कपिल शर्मा का शो हो, या क्रिकेट मैच का कमेंट्री बॉक्स... नवजोत सिंह सिद्धू के वन-लाइनर और तुकबंदियां कभी खत्म न होने वाला एक खजाना हैं. उनकी लाइनें ह्यूमर के तड़के के साथ कभी भी एंटरटेन करने से नहीं चूकतीं. मगर क्या आप ये सोच सकते हैं कि आइकॉनिक बॉलीवुड गीतकार, गुलजार के गीतों से नवजोत सिंह सिद्धू की लाइनों का क्या कनेक्शन बैठ सकता है?
अगर कोई कहे कि नवजोत सिंह सिद्धू का तकियाकलाम रहीं लाइनें, गुलजार साहब के किसी गाने की इंस्पिरेशन हैं, तो आप यकीन करेंगे? लेकिन ऐसा सच में हुआ है. सिद्धू साहब एंटरटेनमेंट के दूसरे छोर पर हैं और गुलजार साहब उनसे बिल्कुल उलट छोर पर. मगर फिर भी इन दोनों को एक पंजाबी लाइन जोड़ती है, जो गुलजार साहब के एक आइकॉनिक गाने की इंस्पिरेशन बनी.
जब 'रावण' बने थे अभिषेक बच्चन
मणिरत्नम की फिल्म 'रावण' (2010) अभिषेक बच्चन के करियर की सबसे दमदार फिल्मों में से एक है. इस फिल्म की कहानी जंगल में रहने वाले दलित आदिवासियों की थी जो सरकार के बर्ताव को अपने साथ अन्याय मानते थे. इसलिए सरकार भी उन्हें नक्सलियों की श्रेणी में रखकर देखती है.
ये आदिवासी समुदाय सरकार की भेजी पुलिस को अपने जंगल में दखल देने से रोकता है और कई बार उनसे टक्कर लेता है. अभिषेक बच्चन ने फिल्म में इस समुदाय के लीडर बीरा मुंडा का किरदार निभाया था. जिसे उसके समुदाय के लोग दस दिमाग वाला 'रावण' कहते थे. वो ना सिर्फ पुलिस से टक्कर लेता है बल्कि उनके सबसे सीनियर ऑफिसर देव प्रताप शर्मा (विक्रम) की पत्नी रागिनी (ऐश्वर्या राय) को किडनैप भी कर लेता है. इस तरह ये कहानी रामायण में राम और रावण का एक पैरेलल मॉडर्न नैरेटिव भी ले लेती है.
फिल्म में बीरा और उसके लोगों की बगावत को सलिब्रेट करने वाला एक गाना था 'ठोंक दे किल्ली'. ये उन गिने-चुने गानों में से है जिनमें आपको अभिषेक बच्चन जी-जान लगाकर डांस करते दिखते हैं. फिल्म में उनका लुक तो खतरनाक था ही, इस गाने में उनके स्टेप और एक्सप्रेशन भी खूंखार योद्धा वाले थे. गाने को आवाज दी थी सुखविंदर सिंह ने और पूरी फिल्म का म्यूजिक कंपोज किया था ए आर रहमान ने. गानों के लिरिक्स लिखे थे गुलजार ने.
गुलजार के गीतों की लिस्ट में जो गाने बहुत अलग लगते हैं, 'ठोंक दे किल्ली' उनमें से एक है. मगर उन्होंने इस गाने का जो बैकग्राउंड बताया, उससे पता चलता है कि इसे लिखने के लिए जितनी बारीक समझ और लिरिक्स लिखने का हुनर लगना था, उसके लिए परफेक्ट आदमी वही थे.
स्वतंत्रता आंदोलन से निकली लाइन से गुलजार ने बनाया दलित एंथम
नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'जिया जले' में गुलजार के साथ उनकी बातचीत का जिक्र है, जिसमें उन्होंने 'ठोंक दे किल्ली' का पूरा फलसफा समझाया है. इस किताब में गुलजार बताते हैं कि मणिरत्नम की इस फिल्म का हीरो, यानी बीरा एक दलित था. उसके लोगों का शोषण हो रहा था इसलिए वो सबके साथ मिलकर सरकार की भेजी हुई पुलिस पर पलटवार कर रहा था.
गुलजार ने बताया कि उन्हें इस गीत की सिचुएशन एक दलित एंथम जैसी लगी. उन्होंने कहा, 'जब हमारे सामने एक बागी होता है, एक रॉबिनहुड टाइप, तो हमें खुद से पूछना चाहिए कि ये आदमी जैसा है, वैसा क्यों है? और उसके एक्शन्स के पीछे क्या वजह है? रॉबिनहुड, राजा के अन्याय की वजह से रॉबिनहुड है. इसी तरह रावण भी और उसके लोग भी इसलिए लड़ रहे हैं क्योंकि उनके साथ सत्ता अन्याय कर रही है. जब मणि सर ने मुझे गाने का संदर्भ समझाया तो मुझे ये दलित एंथम जैसा लगा.'
इस गाने में कई बार आता है 'पिछड़ा-पिछड़ा कहकर हमको खूब चिढ़ाए दिल्ली.' ये एक लाइन गाने में, अभिषेक के लोगों का, देश की सरकार से संघर्ष दिखाती है. गाने की शरुआत में एक देसी खेल गिल्ली-डंडे का जिक्र आता है. जब गुलजार से पूछा गया कि 'ठोंक दे किल्ली' एक्सप्रेशन का आईडिया कैसे आया? तो उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि ये पंजाबी में बोली जाने वाली पॉपुलर लाइनों से आया है- चक दे फट्टे, ठोंक दे किल्ली, अज्ज जालंधर, ते कल दिल्ली.
गुलजार ने कहा, 'नवजोत सिंह सिद्धू ने इसे पॉपुलर किया है.' इन लाइनों के पीछे की कहानी बताते हुए उन्होंने कहा, 'ये लाइनें असल में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ एक पंजाबी स्वतंत्रता सेनानी का युद्धघोष हैं. फट्टे उठा लो, कीलें ठोंक दो, आज जालंधर, कल दिल्ली हमारी होगी. इसमें युद्धघोष की स्पिरिट है कि 'कल हम दिल्ली की सत्ता को चुनौती देंगे!' तो ये लाइनें यहां से आती हैं.' इस गाने पर अपनी बात खत्म करते हुए गुलजार ने कहा कि 'ठोंक दे किल्ली' एक व्यक्ति का पॉइंट ऑफ व्यू नहीं है, बल्कि ये एक पूरे समुदाय की रॉ एनर्जी जताता है.'
गुलजार ने इस गाने के पीछे की जो कहानी बताई, उसके साथ सुनने पर 'ठोंक दे किल्ली' का मतलब स्पष्ट समझ आता है. मणिरत्नम ने 'रावण' की जो पॉलिटिक्स और सिचुएशन गुलजार को दी, उसके हिसाब से देखने पर आपको ये फिल्म और भी बेहतर समझ आएगी.
सुबोध मिश्रा