देते हैं. 

- पोलिश राजनीति में लगातार शरणार्थियों को दूर रखने पर जोर दिया जा रहा है. 

- ईयू के कोटा सिस्टम पर पोलैंड का कहना है कि उसके पास पर्याप्त रिसोर्स नहीं इसलिए वह शरणार्थियों को नहीं अपना सकता. 

ईयू इस मामले में खास एक्शन नहीं ले सकता. वो नियमों का हवाला तो देता है लेकिन देशों के पास ये अधिकार है कि वे अपनी वजहें देकर शरणार्थियों से दूरी बना सकें. मसलन, पोलैंड हरदम रिसोर्सेज की कमी और सुरक्षा का हवाला देते हुए बच जाता है. फिलहाल यूरोपीय संघ पोलैंड समेत किसी ऐसे देश पर सख्ती नहीं कर पा रहा. 

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