Frankestein Review: मुर्दों के टुकड़ों से बने उस राक्षस की कहानी, जो इंसानों से ज्यादा नर्म है...

इंग्लिश लिटरेचर में 200 साल पहले लिखा गया एक किरदार है, जिसे मॉन्स्टर्स का गॉडफादर कहा जाता है. हजार से ज्यादा बार स्क्रीन पर उतर चुके इस किरदार को अब नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म 'फ्रैंकेंस्टाइन' ने रीक्रिएट किया है. इस बार ये सिर्फ स्क्रीन पर उतरा नहीं है, बल्कि जिंदा हो गया है. पढ़िए फिल्म का डिटेल्ड रिव्यू...

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'फ्रैंकेंस्टाइन' रिव्यू: इमोशंस में डूबी एक हॉरर फिल्म (Photo: IMDB) 'फ्रैंकेंस्टाइन' रिव्यू: इमोशंस में डूबी एक हॉरर फिल्म (Photo: IMDB)

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:21 PM IST
फिल्म:फ्रैंकेंस्टाइन
4/5
  • कलाकार : ऑस्कर आइजैक, जैकब एलोर्डी, मिया गॉथ, क्रिस्टोफर वाल्ट्ज
  • निर्देशक :गियर्मो डेल टोरो

इंग्लिश लिटरेचर के चार नामी राइटर दोस्तों में 200 साल पहले एक कॉम्पिटीशन हुआ— कौन ज्यादा बेहतर हॉरर स्टोरी लिख सकता है? चारों में से एक तो कहानी लिख ही नहीं पाया. दूसरे ने एक आईडिया उठाया मगर उसे पूरा नहीं कर पाया. उसके आईडिया को तीसरे ने आगे डेवलप किया और मॉडर्न वैम्पायर जॉनर का जन्म हुआ. चौथी थीं राइटर मैरी शेली, जिन्होंने उपन्यास लिखा 'फ्रैंकेंस्टाइन' (Frankenstein). 'फ्रैंकेंस्टाइन' के राक्षस को, फिक्शनल कहानियों के राक्षसों का 'गॉडफादर' कहा जाता है. फिल्में, शॉर्ट फिल्में, टीवी शो और सीरीज वगैरह... सब जोड़ दें तो 'फ्रैंकेंस्टाइन' को बतौर किरदार या उससे इंस्पायर्ड किरदारों को 1000 से ज्यादा बार स्क्रीन पर उतारा जा चुका है.

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तीन ऑस्कर अवॉर्ड्स जीत चुके डायरेक्टर गियर्मो डेल टोरो (Guillermo Del Toro) बचपन से इस कहानी के फैन थे. इतने कि एक इंटरव्यू में उन्होंने इस नॉवेल को अपनी 'बाइबिल' तक कहा है. फाइनली उन्होंने इसे अपनी फिल्म 'फ्रैंकेंस्टाइन' में सिनेमा के लिए एडाप्ट किया है. और इस एडाप्टेशन से जो नतीजा स्क्रीन पर उतरा है... वो इस साल की सबसे शानदार, दमदार, बेहतरीन हॉलीवुड फिल्मों में से एक है. नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही 'फ्रैंकेंस्टाइन' सिर्फ एक अद्भुत हॉरर फिल्म नहीं है, ये इस फिक्शनल राक्षस के किरदार की एक नई रीडिंग भी है.  

मुर्दों के टुकड़ों से बना एक राक्षस
'फ्रैंकेंस्टाइन' इसलिए भी एक दिलचस्प कहानी है कि इसमें जो राक्षस या क्रीचर है, उसका अपना कोई नाम नहीं है. डॉक्टर विक्टर फ्रैंकेंस्टाइन ने उसे बनाया है. और पहली बार कागज पर उतरने से लेकर आजतक, फिक्शन के संसार में उसे 'फ्रैंकेंस्टाइन का मॉन्स्टर' ही कहा जाता है. 

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कहानी में विक्टर फ्रैंकेंस्टाइन, करीब 200 साल पहले के एक बड़े नामी सर्जन का बेटा था. जब विक्टर छोटा था, तो उसके भाई का जन्म देते हुए उसकी मां चल बसीं. मां के शोक में डूबा विक्टर तय करता है कि अब वो साइंस की दुनिया में कुछ ऐसा करेगा जिससे मौत का ये खेल ही खत्म हो जाए. वो खुद अपने हाथों से किसी को जीवन दे सके. बड़ा होने के बाद भी वो अपनी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने में लगा रहता है. और एक दिन उसे कामयाबी भी मिलती है.

वो अलग-अलग मुर्दों के टुकड़ों को जोड़कर एक जिंदा इंसान बनाने की कोशिश में कामयाब हो जाता है. इस काम में उसका साथ देता है एक हथियार सप्लायर हेनरिक हारलैंडर (क्रिस्टोफर वाल्ट्ज). हेनरिक के पास इस पागलपन भरे एक्स्पेरिमेंट से जुड़ने की एक वजह है, जो फिल्म में देखना ही बेहतर होगा. कहानी में एक फीमेल किरदार भी है, जो विक्टर को बहुत इंस्पायर करता है, इसे भी फिल्म में ही देखने पर मजा आएगा.

कौन है असली राक्षस?
विक्टर अपने क्रीचर को जीवन देने में कामयाब तो हो जाता है. मगर इसके बाद उसे उदासीनता घेर लेती है. उसकी इस उदासीनता में एक सवाल छुपा है जो 'फ्रैंकेंस्टाइन' की कहानी का सेंटर है. जिस क्रीचर को विक्टर ने, प्रकृति को नीचा दिखा देने की शर्त पर बनाया है, उसका आगे क्या होगा? इसका जवाब फिल्म की शुरुआत में है जब आर्कटिक के बर्फीले समुद्र में फंसे एक जहाज का सामना पहली बार इस क्रीचर से होता है. 

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इस जहाज के सैनिक तो मारे ही जाते हैं. मगर वो विक्टर को बचाते हैं, जिसकी जान लेने पर वो क्रीचर आमादा है. ट्विस्ट यही है— जिस क्रीचर को विक्टर ने ही जीवन दिया, वो उसी की जान लेने पर क्यों तुला है? विज्ञान को बदलकर रख देने की महत्वाकांक्षा से निकले सपने से जन्मा ये क्रीचर, राक्षस यानी मॉन्स्टर क्यों बन गया? असली राक्षस है कौन... ये क्रीचर या विक्टर खुद? क्योंकि ये सपना तो उसी का था! ये एक विडंबना ही है कि ऑरिजिनल नॉवेल छपने से लेकर आजतक ये किरदार इतना पॉपुलर हो चुका है कि लोग इसे 'फ्रैंकेंस्टाइन' ही बुलाने लगे हैं. वो नाम जो उस क्रीचर की नहीं, उसके क्रिएटर की याद दिलाता है. 

'फ्रैंकेंस्टाइन' की सबसे बड़ी खासियत है डायरेक्टर गियर्मो डेल टोरो का ट्रीटमेंट. 200 साल पहले जन्मी कहानी के बाद से ही फ्रैंकेंस्टाइन का किरदार एक फ्रीक-मॉन्स्टर समझा जाता है. इसकी रेपुटेशन ऐसी है कि कई पॉपुलर एक्शन फिल्मों में, शरीर पर कटे-फटे के निशानों वाले भयानक फाइटर्स को बाकी लोग अक्सर 'फ्रैंकेंस्टाइन' बुलाते हैं. गॉथिक हॉरर में फ्रैंकेंस्टाइन ऐसे भय का चेहरा है, जिसके बारे में सोचने भर से किसी के प्राण शरीर छोड़ भागें. उसके सामने खड़े होना तो अलग बात है.

मगर गियर्मो की 'फ्रैंकेंस्टाइन' इस क्रीचर के भयानक शरीर, इसके जन्म के भयानक आईडिया से हटकर, इसके अंदर झांकने के कोशिश करती है. जैसे— एक महत्वपूर्ण किरदार सवाल उठाता है कि इस क्रीचर में एक-एक अंग अलग-अलग मर चुके व्यक्तियों से लगाया गया है... मगर इसमें आत्मा किसकी है? ये सवाल फिल्म के कनफ्लिक्ट का आधार है. और इसका जवाब फिल्म को वो इमोशनल गहराई देता है जो इसे एक आम हॉरर फिल्म से बहुत अलग बना देता है. 

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फिल्ममेकिंग के आर्ट का बेहतरीन नमूना है 'फ्रैंकेंस्टाइन'
इस दमदार इमोशनल आर्क के साथ 'फ्रैंकेंस्टाइन' की टेक्निकल ब्रिलियंस इसे अद्भुत सिनेमा बना देती है. फिल्म का एक-एक फ्रेम किसी पेंटिंग जैसा है. Dan Laustsen की सिनेमेटोग्राफी ने इस फिल्म को सांस रोक देने वाले खूबसूरत विजुअल्स दिए हैं. डायरेक्टर ने जो कलर पैलेट इस्तेमाल किया है वो इस गॉथिक हॉरर को, शानदार सिनेमेटिक एक्सपीरियंस बना देती है.

ग्रीन-गोल्डन के साथ ब्लू-वाइट और रेड कलर को गियर्मो डेल टोरो ने अलग-अलग फीलिंग्स को हाईलाइट करने के लिए जैसे इस्तेमाल किया है, वो उनकी मास्टरी दिखाता है. कलर्स के साथ शैडो का इस्तेमाल भी खूब है. कम्पोजर Alexandre Desplat का स्कोर सीन्स के मूड को और दमदार बना देता है. एडिटर Evan Schiff ने कहानी का फ्लो इस कदर दमदार रखा है कि ढाई घंटे के आसपास का ही रनटाइम होने के बावजूद, फिल्म महागाथा जैसी फील होती है. मगर दर्शक का ध्यान कहीं भी नहीं टूटता. 

एक्टर्स का दमदार काम 
'फ्रैंकेंस्टाइन' की दमदार स्टोरीटेलिंग और शानदार फिल्ममेकिंग को एक लेवल और ऊपर लेकर गए हैं इसके एक्टर्स. विक्टर फ्रैंकेंस्टाइन' के रोल में ऑस्कर आइजैक आपका पूरा ध्यान बांधे रखते हैं. उनके एक्सप्रेशन, सनक भरी बॉडी लैंग्वेज और आंखें आपको डॉक्टर फ्रैंकेंस्टाइन से सहानुभूति भी महसूस करवाती हैं और उससे घिन भी. जैकब एलोर्डी ने क्रीचर को अपनी आवाज और कोल्ड-एक्सप्रेशंस से जैसे जिंदा ही कर दिया है. उनके हिस्से एक बहुत भारी काम था... राक्षस दिखने वाले क्रीचर को इमोशनली वल्नरेबल दिखाना. और उनके परफेक्ट काम ने फिल्म का लेवल ऊंचा कर दिया है.

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तीन ऑस्कर जीत चुके क्रिस्टोफर वाल्ट्ज ने सधी हुई परफॉरमेंस से सपोर्टिंग किरदार को यादगार बना दिया है. फिल्म में दोनों महत्वपूर्ण महिला किरदार— विक्टर की मां और उसकी लव इंटरेस्ट, एक ही एक्ट्रेस मिया गॉथ ने निभाए हैं. लेकिन सिर्फ ये फैक्ट ही उनके टैलेंट की गवाही नहीं देता... उनका काम देखने बाद आप उनके फैन हो जाएंगे. 

कुल मिलाकर 'फ्रैंकेंस्टाइन' सिर्फ एक बेहतरीन हॉरर फिल्म ही नहीं, नई खोजों की जिम्मेदारी को लेकर अद्भुत कमेंट्री भी है. ये एक शानदार सिनेमेटिक एक्सपीरियंस है, जो इंडिया में नेटफ्लिक्स पर ही अवेलेबल है. इसके हर सीक्वेंस, हर फ्रेम को देखते हुए आप सिनेमा के लिए जॉय तो महसूस करते हैं. मगर साथ ही एक छोटा सा दुःख भी महसूस होता रहता है कि काश इसे बड़े पर्दे पर देख सकते. 

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