पिछले 100 साल में मिडिल ईस्ट में कितनी बार दखल दे चुका अमेरिका, क्या उसकी धमकियां वाकई शांति ला पाती हैं?

अमेरिका भले ही शांति का राग अलापता रहे लेकिन सच तो ये है कि उसने एक बार फिर मिडिल ईस्ट में जंग की आग को और भड़का दिया. ईरान और इजरायल की लड़ाई में उसकी औपचारिक एंट्री हो चुकी, जिसमें वो तेहरान को धमका रहा है. इससे पहले भी मिडिल ईस्ट के मामलों में वॉशिंगटन कई बार दखलंदाजी कर चुका.

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ईरान-इजरायल संघर्ष में अमेरिका भी शामिल हो गया. (Photo- AP) ईरान-इजरायल संघर्ष में अमेरिका भी शामिल हो गया. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:19 PM IST

ईरान और इजरायल की लड़ाई चल रही थी. हो सकता है कि कुछ दिन खींच-खांचकर वो खुद ही रुक जाती. लेकिन अब शायद ऐसा न हो. जंग में अमेरिका भी आ चुका है, और ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी भी हो चुकी. वाइट हाउस का कहना है कि वो ये सब शांति के लिए कर रहा है. शांति के नाम पर वो पहले भी कई बार मिडिल ईस्ट में घुसपैठ करता रहा. 

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अमेरिकी स्कॉलर भी उठाते रहे सवाल

पीस डील कराने के नाम पर यूएस अक्सर ही फटे में पांव लगाता रहा है, फिर चाहे वो ईरान-इराक मामला हो, या भारत-पाकिस्तान का. शांति को लेकर अमेरिकी भूमिका पर खुद उसके देश में सवाल उठते रहे. वहां से इतिहासकार हैरी एस स्टॉउट कहते हैं कि इस देश ने दुनियाभर के देशों में 280 से ज्यादा सैन्य दखल दिए. साथ ही वो देशों की निहायत आतंरिक बहस में भी घुसपैठ करता रहा, और अपनी राय देता रहा. 

दखलंदाजी की प्रैक्टिस के लिए मिडिल ईस्ट अमेरिका की पसंदीदा जगह रही.

पिछले 100 सालों की बात करें तो वॉशिंगटन ने यहां बार-बार हाथ आजमाए. 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका ने मिडिल ईस्ट की राजनीति में सीधा सैन्य दखल नहीं दिया, लेकिन तेल कंपनियों से मेलजोल के जरिए अपनी जड़ें जमाने लगा था. इस समय एक अमेरिकी ते कंपनी को सऊदी में ऑइल खोजने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया था. यहीं से सारा खेल शुरू हुआ. 

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दूसरे वर्ल्ड वॉर में यूएस ने सऊदी अरब में हवाई पट्टियां बनाईं, ताकि जर्मनी को रोका जा सके. कहने को ये अप्रत्यक्ष दखल था, लेकिन इसके बाद ही उसका यहां आना-जाना बढ़ता चला गया. 



यहां से शुरू हुआ असल सैन्य हस्तक्षेप

साल 1953 में ईरान में सीआईए की पहली बड़ी कार्रवाई हुई. दरअसल ईरानी सत्ता तेल को लेकर अब खास समझौते नहीं करना चाहती थी. इस बात पर सीआईए और ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने मिलकर ऑपरेशन अजैक्स चलाया, इसके तहत तत्कालीन सरकार को गिराकर शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता में लाया गया. यह मिडिल ईस्ट में अमेरिकी हस्तक्षेप का निर्णायक मोड़ माना जाता है. 

तस्वीर में अब तक इजरायल भी आ चुका था. छोटा-सा ये देश चारों तरफ से अलग धर्म वाले मुल्कों से घिरा और डरा रहता. अमेरिका ने ये नस पकड़ी और दखल शुरू कर दिया. वो इजरायल को मदद देने लगा, जैसे इंटेलिजेंस और हथियारों की ताकि मिडिल ईस्ट के बाकी देश हावी न हों. 

अस्सी से अगले दशकभर चला ईरान-इराक युद्ध अमेरिका के सबसे विवादित हस्तक्षेपों में एक रहा. इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान पर से अमेरिकी पकड़ कमजोर हो चुकी थी. इराक ने अस्सी में ईरान पर हमला किया. यूएस पहले तटस्थता दिखाता रहा लेकिन जल्द ही इराक को खुफिया जानकारी, सैटेलाइट इमेज, हथियार और कूटनीतिक सपोर्ट देने लगा. 

साल 1990 में हुए गल्फ वॉर में इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया. वॉशिंगटन इस बार यूएन के बैनर तले आया और सेना के साथ मिलकर इराक को कुवैत से बाहर निकाल दिया. इसके बाद से मध्यपूर्व में उसकी इमेज पोलिसिंग की बन गई. 

सद्दाम हुसैन के नाम पर भी यूएस ने खूब बखेड़ा किया. उसने ये बात कही कि इराक के पास वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन हैं. उसने इराक की सरकार गिरा दी, सद्दाम हुसैन को फांसी हुई. इस बीच पूरे मिडिल ईस्ट में अस्थिरता फैल गई, जो बनी ही हुई है. 

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अस्थिरता के इसी दौर में शिया-सुन्नी तनाव बढ़ा. इस्लामिक स्टेट की जड़ें भी इसी वक्त से जुड़ी हैं. इसमें भी आतंकियों को खत्म करने के नाम पर वो एक बार फिर इराक और सीरिया में आया और कई स्पेशल ऑपरेशन चलाने के लिए लंबे समय तक वहां टिका रहा. अब भी इन जगहों पर अमेरिकी सैनिक बसे हुए हैं. 

अब ईरान-इजरायल में क्या हो सकता है

ताजा केस भी इजरायल और ईरान का अपना मामला था, लेकिन अमेरिका कूद पड़ा. ईरानी परमाणु ठिकानों पर बमबारी के बाद भी वो लगातार धमकियां दे रहा है. अब ईरान के पास ज्यादा रास्ते नहीं. वो जानता है कि उसके पास वॉशिंगटन से टकराने की ताकत नहीं. उसने इराक में स्थित दो अमेरिकी सैन्य बेस पर मिसाइलें तो गिराईं लेकिन उससे कुछ नुकसान नहीं हुआ. 

ईरानी सरकार को डर है कि जंग लंबी खिंची तो बात तख्तापलट तक जा सकती है. वैसे भी धार्मिक तानाशाही को लेकर इस देश में असंतोष है. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि ईरान लड़ाई रोक दे और तीनों- यानी अमेरिका, इजरायल और ईरान मिलकर तेहरान की परमाणु योजना पर कोई फैसला लें. 

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