1990 में आई फिल्म 'आशिकी' ने ऐसा कमाल किया था, जिसके कसीदे आज भी पढ़े जाते हैं. अपने दौर की ये सबसे बड़ी म्यूजिकल हिट, दो न्यूकमर्स को लीड रोल में लेकर आई थी. 'आशिकी' की रोमांटिक कहानी ने तो लोगों को बाद में दीवाना बनाया ही लेकिन सबसे पहला जादू किया था फिल्म के गानों ने.
'नजर के सामने' से लेकर 'तू मेरी जिंदगी है' और 'दिल का आलम' तक, इस फिल्म का कोई भी गाना ऐसा नहीं था जो जनता को जुबानी याद न हो. मगर ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि असल में 'आशिकी' के गानों का इतना बड़ा हिट हो जाना कोई सरप्राइज नहीं था क्योंकि असल में ये गाने फिल्म के लिए नहीं लिखे गए थे बल्कि इन गानों के लिए ये फिल्म लिखी गई थी.
ऐसे शुरू हुआ था 'आशिकी' के गानों का सफर
टी-सीरीज (उस समय सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड) के फाउंडर गुलशन कुमार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक बहुत बड़ा नाम थे. संगीत की दुनिया में आने वाले हर व्यक्ति का ख्वाब होता था कि एक बार उसे गुलशन कुमार के साथ काम करने का मौका मिल जाए तो जिंदगी सेट हो जाएगी.
सबसे ज्यादा गानों के बोल लिखने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके गीतकार समीर और म्यूजिक कंपोजर जोड़ी नदीम-श्रवण भी इस मौके की तलाश में थे. उनका ये मौका 'आशिकी' फिल्म की शक्ल में आया. मगर कहानी यहां से शुरू नहीं होती. इस कहानी के शुरुआत होती है 'बाप नंबरी बेटा दस नंबरी' (1990) फिल्म से. नदीम-श्रवण और समीर जब इस फिल्म के गानों पर काम कर रहे थे, तब सिंगर अनुराधा पौडवाल उनके काम से बहुत इम्प्रेस हुईं. अनुराधा ने उन्हें कहा कि वो जाकर गुलशन कुमार से मिल लें.
ये तिकड़ी गुलशन कुमार से मिलने पहुंची तो उन्होंने इनके गाने पूरे सब्र के साथ सुने और तारीफ भी की. 'लिरिक्स बाय समीर' किताब में समीर बताते हैं, 'सिटिंग के बाद उन्होंने कहा कि वो अभी किसी फिल्म प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर रहे. इस बात से हम निराश हो गए, लेकिन गुलशन जी ने जैसे हमारा चेहरा पढ़ लिया. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- आप अपनी सारी गजलें मुझे मेरे करंट प्रोजेक्ट के लिए दे सकते हैं, जो एक म्यूजिक बैंक हैं..' उनका प्लान ये था कि एक म्यूजिक बैंक बनाया जाए, जहां से फिल्म प्रोड्यूसर अपनी जरूरत और कहानी के मूड के हिसाब से गानें उठा सकें. और अगर ये गाने कहीं नहीं इस्तेमाल हुए तो इनका एक एल्बम बना दिया जाएगा.
गानों से इंस्पायर होकर महेश भट्ट ने लिखी 'आशिकी'
इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ और पहला गाना बना 'मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में..'. इस बीच समीर के लिखे गानों वाली एक और बड़ी फिल्म, आमिर खान और माधुरी दीक्षित स्टारर 'दिल' सुपरहिट हो गई. समीर और नदीम-श्रवण ने तय किया कि इस नए एल्बम का नाम 'चाहत' रखा जाएगा. जब फिल्ममेकर मुकेश भट्ट को इस प्रोजेक्ट का पता चला, तो उन्होंने गुलशन से ये एल्बम सुनने की इजाजत मांगी. उन्हें 'चाहत' एल्बम के कुछ गाने सुनाए गए. मुकेश को गाने तो बहुत पसंद आए लेकिन उन्होंने कहा, 'फिलहाल मेरे पास ऐसी कोई कहानी नहीं है जिसमें मैं ये गाने इस्तेमाल कर सकूं. मगर मैं इन गानों को ध्यान में रखते हुए कोई कहानी जरूर सोच सकता हूं.'
समीर और नदीम-श्रवण को बहुत खुशी हुई कि इस बार वो फिल्म के लिए गाने नहीं बना रहे थे, बल्कि उनके गानों को इस्तेमाल करने के लिए फिल्म बनाई जा रही थी. आखिरकार, एक दिन महेश भट्ट का उन्हें फोन आया और उन्होंने बताया कि उन्हें एक रोमांटिक कहानी सूझी है. मगर उन्होंने इस कहानी का नाम 'चाहत' नहीं 'आशिकी' रखा है और कहा कि एक गाना इस टाइटल को इस्तेमाल करते हुए लिखा जाए. तब जाकर समीर ने लिरिक्स लिखे 'सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए.'
गानों पर बनी ये कहानी 'आशिकी' अगस्त 1990 में रिलीज हुई. मगर इसका म्यूजिक एल्बम दिसंबर 1989 में रिलीज हो चुका था जिसके 2 करोड़ यूनिट बिके. उस समय तक ये बॉलीवुड की सबसे ज्यादा बिकने वाली म्यूजिक एल्बम थी. फिल्म आने के 6 महीने पहले ही पॉपुलर हो चुके गानों ने ऐसा माहौल बनाया कि मात्र 30 लाख के बजट में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 5 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था. 'आशिकी' अपने समय की सिर्फ सबसे पॉपुलर म्यूजिकल हिट ही नहीं थी, बल्कि बहुत बड़ी सरप्राइज हिट भी बनी. और आज, 34 साल बाद भी बॉलीवुड फैन्स को इसके सारे गानों के लिरिक्स याद रहते हैं.
सुबोध मिश्रा