नोबेल शांति पुरस्कार तो छूटा, लेकिन क्या अब ट्रंप स्वीकार करेंगे जर्मनी के एक जिले का नागरिक सम्मान?

एक तरफ यूरोप और अमेरिका में दूरियां दिख रही हैं, दूसरी तरफ यूरोपीय देश जर्मनी का एक जिला डोनाल्ड ट्रंप को नागरिकता देने पर विचार कर रहा है. इस जिले पर धुर-दक्षिणपंथी दल का असर है. ऐसे में ट्रंप को नागरिकता मिलने का मतलब गहरा होगा. दक्षिणपंथी पार्टी इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ अपनी वैचारिक निकटता दिखाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है.

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डोनाल्ड ट्रंप का पैतृक परिवार जर्मनी के कैलश्टाट गांव से ताल्लुक रखता है. (Photo- AP) डोनाल्ड ट्रंप का पैतृक परिवार जर्मनी के कैलश्टाट गांव से ताल्लुक रखता है. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:53 AM IST

डोनाल्ड ट्रंप के दादा-दादी 19वीं सदी के आखिर में जर्मनी के एक जिले से निकलकर अमेरिका पहुंचे और अब उनका पोता अमेरिकी राष्ट्रपति है. ट्रंप कई बार जर्मनी से अपनी पारिवारिक निकटता भी जता चुके. अब, जबकि यूरोप में यूएस से दूरी दिख रही है, ऐसे में जर्मनी का एक हिस्सा ट्रंप को मानद नागरिकता देने की बात कर रहा है. जानिए, इससे क्या बदलेगा. 

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जर्मनी की राजनीतिक पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने ऐसा प्रस्ताव रखा है. दरअसल, दक्षिण-पश्चिम हिस्से में बाड डुर्कहाइम नाम का एक जिला है. इसी का एक छोटा-सा गांव है कैलश्टाट, जिसका ट्रंप कनेक्शन है. दल ने अपने प्रपोजल के पीछे सोच ये दी कि ट्रंप की वजह से इजरायल और हमास के बीच जंग रुकी और कई जर्मन बंधक भी छोड़े गए. 

फिलहाल जिले के लीडर ने इस प्रस्ताव पर हामी भर दी. अब महीने के आखिर में इसपर चर्चा होगी और तय हो सकेगा कि आगे क्या हो सकता है. 

देश के दक्षिण-पश्चिम कैलश्टाट नाम के गांव में ट्रंप के दादा फ्रेडरिक ट्रंप का जन्म हुआ था. ये जर्मन नागरिक बहुत कम उम्र में रोजगार की खोज में अमेरिका पहुंचा. ये बात है साल 1885 के आसपास की. वहां जाकर वे छोटे-मोटे काम करते रहे. कुछ सालों बाद वे वापस लौटे और शादी के बाद पत्नी यानी ट्रंप की दादी समेत दोबारा अमेरिका चले गए और वहीं बस गए. यहां फ्रेडरिक ने पहले होटल चलाया और बाद में रियल एस्टेट बिजनेस में कदम रखा. धीरे-धीरे कारोबार ऐसा जमा कि यही ट्रंप परिवार की पहचान बन गया. 

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एएफडी के समर्थन कुछ खास धर्मों के लोगों को शरण देने के खिलाफ रहे.  (Photo- AP)

शुरुआत में ट्रंप ने अपने जर्मन मूल का जिक्र बहुत कम किया. वे कहते रहे कि उनका परिवार स्वीडन से है. शायद ऐसा इस वजह से था कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद अमेरिका में जर्मन विरोधी भावना काफी थी, इसलिए उन्होंने अपनी जर्मन जड़ों को सार्वजनिक तौर पर नहीं उछाला.

बाद में जब उनकी पहचान एक बड़े बिजनेसमैन के तौर पर स्थापित हो गई तब उन्होंने कहना शुरू किया कि मेरी फैमिली  जर्मनी से आई है. हालांकि ये कहते हुए वे कभी इमोशनल नहीं दिखे, न ही कभी जर्मनी के अपने पारिवारिक गांव गए. हालांकि उनके कई रिश्तेदार अब भी वहीं बसे हुए हैं. पहली बार राष्ट्रपति बनने पर गांव से कई चेहरे आए, जिन्होंने ट्रंप से अपने रिश्तों की बात की. 

एएफडी नाम की जो पार्टी ट्रंप की मानद नागरिकता की बात कर रही है, वो राइटविंग सोच के लिए जानी जाती है. उसने काफी सोच-समझकर ये बात की. 

- एएफडी और ट्रंप दोनों की राजनीति राष्ट्रवाद, इमिग्रेशन-विरोध, और नेशन-फर्स्ट पर काम करती है. 

- कैलश्टाट ट्रंप का पैतृक गांव है. दल इसे हमारे इलाके से संबंधित शख्स जैसी भावना से जोड़ रहा है. सुर्खियों में आने पर पार्टी की भी साख बढ़ेगी. 

- जर्मनी में मुख्यधारा की पार्टियां एएफडी को अतिवादी कहती रहीं. ट्रंप की नागरिकता की पेशकश से दल यह संदेश देना चाहता है कि ग्लोबल नेता भी हमारी तरह सोचते हैं. 

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फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप के पास किसी देश की मानद नागरिकता नहीं. (Photo- Pexels)

लेकिन मानद नागरिकता सिर्फ प्रतीकात्मक है. यानी इससे ट्रंप को कोई कानूनी हक या जिम्मेदारी नहीं मिलेगी. वे वोट नहीं दे सकेंगे, न जर्मन नागरिक की कोई और जिम्मेदारी निभा सकेंगे. तब भी ये कदम राजनीति में एक तरह का प्रतीक हो सकता है. 

अब सवाल आता है कि क्या ट्रंप ये नागरिकता ले सकते हैं. इसका स्वीकार या नकार पूरी तरह से ट्रंप पर निर्भर करता है. फिलहाल वे यूरोप से खास निकटता जताने के इरादे में नहीं दिखते. वे नाटो से पैर पीछे करने की धमकियां भी देते रहे हैं. जर्मनी को लेकर वे खास उदार भी नहीं क्योंकि ये देश उन्हें इमिग्रेशन को बढ़ावा देता लगता है. इसपर वे कई बार नाराजगी भी जता चुके.

लेकिन चूंकि ये मानद नागरिकता है यानी एक तरह का सम्मान, तो हो सकता है कि ट्रंप इसे स्वीकार कर लें. हाल में नोबेल पीस प्राइज से दूर हो चुके ट्रंप के लिए कोई भी सम्मान मरहम का काम कर सकता है. बता दें मानद नागरिकता भी अपने में बड़ा सम्मान है. इंटरनेशनल छवि वाले नेताओं, किसी क्षेत्र में बड़ा काम करने वाले लोगों या कलाकारों को ही आमतौर पर ये सम्मान मिलता रहा.

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