पंजाब: कैप्टन अमरिंदर का नई पार्टी का ऐलान, चन्नी से ज्यादा क्यों चिंतित है अकाली दल?

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साफ कर दिया है कि पंजाब में वो नई पार्टी बनाएंगे और चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ेंगे. कैप्टन की नई सियासी पारी से पंजाब में कांग्रेस से ज्यादा शिरोमणी अकाली दल क्यों चिंतित नजर आ रही है? 

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कैप्टन अमरिंदर सिंह कैप्टन अमरिंदर सिंह

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 20 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 3:10 PM IST
  • कैप्टन अमरिंदर बना रहे नई सियासी पार्टी
  • कांग्रेस से ज्यादा अकाली दल की बढ़ी चिंता
  • पंजाप में बीजेपी के साथ कैप्टन गठबंधन करेंगे

पंजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ और कांग्रेस को अलविदा कह चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2022 के चुनावी रण में उतरने का ऐलान कर दिया है. कैप्टन ने साफ कर दिया है कि पंजाब में वो नई पार्टी बनाएंगे और चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ेंगे. कैप्टन की नई सियासी पारी से पंजाब में कांग्रेस से ज्यादा शिरोमणी अकाली दल क्यों चिंतित नजर आ रही है? 

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अमरिंदर सिंह राज्‍य में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नया सियासी तानाबाना बुनने में जुटे हुए हैं. वह नया सियासी समीकरण बनाकर राज्‍य में फिर से सरकार बनाने की तैयारी में लगे हैं. वह इसके लिए बीजेपी व अन्‍य दलों के साथ गठजोड़ कर 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए नया सियासी समीकरण बनाएंगे. कैप्‍टन ने अपना नया सियासी रोडमैप भी तैयार कर लिया है.

बीजेपी और अकाली विरोधी से गठबंधन

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के एक माह बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भविष्य को लेकर अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं. नई राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (बादल) से अलग हो चुके सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत ब्रह्मपुरा की पार्टी साथ गठबंधन करने के साथ-साथ बीजेपी के साथ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. 

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कैप्टन अमरिंदर का अब बीजेपी को लेकर कहना है कि वह सांप्रदायिक व मुसलमान विरोधी पार्टी नहीं है. कैप्टन का यह बयान इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि चर्चा रही है कि बीजेपी कैप्टन के माध्यम से चल रहे किसान आंदोलन का हल निकालना चाहती है. कैप्टन भी बीजेपी से गठजोड़ से पहले कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का सही समाधान निकलने की बात कही है.

पंजाब में तीसरा फ्रंट बनाने में जुटे कैप्टन

कैप्‍टन अमरिंदर पंजाब में तीसरा फ्रंट बनाने की तैयारी में हैं, जिसमें उनकी पार्टी अहम भूमिका निभाएगी. कैप्टन ने कहा कि वह पंजाब में नई पार्टी बना रहे हैं, जिसके बाद वे बीजेपी और अकाली दल से टूटे रणजीत ब्रह्मपुरा और सुखदेव ढींढसा ग्रुप से गठजोड़ करेंगे. फिर पंजाब चुनाव 2022 लड़ेंगे. इससे साफ है कि उनकी नजर अकाली दल के सिख वोटर और पंजाब के हिंदू वोटबैंक पर है. ऐसे में कैप्टन ने अकाली दल की चिंता बढ़ा दी है. 

नई पार्टी बनाने के कैप्टन के ऐलान को लेकर अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया गया तो वे तुरंत दिल्ली पहुंच गए. मीडिया से कहा कि वे कपूरथला हाउस अपना सामान लेने जा रहे हैं. फिर शाम को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने पहुंच गए. पिछले 5 सालों से ही पता चल रहा था कि वे बीजेपी की भाषा बोल रहे हैं और अब उसी के इशारे पर पार्टी बना रहे हैं. 

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विपक्षी दलों की चिंता बढ़ाएंगे कैप्टन

दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह का खुद का पंजाब की सियासत में जनाधार है. वो मोदी लहर में अमृतसर से लोकसभा सीट जीत चुके हैं और भाजपा के दमदार चेहरा रहे अरुण जेटली को हरा चुके हैं. कैप्टन ने इशारा कर दिया है कि वे बीजेपी से नाराज नेता, अकाली दल और आप से टूट चुके नेताओं को साथ लेकर चलेंगे. कैप्टन की नजर अकाली दल के नेताओं पर है, जिन्हें अपने साथ मिलाकर बड़ी सियासी ताकत बनना चाहते हैं. 

कैप्टन अमरिंदर खुलकर कह रहे हैं कि उनका फोकस 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर पंजाब में सरकार बनाने पर रहेगा. बीजेपी से किसी तरह की वैचारिक दिक्कत के मामले में कैप्टन ने कहा कि वह पंजाब के साथ खड़े हैं. उनके लिए पंजाब के हित ही सबसे ऊपर हैं. पंजाब की सियासत में कैप्टन दिग्गज नेता माने जाते हैं और पांच दशक के राजनीतिक करियर में तीन बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे और दो बार मुख्यमंत्री रहे. 

अमरिंदर सिंह ने अपने दम पर पंजाब में दो बार कांग्रेस को सत्ता में लाने का काम किया है. 2002 और 2017 के विधानसभा चुनाव में अमरिंदर के चेहरे और सियासी दमखम पर कांग्रेस को जीत मिली है. बादल परिवार को टक्कर देने में सक्षम माने जाते हैं.

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पंजाब में अगर प्रकाश सिंह बादल और उनके परिवार के सियासी रसूख को अब तक कोई पटखनी दे सका है तो वे अमरिंदर ही हैं. ऐसे में सिख जाट वोटों पर अमरिंदर की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है, जो अकाली दल को कोर वोट है. इसीलिए कांग्रेस से ज्यादा अकाली दल की चिंता कैप्टन की नई पार्टी से बढ़ गई है. 

 

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