स्क्रीन फाड़ के बाहर कूद जाने को तैयार फिल्मी पुलिसवालों के बीच, 'दिल्ली क्राइम' की 'मैडम सर' और उनकी टीम ने अपनी अलग जगह बनाई है. शो का पहला सीजन निर्भया कांड की भयावह कहानी लेकर आया था. दूसरे सीजन में चड्ढी-बनियान गैंग के संगीन अपराधों की कहानी थी. 'दिल्ली क्राइम सीजन 3' 2012 के बेबी फलक केस पर बेस्ड है. ये केस भी उन मामलों में से एक है, जिन्होंने दिल्ली को दहला कर रख दिया था.
क्या है कहानी?
हमारी फेवरेट 'मैडम सर', डी आई जी वर्तिका चतुर्वेदी (शेफाली शाह) नॉर्थ ईस्ट में हैं. हथियारों की तस्करी की टिप पर, उनकी टीम एक ट्रक जब्त करती है. मगर इस ट्रक में हथियार नहीं, लड़कियां हैं. जिन्हें गाय-बकरी की तरह झुंड बनाकर बिठाया गया है. ये ट्रक दिल्ली पहुंचना था. इससे पहले भी एक ट्रक जाने की बात पता चलती है. एक लड़की की दादी ने उसके गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखवाई है. वर्तिका को शक है कि इस लड़की का केस, दिल्ली के लिए निकले इन ट्रकों से जुड़ा है.
इधर दिल्ली में, एम्स हॉस्पिटल में कोई एक दो साल की बच्ची को छोड़ गया है. इस बच्ची के साथ जो हुआ है, वो हैवानियत से कम नहीं है. बच्ची एक-एक सांस के लिए लड़ रही है. पता चलता है कि एक 20 साल की लड़की इसे छोड़ गई है. क्या वो इसकी मां है? खुद को 20 साल का बताती ये लड़की, 15-16 साल से ज्यादा की नहीं लगती. तो क्या उस बच्ची की मां कोई और है? ये केस दिल्ली में वर्तिका की जूनियर रही नीति (रसिका दुग्गल) के जिम्मे है. यहां भूपिंदर (राजेश तैलंग), विमला (जया भट्टाचार्य), जयराज (अनुराग अरोड़ा) जैसे पुराने किरदार फिर मिलते हैं.
वर्तिका चतुर्वेदी का केस अब एक इंटर-स्टेट मामला बन चुका है. वो दिल्ली आई हैं और उनकी पुरानी टीम अपनी 'मैडम सर' की वापसी से काफी खुश है. मगर पुलिस की नौकरी ऐसी खुशियों को टिकने का मौका देती ही कहां है! वर्तिका और नीति के केस आपस में जुड़े हैं. दोनों के सेंटर में एक सेक्स ट्रैफिकिंग रिंग है. इसे कोई बड़ी दीदी चलाती है, जिसे कोई नहीं पहचानता. ये रिंग कैसे चलती है, कौन कौन शामिल है, कोई नहीं जानता. तो इसका खुलासा होना भी कोई आसान चीज तो होगी नहीं!
शो का नाम 'दिल्ली क्राइम' है. सेटिंग आप जानते ही हैं, इसलिए पता है कि केस तो हल होगा ही. थ्रिल इसी बात का है कि कैसे हल होगा और क्या-क्या सामने आएगा? कहानी की सेटिंग क्लियर हो तो बात आती है ट्रीटमेंट पर. और ट्रीटमेंट में 'दिल्ली क्राइम' पहले सीजन से तीसरे सीजन तक आते-आते काफी बदला हुआ नजर आने लगा है.
फिल्मी होने लगा है ये वेब शो
2019 में जब 'दिल्ली क्राइम' का पहला सीजन आया था तो इसका डिज़ाइन, लुक, प्रेजेंटेशन बहुत अलग था. सिनेमेटोग्राफी, लाइटिंग, एडिटिंग और नैरेटिव डिज़ाइन का टेक्सचर ऑथेंटिसिटी क्रिएट करने पर था. माहौल ऐसा था कि कम पॉपुलर एक्टर्स के सीन, बीच से किसी को दिखा दिए जाएं तो वो इसे डॉक्यूमेंट्री समझ बैठे. पहले सीजन के डायरेक्टर और क्रिएटर रिची मेहता थे. दूसरे सीजन में उनकी जगह तरुण चोपड़ा डायरेक्टर बने. शो के टेक्सचर में बदलाव तो आप दूसरे सीजन में भी नोटिस कर लेंगे, मगर कहानी कहने की गंभीरता पहले सीजन जैसी ही थी. बल्कि दूसरे सीजन में कॉप्स के किरदारों की ह्युमन साइड भी खोजी गई. उनके घर-परिवार, पर्सनल रिश्ते कहानी का हिस्सा बने.
'दिल्ली क्राइम 3' में माहौल बहुत ज्यादा बदल चुका है. शो का डिज़ाइन और स्टोरी टेलिंग का टेक्सचर बहुत फिल्मी लगने लगा है. इस बार शो आपको कहानी सुनाने से ज्यादा, आपको उसके इमोशंस तक घसीटकर ले जाने की जिद में नजर आता है. जहां कहानी खुद ही असरदार हो, वहां असर दिखाने के लिए नाटकीयता की जरूरत रहती नहीं है. स्क्रीनप्ले की कमियों को स्टाइल से ढंकने की कोशिश नजर आती है. सबकुछ बहुत जोर देकर किया गया फील होता है.
ट्रैफिकिंग रैकेट की सरगना, मीना उर्फ बड़ी दीदी के रोल में हुमा कुरैशी दिखती तो दमदार हैं. लेकिन हरियाणवी एक्सेंट में बोलने की उनकी कोशिश बहुत साधारण है. बॉलीवुड स्टाइल हरियाणवी में वो 'मन्ने-तन्ने' वाले स्टीरियोटाइप से आगे नहीं निकल पातीं. मीना की साथी कुसुम के रोल में, सयानी गुप्ता कभी कंफर्टेबल नहीं लगतीं और ओवरपॉलिश्ड लगती हैं. लड़कियों की हैंडलर बनी मीता वशिष्ठ जरूर दमदार लगती हैं. लेकिन अंशुमन पुष्कर को एक सॉलिड, दिलचस्प किरदार में लेकर, 3 एपिसोड बाद ही उन्हें किनारे कर दिया गया है. उस किरदार का क्या हुआ, कुछ पता नहीं लगता.
मीना के खास साथी, विजय (सानो डी नेश) को शो रहस्यमयी बिल्ड अप देना शुरू करता है. मगर इस रहस्य को खोलता नहीं. इसी तरह क्लाइमेक्स में मीना जब वर्तिका की गन के निशाने पर खड़ी है, तो अपनी कहानी सुनाने लगती है. ये सब ऐसे होता है कि आपको कोई असर ही नहीं महसूस होता. ये स्टाइल अब फिल्मों में भी घिस चुका है. शो में ओवरस्मार्टनेस के भी बहुत लक्षण हैं.
क्लाइमेक्स में, मीना के चंगुल से बच निकली एक लड़की को उस कंटेनर का कलर भी नहीं याद आता, जो पिछले कई घंटों से उसके सामने खड़ा है. इसी कंटेनर में उसे ठूंस के स्मगल करने वाले हैं, और उसे कलर भी नहीं ध्यान. और जब याद आता है तो कंटेनर का नंबर भी याद आ जाता है. पहले एक जगह ये हिंट ड्रॉप किया गया है कि इस लड़की को मैथ्स बहुत पसंद है. क्लाइमेक्स में वो बताती है कि उसे कंटेनर का नंबर इसलिए याद है क्योंकि उसमें सारे प्राइम नंबर हैं.
मीना की तलाश में गई एक फीमेल ऑफिसर को ऐसे खोजा जाता है― रैंडम तस्वीरों में से, एक तस्वीर में, एक कोठी पर सोलर पैनल लगे हैं. खोजने वाले को सोलर पैनल से देखकर लगता है कि ये कोठी बाकियों से कुछ अलग है. इसलिए उसे तलाशा जाता है, तो लापता ऑफिसर मिलती है. मगर इसे खोजने, दिल्ली की रिसोर्स-सम्पन्न स्पेशल टास्क फोर्स से आई ऑफिसर, मोबाइल की लास्ट लोकेशन सर्च करना जरूरी नहीं समझती. ये ओवरस्मार्टनेस का चक्कर बहुत खराब होता है बाबू भैया... फिर दर्शक का ध्यान कहानी की गंभीरता नहीं, आपके स्मार्टनेस से कॉम्पिटीशन करने पर चला जाता है!
क्लोज-अप शॉट्स का गैर जरूरी इस्तेमाल शो में बहुत है. इस शो के पुलिस किरदार, बहुत अनुभवी और तरह-तरह के अपराध देख चुके लोग हैं. पहले दो सीजन्स में किसी भी नए तरह के अपराध पर उनका रिएक्शन 'शॉकिंग' नहीं होता था. वो बस इस क्षोभ से देखते थे कि इंसानियत इस हद तक गिर गई! तीसरे सीजन में शॉकिंग रिएक्शन इन किरदारों से ऐसे दिखते हैं, जैसे ये पुलिस महकमे के रंगरूट हैं. इन्होंने ऐसे भयानक अपराध देखे-सुने ही नहीं.
रिव्यू का फाइनल वर्डिक्ट
वो तो शुक्र है कि खुद कहानी में इतना वजन था कि 'दिल्ली क्राइम 3' इस ओवर-द-टॉप फिल्मी जोन में जाने के बाद भी असर करता है. पिछले दो सीजन से पक्के हो चुके इस कहानी के सारे किरदार, सारे एक्टर्स ने इतने बेहतरीन निभाए हैं कि सिर्फ इनके लिए ही शो पर रुका जा सकता है. साथ ही स्क्रीनप्ले में कहानी के सस्पेंस, पुलिस प्रोसीजर, ट्रैफिकिंग रिंग के काम करने के तौर-तरीके सॉलिड दिखाए गए हैं. इसलिए ध्यान भटकाने वाले एलिमेंट्स के बाद भी शो में आपका इंटरेस्ट बना रहता है. मगर ये जरूर है कि सीजन 3, 'दिल्ली क्राइम' का सबसे कमजोर सीजन है.
इस बार इसमें ये अवेयरनेस है कि 'मैं एक मशहूर वेब सीरीज फ्रैंचाइजी का तीसरा सीजन हूं!'. शो के इस एटीट्यूड को अगर आप हैंडल कर जाएं तो 'दिल्ली क्राइम 3' में एक घिनौने अपराध की चौंकाने वाली परतें इस तरह खुली हैं कि आप शॉक रह जाएंगे. इसे देखने के लिए इमोशनल हाजमा भी थोड़ा मजबूत रखना होगा.
सुबोध मिश्रा