'ये ढाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है, तो आदमी उठता नहीं... उठ जाता है!' सनी देओल को फिल्म दामिनी (1993) में ये डायलॉग बोले 30 साल से भी ज्यादा वक्त हो चुका है. मगर आज भी ये डायलॉग उनके साथ उनकी पहचान की तरह जुडा हुआ है. सनी कहीं भी जाएं, किसी भी मंच पर हों... लोग उनसे ये डायलॉग बुलवाए बिना जाने नहीं देते. 90s के ऑरिजिनल एक्शन हीरोज में से एक सनी दमदार पावर के लिए ये डायलॉग एक मुहावरा बन चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्क्रीन पर अपने मुक्के का वजन बताने वाले सनी पहले एक्शन हीरो नहीं थे?! दरअसल, उनसे पहले उनके स्वर्गीय पिता धर्मेंद्र ने स्क्रीन पर अपने मुक्के का वजन बताया था.
जब धर्मेंद्र ने स्क्रीन पर दिखाया था डोले का दम
सनी देओल ने 'ढाई किलो का हाथ' वाला डायलॉग 1993 में स्क्रीन पर मारा था. मगर उनके पिता धर्मेंद्र, उनसे करीब 20 साल पहले ही स्क्रीन पर एक ऐसा ही डायलॉग मार चुके थे. इस फिल्म का नाम था 'सीता और गीता', जो 1972 में रिलीज हुई थी.
'सीता और गीता' को लोग हेमा मालिनी के डबल रोल और धर्मेंद्र के साथ उनके गानों के लिए याद रखते हैं. मगर इसी फिल्म में एक सीन है जब धर्मेंद्र एक आदमी को धमकाते हुए उसे अपने मुक्के का वजन भर बता देते हैं. उन्होंने पर्दे पर डायलॉग मारा था— 'जिस दिन ये तीन किलो का हाथ पड़ जाएगा न, फिल्म के पोस्टर की तरह दीवार पर चिपका दूंगा.'
डायलॉग धर्मेंद्र ने मारा था, इसलिए लोगों को इस बात पर यकीन भी हुआ. क्योंकि तबतक धर्मेंद्र को इंडस्ट्री में डेब्यू किए एक दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका था. उनकी फिजिकल पावर और दमदार शरीर बीते कुछ सालों से, उनके किरदारों का एक बड़ा हिस्सा बन चुके थे.
डेब्यू फिल्म में ही बॉक्सर बने थे धर्मेंद्र
धर्मेंद्र की पहली फिल्म थी 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (1960). इस फिल्म में उन्होंने अपनी कमाई से दोस्तों को सपोर्ट करने वाले एक बॉक्सर का किरदार निभाया. पहली ही फिल्म में धर्मेंद्र के प्यारे से किरदार में, मस्क्युलिटी यानी शारीरिक दमखम का भी एक रोल था.
करियर के शुरुआती 5 सालों में धर्मेंद्र ने जो किरदार निभाए, वो थे तो प्यारे, रोमांटिक किरदार. मगर बीच-बीच में फिल्ममेकर्स उनकी मजबूत कद-काठी को भी इन किरदारों में फिट करने की जगह खोज लेते थे. उनका किरदार कभी जंगल की टिम्बर फैक्ट्री में काम कर रहा था, कभी इंस्पेक्टर था, कभी बॉक्सर. मगर 1966 में आई 'फूल और पत्थर' में धर्मेंद्र पहली बार उस अंदाज में नजर आए जो आगे चलकर उनका 'गरम-धरम' अवतार कहलाया.
इस फिल्म में उनका किरदार एक अपराधी था, जिसने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ हिंसा का रास्ता चुन लिया. ये धर्मेंद्र के करियर का लैंडमार्क किरदार है. इसे जनता ने ऐसा पसंद किया कि 'फूल और पत्थर' 1966 की सबसे बड़ी फिल्म बनी. इस ब्लॉकबस्टर फिल्म के बाद ही धर्मेंद्र को'जब याद किसी की आती है', 'इज्जत', 'शिकार' और 'आंखें' जैसी फिल्मों के एक्शन सीन्स में शरीर का दमखम दिखाने का मौका मिला. उनके किरदारों में शरीर की ताकत का ये इस्तेमाल, 1971 की ब्लॉकबस्टर 'मेरा गांव मेरा देश' के साथ पीक पर पहुंच गया. आम आदमी बनाम डाकू वाली थीम पर बनी इस फिल्म को भी लोग अक्सर 'शोले' के पीछे की इंस्पिरेशन मानते हैं.
'मेरा गांव और मेरा देश' में धर्मेंद्र ने ताबड़तोड़ एक्शन किया था. इसके बाद तो स्क्रीन पर उनकी ये एक्शन इमेज पक्की हो चुकी थी. इसलिए 1972 में जब धर्मेंद्र ने 'सीता और गीता' में डायलॉग मारा, और अपने मुक्के का वजन तीन किलो बताया, तो लोगों को उसपर यकीन भी हुआ. वैसे इस बात से एक और दिलचस्प सवाल भी उठता है— क्या 'दामिनी' में सनी का मुक्का ढाई किलो का इसलिए था कि उन्होंने पिता के सम्मान में अपना हाथ आधा किलो हल्का रखा था?!
सुबोध मिश्रा