क्लाइमेट चेंज वैसे तो साइंस फिक्शन या रिसर्च की बात लगती है, लेकिन असल में ये उतनी भी दूरदराज की चीज नहीं. इसकी वजह से तापमान बढ़ रहा है. बढ़ते तापमान से बर्फ पिघल रही है, जो समुद्र का स्तर बढ़ा रही है. और इसी हाहाकारी समंदर में समा रहे हैं कई देश. मालदीव से लेकर किरिबाती और तुवालु जैसे द्वीप देशों पर डूबने का खतरा लगातार बढ़ रहा है. इस सबके बीच एक सवाल भी उठ रहा है. क्या कोई देश डूब जाए तो संयुक्त राष्ट्र से उसका नाम भी खत्म हो जाएगा, या उनके नाम नई जमीन अलॉट की जाएगी.
कितना ठोस है खतरा
ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकनॉमिक्स एंड पीस की एक रिसर्च कहती है कि अगले 25 सालों में दुनियाभर में 1.2 बिलियन विस्थापन होगा. ये क्लाइमेट रिफ्यूजी होंगे, जो मौसम की मार से बचने के लिए अपनी जगह छोड़ने को मजबूर होंगे. ये माइग्रेशन अस्थाई भी हो सकता है और स्थाई भी. वहीं कई ऐसे देश हैं, जिनका छोटा-मोटा हिस्सा नहीं, बल्कि पूरा मुल्क ही क्लाइमेट चेंज की जद में है.
सबसे ज्यादा प्रभावित देश
हिंद महासागर में स्थित मालदीव की औसत ऊंचाई समुद्र तल से कुछ ही ऊपर है. जल स्तर बढ़े, तो इसके कई द्वीप पानी में डूब जाएंगे.
प्रशांत महासागर का छोटा द्वीप देश है किरिबाती. यहां के लोग पहले से ही बाढ़ और तट कटाव से परेशान हैं.
प्रशांत महासागर में बसा देश तुवालु जलवायु संकट की वजह से लगातार मुश्किल झेल रहा है.
मार्शल आइलैंड से लेकर बांग्लादेश का एक हिस्सा भी पानी में डूबने की आशंकाओं के साथ जी रहा है.
क्यों बढ़ रहा है खतरा
धरती का तापमान बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर हर साल ऊपर जा रहा है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते समुद्री तूफानों की संख्या भी बढ़ गई है. इन छोटे देशों के पास ऊंचे पहाड़ या फैले हुए इलाके नहीं हैं, इसलिए जल स्तर बढ़ते ही वे डूबने लगते हैं.
क्या कहता है कानून
यहां पर मानवाधिकार की बात तो आती ही है, लेकिन एक कानूनी सवाल भी आ जाता है. पानी का स्तर जैसे-जैसे बढ़ेगा, लोग दूसरे सुरक्षित देशों की तरफ विस्थापित होने लगेंगे. उनका अपना कल्चर और बोली-बानी छूट जाएगी. लेकिन अगर पूरा का पूरा देश ही समुद्र में समा जाए तो क्या होगा? क्या इसके बाद वे स्टेटलेस यानी देशविहीन हो जाएंगे, या ऐसे एक्सट्रीम मामलों के लिए इंटरनेशनल कानून में कोई गुंजाइश है?
तुवालु बन सकता है पहला डिजिटल देश
देश भी खुद पर आए इस खतरे से अनजान नहीं, तभी वे हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं कि जमीनें भले डूबें, लेकिन देश का अस्तित्व बना रहे. इसके लिए तुवालु ने दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौता किया. इसके तहत, तुवालु के नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया में बसाया जा रहा है. साथ ही भले ही देश पूरी तरह से डूब जाए लेकिन कानूनी तौर पर तुवालु के नागरिक, उसी देश के कहलाएंगे, भले ही वे ऑस्ट्रेलिया में बसे हों. यानी मैप से गायब होने के बाद भी इंटरनेशनली तुवालु मौजूद रहेगा.
तुवालु की सरकार ने साल 2021 में घोषणा की कि अगर जमीन गायब भी हो जाए, तो वे उनका देश डिजिटल रूप में इंटरनेट पर सुरक्षित रहेगा. इसमें तुवालु का नक्शा, सरकारी और ऐतिहासिक इमारतें, और कल्चर का डिजिटल मॉडल तैयार किया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ियां उसे वर्चुअल तौर पर देखकर जुड़ाव बना सकें. देश का संविधान और कानून भी डिजिटल रूप में डाला जा रहा है, जिससे दूसरे देश में रहते हुए भी वे अपने अनुसार काम कर सकें.
तुवालु दुनिया का पहला डिजिटल देश बनने की तरफ है. ये बात सुनने-कहने में लुभावनी लगती है लेकिन यह मॉडल फॉलो करना आसान नहीं. असल में इंटरनेशनल कानून में इसके लिए खास गुंजाइश नहीं.
देश को कब मिलता है स्टेट का दर्जा
तकनीकी तौर पर, किसी देश के देश बने रहने के लिए चार चीजें जरूरी हैं. स्पष्ट सीमा, आबादी, सरकार और दूसरे देशों के साथ रिश्ता रखने की उसकी क्षमता. जल स्तर बढ़ने के साथ ही आबादी विस्थापित हो रही है और जमीनें खत्म हो रही हैं. ऐसा होने पर सरकारें भी खत्म हो जाएंगी. साथ ही किसी देश के देश बन सकने के रास्ते भी बंद हो जाएंगे. लेकिन यहां एक पेंच है.
अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अगर कोई देश एक बार अस्तित्व में आ जाए तो वो बना ही रहेगा. मिसाल के तौर पर, सोमालिया या फिर यमन को फेल्ड स्टेट कहा जाता है. यहां लंबे समय से अस्थिरता है और सरकार के नाम पर घमासान है. इसके बाद भी ये देश, देश कहलाते हैं. हालांकि खत्म हो चुकी सीमाओं, और पलायन कर चुके नागरिकों के देश के बारे में कानून में कोई बात नहीं.
क्या कहती है अंतरराष्ट्रीय अदालत
हाल ही में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने भी माना है कि क्लाइमेट चेंज छोटे-छोटे द्वीप देशों और तटवर्ती इलाकों के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है. द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट में एडवायजरी की एक लाइन का जिक्र है- 'एक बार अगर कोई देश बन चुका है, तो उसके किसी हिस्से के गायब होने का मतलब ये नहीं कि उसका देश होने का दर्जा भी खत्म हो जाए.' हालांकि कोर्ट ने सीधे-सीधे नहीं कहा कि डूबने पर देश भी खत्म माने जाएंगे, या नहीं.
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