उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजधानी लखनऊ सहित 9 जिलों की 59 सीटों पर चौथे चरण के मतदान हो रहे हैं. चौथे चरण की वोटिंग से चंद घंटे पहले बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की. अखिलेश के साथ मयंक की तस्वीर आने के बाद सूबे की सियासत गर्मा गई है, जिसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. इसे लखनऊ से प्रयागराज तक राजनीतिक संदेश देने की रणनीति मानी जा रही है?
बीजेपी ने रीता के बेटे को नहीं दिया टिकट
बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे मयंक जोशी के लिए बीजेपी से लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से टिकट मांग रही थीं. इसके लिए रीता बहुगुणा ने अपनी लोकसभा सीट छोड़ने तक का प्रस्ताव दिया था. इसके बावजूद बीजेपी ने उनके बेटे को टिकट नहीं दिया और इस सीट से बृजेश पाठक को प्रत्याशी बना दिया. इसके बाद से ही मयंक जोशी के सपा में जाने की चर्चाएं चल रही थीं.
सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी मंगलवार को आखिरकार सपा की चौखट पर पहुंच ही गए. सूबे में चौथे फेज के मतदान की पूर्व संध्या (22 फरवरी) पर मयंक जोशी ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच करीब घंटेभर बातचीत हुई. इसे सियासी नजरिए से अहम माना जा रहा है. अखिलेश-मयंक जोशी की मुलाकात को ब्राह्मण वोटबैंक को सपा के पक्ष में गोलबंद करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.
हालांकि, अभी भी मयंक जोशी के सपा में शामिल होने का आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है. लेकिन, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस तरह से लखनऊ में वोटिंग से चंद घंटे पहले मयंक जोशी के साथ फोटो शेयर की है और शिष्टाचार मुलाकात की बात की है. ऐसे में चौथे चरण की लखनऊ की सीटों पर सियासी प्रभाव पड़ सकता खासकर कैंट सीट पर, जिससे मयंक जोशी अपनी दावेदारी कर रहे थे.
लखनऊ कैंट सीट पर उत्तराखंडी वोट अहम
लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर बड़ी संख्या में ब्राह्मण मतदाता हैं, जिसमें ज्यादातर उत्तराखंड के लोग हैं. रीता बहुगुणा जोशी संसद बनने से पहले लखनऊ कैंट सीट से दो बार विधायक रह चुकी हैं. 2012 में पहली बार इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनी थीं और दोबारा 2017 में बीजेपी से चुनी गई थीं, जिसके बाद योगी सरकार में मंत्री बनीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में रीता बहुगुणा प्रयागराज से सांसद बन गईं, जिसके बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उपचुनाव में कैंट सीट पर बीजेपी से सुरेश तिवारी विधायक बने थे.
वहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट सीट से रीता ने अपने बेटे मयंक जोशी के लिए बीजेपी से टिकट की मांग रखी. रीता ने उस समय कहा था, 'मेरा बेटा 12 साल से बीजेपी में काम कर रहा है. ऐसे में उसने टिकट मांगा है. अगर पार्टी उनके बेटे को टिकट देती है, तो वे सांसद पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं. इतना ही नहीं वो 2024 लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ेंगी. बीजेपी ने मयंक के बजाय कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक को प्रत्याशी बना दिया.
लखनऊ से प्रयागराज तक असर होगा?
माना जा रहा है कि इसी के बाद से मयंक जोशी नाराज चल रहे थे और रीता बहुगुणा जोशी अभी तक कहीं चुनावी प्रचार में नजर नहीं आई हैं. ऐसे में लखनऊ में वोटिंग से ठीक एक दिन पहले मयंक जोशी और अखिलेश यादव के बीच मुलाकात की तस्वीर सामने आई, जिसका सियासी असर लखनऊ की कैंट सीट पर पड़ने के साथ-साथ पांचवे चरण में प्रयागराज जिले की सीटों पर भी पड़ सकता है, जहां से रीता बहुगुणा जोशी सांसद हैं.
लखनऊ और प्रयागराज दोनों ही रीता बहुगुणा जोशी की कर्मभूमि रही है. रीता बहुगुणा जोशी प्रयागराज से पहले मेयर रही हैं तो अब सांसद हैं. लखनऊ की कैंट सीट से दो बार विधायक रही हैं. इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट से राजनाथ सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं और दूसरे नंबर पर रही थी. ऐसे में लखनऊ और प्रयागराज दोनों ही जगह पर रीता बहुगणा जोशी का सियासी प्रभाव माना जाता है.
सपा ने ब्राह्मणों को दिया सियासी संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मतदान से पहले मयंक जोशी को घर बुलाकर बड़ा सियासी दांव चला है. एक तरफ लखनऊ कैंट सीट पर रीता बहुगुणा के समर्थकों को सियासी संदेश दिया तो दूसरी तरफ ब्राह्मण वोटबैंक को साधने का प्रयास किया है. यूपी का चुनाव अब जिस तरह से अवध और पूर्वांचल के इलाके में है, जहां पर ब्राह्मण वोटर काफी अहम है. योगी सरकार पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगातार विपक्ष लगाता रहा है, जिसके चलते ब्राह्मणों को साधने के लिए तमाम पार्टियां सक्रिय है. ऐसे में अखिलेश ने मयंक जोशी के जरिए बड़ा सियासी दांव चला है.
जानिए कौन हैं मयंक जोशी?
रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने पढ़ाई पूरी करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी भी की थी. मयंक जोशी अपनी मां रीता बहुगुणा के लिए सबसे पहले 2012 में लखनऊ कैंट सीट पर चुनावी प्रचार की कमान संभाली थी. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए कैंट विधानसभा सीट पर प्रचार अभियान में उतरे थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी मां के लिए लगातार प्रचार अभियान में जुटे रहे. ऐसे में लखनऊ और प्रयागराज दोनों जगह पर मयंक जोशी की अपनी भी सियासी पकड़ है. ऐसे में अब देखना यह होगा कि ऐन वक्त पर मयंक जोशी की अखिलेश मुलाकात सपा के लिए कितना फायदेमंद साबित होती है?
कुबूल अहमद