बॉलीवुड के वेटरन एक्टर धर्मेंद्र अस्वस्थ हैं और हिंदी सिनेमा लवर्स उनके स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं. 8 नवंबर को ही उन्होंने अपना 89वां जन्मदिन मनाया था. सोमवार को अचानक तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था. धर्मेंद्र के चाहने वालों के लिए ये मुश्किल वक्त है. आखिर वो ही-मैन, जिसे उन्होंने हमेशा बड़े पर्दे पर जोर आजमाते देखा है, अस्पताल में है.
धर्मेंद्र... जो हिंदी सिनेमा लवर्स की अलग-अलग पीढ़ियों के लिए बड़े पर्दे पर मर्दानगी का आइकॉन रहे. पहलवान जैसे तगड़े शरीर की वजह से वो ना सिर्फ हिंदी सिनेमा के 'ही-मैन' बने, बल्कि फैन्स को सदा इस अवतार में ही याद रहे. उनका पंजाबी भोलेपन में मिक्स गुस्सा जब स्क्रीन पर फटा तो 'गरम-धरम' कहलाए. धर्मेंद्र... जो सलमान खान की नजर में 'सबसे खूबसूरत दिखने वाला पुरुष' थे. दिलीप कुमार को ऊपरवाले से एक ही शिकायत थी कि वो धर्मेंद्र जितने हैंडसम क्यों ना हुए!
और वो धर्मेंद्र... जिनकी पहली फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' 1960 में रिलीज हुई थी. पिछली फिल्म 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' अभी पिछले ही साल. और आखिरी फिल्म 'इक्कीस' अभी दिसंबर में रिलीज होनी बाकी है. 65 साल और 300 से ज्यादा फिल्मों वाले शानदार करियर, दिलदार स्वभाव और बेजोड़ शख्सियत के साथ धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा के लेजेंड हैं, आइकॉन हैं. उनकी ये विरासत अपने आप में किसी किवंदंती जैसी है.
इस किवदंती में कहीं-कहीं पर जीवन की खुरदुरी रियलिटी के इंटरवल भी हैं, जिन्हें अपने हिस्से की आलोचना भी मिली. मगर ओपनिंग एक्ट से लेकर इस एंटी-क्लाइमेक्स तक धर्मेंद्र का जीवन, मोस्टली एक किसान परिवार से निकले मस्तमौला लड़के की ब्लॉकबस्टर कहानी ही है.
जिंदगी का रियलिटी शो
धर्मेंद्र की फिल्मों में एंट्री, सपना सच कर देने वाले किसी रियलिटी शो से कम नहीं थी. पंजाब में, लुधियाना जिले के नसराली गांव से आने वाला ये लड़का, स्क्रीन पर दिलीप कुमार और मोतीलाल को देखकर हीरो बनने का सपना पाल बैठा था. उस दौर में एक सरकारी स्कूल मास्टर के बेटे के लिए ये सपना पूरा करना आसान कहां रहा होगा. मगर पंजाबी जट्ट खून... चांस लिए बिना कहां मानने वाला था. अटैची उठाई और मुंबई चले आए, जिसे तब बॉम्बे कहा जाता था.
स्टूडियोज के बाहर काम मिलने का इंतजार करना इतना थकाऊ था कि धर्मेंद्र एक दिन फ्रंटियर मेल पकड़कर वापस पंजाब निकलने वाले थे. भला हो पंजाब से ही किस्मत आजमाने आए मनोज कुमार का, जो धर्मेंद्र और शशि कपूर के साथ इन लाइनों में लगा करते थे. मनोज ने रोका, मोटिवेट किया तो धर्मेंद्र ने कुछ और दिन ट्राई करने के लिए मन को मनाया. 1958 में महबूब स्टूडियो में चल रहे फिल्मफेयर के टैलेंट कॉन्टेस्ट की देन रही कि डायरेक्टर बिमल रॉय ने धर्मेंद्र को स्पॉट किया.
जिन देव आनंद को धर्मेंद्र पर्दे पर देखते थे, उन्होंने पर्सनली धर्मेंद्र को अपने मेकअप रूम में बुलाया. देव साहब ने इस लड़के के साथ लंच किया और उसे मोटिवेट किया कि तुममें बहुत पोटेंशियल है. अर्जुन हिंगोरानी ने अपनी फिल्म 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' से इस यंग एक्टर को ब्रेक दिया. ऐसा लगता है कि ये धर्मेंद्र की पहली फिल्म का टाइटल नहीं था, फिल्मों के लिए उनकी फीलिंग थी.
एक सुपरस्टार की एंट्री
धर्मेंद्र की पहली फिल्म बस आई-गई हो गई. मगर दूसरी फिल्म 'शोला और शबनम' बड़ी कामयाबी लेकर आई. कुछ और फिल्में भी चलीं मगर बड़ा कमाल हुआ उन्हीं बिमल रॉय की फिल्म से, जिन्होंने टैलेंट कॉन्टेस्ट में धर्मेंद्र को स्पॉट किया था. अपने दौर के आइकॉनिक फिल्ममेकर बिमल ने धर्मेंद्र को 'बंदिनी' (1963) में कास्ट किया. अशोक कुमार और नूतन के लीड वाली इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला, तो लोगों ने धर्मेंद्र को भी नोटिस किया.
'आई मिलन की बेला' (1964) के लिए उन्हें पहली बार फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में नॉमिनेशन मिला. उसी साल आई देश की पहली वॉर ड्रामा फिल्म 'हकीकत' से पहचान मिली. 1965 की मल्टीस्टारर 'काजल' हिट हुई, तो सपोर्टिंग एक्टर धर्मेंद्र को भी फायदा हुआ. 'फूल और पत्थर' (1966) में लीड रोल मिला और फिल्म चल भी निकली. उसी साल धर्मेंद्र की 'देवर', 'ममता', 'आए दिन बहार के' और 'अनुपमा' भी हिट हुईं. नेशनल अवॉर्ड तो धर्मेंद्र को कभी नहीं मिला मगर 'अनुपमा' में परफॉरमेंस के लिए उन्हें अलग से मेंशन मिला. 60 के दशक के आखिरी सालों में स्टार बन चुके धर्मेंद्र के लिए 70s की शुरुआत सुपरस्टारडम लेकर आई.
'जीवन मृत्यु' तगड़ी ब्लॉकबस्टर बनी, तो 'मेरा गांव मेरा देश' ने धर्मेंद्र को एक्शन स्टार बना दिया. उसके बाद तो 'राजा जानी', 'सीता और गीता', 'लोफर', 'जुगनू' और 'यादों की बारात' जैसी फिल्में ब्लॉकबस्टर होती चली गईं. इनके पीछे-पीछे 'दोस्त', 'कहानी किस्मत की', 'पत्थर और पायल'... आखिर कितने नाम याद किए जाएं! धर्मेंद्र एक्टर ही नहीं थे... एक्टिंग मशीन थे. एक साल में दर्जन भर फिल्में कर डालते थे, जिनमें आधी से ज्यादा कामयाब होती थीं.
इस कामयाबी के बीच ही 'तुम हसीं मैं जवां' (1970) के सेट पर धर्मेंद्र की मुलाकात हेमा मालिनी से हुई. मोहब्बत की कुछ चिंगारियां उठीं, जो 1975 में 'शोले' के आने तक दावानल बन चुकी थीं. ये फिल्म खुद इंडियन सिनेमा की परिभाषा बन गई थी और धर्मेंद्र का किरदार वीरू, एक लेजेंड. वो धर्मेंद्र के लिए बहुत बड़ा साल था. इसमें उन्होंने 'चुपके चुपके' और 'प्रतिज्ञा' जैसी सुपरहिट्स भी दी थीं. उस साल उन्हें जो स्टारडम का ईंधन मिला उसने अगले डेढ़ दशक तक उन्हें रॉकेट बनाए रखा.
ऐसा रॉकेट जो एक वक्त, साल भर में अपने स्टार बेटों से ज्यादा फिल्मों में दिख रहा था. ये दौर 90s का था. इस दौर में जब नए यंग स्टार्स की खेप ने जब हिंदी सिनेमा के पुराने खिलाड़ियों को ओवरटेक किया, तब जाकर कहीं धर्मेंद्र के करियर में स्पीड ब्रेकर आए.
जब धर्मेंद्र ने की दूसरी शादी
एक दशक की लव स्टोरी और साथ में कई फिल्में करने के बाद धर्मेंद्र और हेमा ने 2 मई 1980 को शादी कर ली थी. मगर इस शादी ने अपने हिस्से के विवाद भी देखे. धर्मेंद्र जब पंजाब से बॉम्बे के लिए निकले भी नहीं थे, तो 19 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी. उनकी पत्नी प्रकाश कौर ने चार बच्चों को जन्म दिया था— सनी, बॉबी, विजेता और अजीता. इन बच्चों के पिता का हेमा मालिनी से शादी करना, अखबारों ने हल्के में नहीं लिया था. मगर प्रकाश कौर ने इन सब बातों के बाद ऐसा बयान दिया था जिसने सारे विवाद पर लगाम लगा दी.
दैनिक भास्कर की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार प्रकाश कौर का कहना था कि धर्मेंद्र ही क्या, कोई भी पुरुष हेमा को उनसे ज्यादा तरजीह देता. उन्होंने हेमा से सहानुभूति भी जताई थी कि उन्हें भी अपनी घर-परिवार-समाज में बहुत कुछ झेलना पड़ रहा होगा. मगर साथ ही प्रकाश कौर ने ये भी कहा था, 'मैं हेमा की जगह होती तो शायद ऐसा नहीं करती. एक महिला के तौर पर मैं उनकी फीलिंग्स समझ सकती हूं. मगर एक पत्नी और मां के तौर पर मैं इन्हें स्वीकार नहीं करती.'
धर्मेंद्र और हेमा की लव स्टोरी और शादी सिर्फ गॉसिप का हिस्सा नहीं रही. एक लंबे साथ में बदली. इस लंबे साथ का असर दोनों की बातों में अभी तक नजर आता है. कुछ लोगों ने दोनों के पॉलिटिकल करियर को भी एक दूसरे से जोड़कर देखा है.
'तेरा पीछा ना मैं छोड़ूंगा सोणिए'
हेमा ने 1999 में बीजेपी के कैंडिडेट बने साथी एक्टर विनोद खन्ना के लिए चुनाव प्रचार किया था और 2004 में उन्होंने ऑफिशियली बीजेपी जॉइन कर ली. फरवरी में हेमा ने पार्टी जॉइन की और मार्च में धर्मेंद्र भी बीजेपी में आ गए. पार्टी ने उन्हें बीकानेर से टिकट दिया.
चुनाव में कैम्पेन के दौरान धर्मेंद्र ने एक भाषण दिया था जिसपर विवाद हुआ था. आखिर स्वभाव से थे तो वो मस्तमौला जट्ट ही! और पॉलिटिक्स में ये बात अक्सर नुकसान पहुंचाती है. लेकिन धर्मेंद्र ने चुनाव तो जीत लिया और सांसद भी बने. संसद में वो दिखते कम थे, इस बात की भी आलोचना हुई. आखिरकार, 2009 में उन्होंने पॉलिटिक्स छोड़ दी. बाद में धर्मेंद्र ने कहा भी कि उन्हें पॉलिटिक्स की ए-बी-सी-डी भी नहीं आती.
शानदार कमबैक और सेकंड इनिंग्स
90s के अंत की तरफ फिल्मों में जिसका सिक्का कमजोर पड़ा, वो हीरो धर्मेंद्र थे. मगर इसके बाद शुरू हुआ कैरेक्टर एक्टर धर्मेंद्र का दौर. बीच में वो 'प्यार किया तो डरना क्या' (1998) जैसी फिल्मों में सपोर्टिंग रोल निभाते नजर आए. मगर 2003 के बाद बड़े पर्दे से कुछ सालों के लिए गायब हुए.
उनका कमबैक आया साल 2007 में. 'जॉनी गद्दार', 'अपने' और 'लाइफ इन अ मेट्रो' के साथ उन्होंने फिर से दिखाया कि सुपरस्टार धर्मेंद्र भले अब बीते दौर का हुआ. मगर एक्टर धर्मेंद्र अभी भी एक्टिंग के मंच का ही-मैन है. एक्टिंग का यही मंझा हुआ हीरा 2023 की फिल्म 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में फिर से लोगों का दिल लूट ले गया. इसी लेजेंड ने 2024 में 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' के एक सीन से माहौल बना दिया.
90 साल की दहलीज से बस थोड़े ही दूर धर्मेंद्र के शरीर पर तो उम्र का असर दिखने ही लगा था. मगर पंजाब का वो यमला जट्ट, जो अपनी सादा-बयानी और खुशनुमा शख्सियत के लिए दिलों पर राज करता रहा... अपने जन्मदिन के कुछ ही दिनों बाद, हॉस्पिटल के बेड पर होगा, ये किसी ने नहीं सोचा था. दुनिया भर में धर्मेंद्र के करोड़ों फैन्स के साथ, हम भी उनके जल्दी स्वस्थ होने की कामना करते हैं
सुबोध मिश्रा