सीमांचल का सियासी समीकरण... ओवैसी फैक्टर से किसको फायदा, किसका नुकसान?

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को बिहार के सीमांचल में तीन जिलों में वोटिंग होगी जिसके लिए नामांकन की आखिरी तारीख भी खत्म हो चुकी है. ऐसे में तमाम उम्मीदवार मुस्लिम बहुल इस इलाके में वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश में लगे हुए हैं. ऐसे में ग्राउंड जीरो पर क्या हैं हालात और वोटर इस बार किसका देंगे साथ ये जानने के लिए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट.

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असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सीमांचल क्षेत्र में जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है (फाइल फोटो) असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सीमांचल क्षेत्र में जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है (फाइल फोटो)

रोहित कुमार सिंह

  • पूर्णिया,
  • 06 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन इलाकों में वोटिंग होनी है उसमें सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सीमांचल का है जो एक मुस्लिम बहुल इलाका है. सीमांचल के चार जिले जिसमें किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया शामिल है और सभी मुस्लिम बहुल इलाके हैं. यहां पर मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये चारों लोकसभा सीट इस हिसाब से सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

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पिछले कुछ सालों में "हैदराबाद की पार्टी" के नाम से मशहूर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में काम करना शुरू किया है और जिसका नतीजा 2020 में देखने को मिला जब ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में इस इलाके में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी.

बिहार में कोई स्थानीय मुस्लिम चेहरा या नेता नहीं होने का फायदा ओवैसी ने इस इलाके में रहने वाले मुसलमान के बीच उठाया और आज ओवैसी सीमांचल में घर-घर का नाम बन चुके हैं. पिछले तकरीबन 10 सालों से सीमांचल के पिछड़ेपन को बड़ा मुद्दा बनाते हुए ओवैसी लगातार यहां काम कर रहे हैं और इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इस इलाके से लड़ने का ऐलान किया है.

पहले उन्होंने ऐलान किया था कि सीमांचल के सभी सीटों के साथ ही बिहार के दूसरे हिस्सों में भी कुल 16 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, हालांकि अब ओवैसी ने दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव में सिर्फ किशनगंज में ही अपना उम्मीदवार उतारा है.

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किशनगंज और ओवैसी कनेक्शन

सबसे पहले बात करें किशनगंज की तो किशनगंज इन चारों मुस्लिम बहुल जिलों में सबसे ज्यादा मुसलमान आबादी वाला जिला है जहां पर मुस्लिम समुदाय की आबादी तकरीबन 68 फीसदी है. किशनगंज लोकसभा सीट के अंतर्गत किशनगंज और पूर्णिया जिले के कुछ हिस्से आते हैं.

पिछले तीन लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो यह सीट कांग्रेस का गढ़ माना जा सकता है. 2009 और 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार असरार उल हक चुनाव जीत कर सांसद बने थे. 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. मोहम्मद जावेद चुनाव जीत का संसद पहुंचे थे.

दिलचस्प बात यह है कि 2019 में जब एनडीए ने 40 में से 39 सीट बिहार में जीती थी तो उस समय किशनगंज एक मात्र सीट थी जहां पर महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान में सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव लड़ा और कई सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 5 सीटों पर जीत हासिल की. जिन पांच सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने जीत हासिल की थी उनमें से दो किशनगंज लोकसभा अंतर्गत बहादुरगंज, कोचाधामन और तीन पूर्णिया जिले के क्षेत्र शामिल थे.

2024 लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन में किशनगंज लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में गई है और एक बार फिर से कांग्रेस ने मौजूदा सांसद डॉ जावेद को टिकट दिया है वहीं एनडीए की तरफ से जनता दल यूनाइटेड ने मुजाहिद आलम को अपना उम्मीदवार बनाया है.

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दिलचस्प बात यह है कि ओवैसी ने अपनी पार्टी की तरफ से बिहार प्रदेश के अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान को किशनगंज लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है. सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी के हस्तक्षेप को लेकर महागठबंधन में भी साफ तौर पर हलचल तेज है. 2020 में ओवैसी ने जिस तरीके से महागठबंधन का खेल इस इलाके में बिगाड़ दिया था उसी का डर इस बार लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस को सता रहा है.

राजद नेता तेजस्वी यादव कई मौके पर सीमांचल की जनता को ओवैसी की दखलअंदाजी को लेकर सचेत कर चुके हैं और उन्हें बीजेपी का B टीम बताया है. उन्होंने वोटरों को आगाह किया है कि ओवैसी जैसे लोग सीमांचल में केवल वोट काटते हैं और बीजेपी को फायदा पहुंचाते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है और खासकर युवाओं का कि बिहार में मुसलमानों का कोई बड़ा नेता नहीं है ऐसे में ओवैसी में ही उन्हें अपना भविष्य नजर आता है.

मुसलमान समाज में कई युवा यह भी मानते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अच्छा काम किया है. वहीं मुसलमान समाज का युवा वर्ग बिहार में तेजस्वी यादव को लेकर भी काफी नाराज नजर आता है. मुसलमान समाज में युवा वर्गों से बात करने के दौरान पता चला कि वह तेजस्वी यादव से कई मुद्दों को लेकर काफी नाराज हैं और उनका मानना है कि राजद ने केवल मुसलमान का वोट इस्तेमाल किया है.

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पूर्णिया में पप्पू यादव का खेला !!

दूसरे चरण में सीमांचल के जिन अन्य इलाकों में चुनाव होना है उसमें पूर्णिया भी शामिल है जो एक और मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. पूर्णिया लोकसभा सीट में पूर्णिया और कटिहार जिले के कुछ इलाके शामिल है. आबादी के हिसाब से देखें तो पूर्णिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या मुसलमान की है जो तकरीबन 40 फीसदी हैं. पूर्णिया में साक्षरता दर भी केवल 41 फ़ीसदी ही है.

पूर्णिया लोकसभा सीट अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती है जिसमें कस्बा, बनमनखी, रुपौली, धमदाहा, पूर्णिया और कोढ़ा शामिल है. पिछले तीन लोकसभा चुनाव पर नजर डाले तो आंकड़ों के मुताबिक पूर्णिया में एनडीए का दबदबा है जो साफ तौर पर नजर आता है.

2009 में पप्पू सिंह यहां भाजपा से सांसद चुने गए थे. 2014 और 2019 में जनता दल यूनाइटेड से संतोष कुशवाहा यहां लगातार चुनाव जीत रहे हैं. 2024 के चुनाव में भी यह सीट जनता दल यूनाइटेड के खाते में ही गई है और एक बार फिर से संतोष कुशवाहा ही यहां से एनडीए के प्रत्याशी है.

हालांकि, इस बार एनडीए का खेल बिगाड़ने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड से विधायक बीमा भारती ने पार्टी से इस्तीफा देकर चुनाव से ठीक पहले आरजेडी का दामन थाम लिया और महागठबंधन की उम्मीदवार बन गईं. बीमा भारती पांच बार की विधायक हैं.

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दिलचस्प बात यह है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच होने वाले इस मुख्य मुकाबले में अब एक त्रिकोणीय मोड़ आ गया है क्योंकि अब पूर्व सांसद पप्पू यादव भी इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हो गए हैं.

इस बार के चुनाव में पप्पू यादव ने जिद पकड़ ली कि वह किसी भी कीमत पर पूर्णिया से चुनाव लड़ेंगे और ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का विलय भी कांग्रेस में कर दिया था मगर जब यह सीट आरजेडी के खाते में चली गई तो पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. 

पूर्णिया सीट से कांग्रेस के टिकट पर खुद को उम्मीदवार बनाए जाने के लिए पप्पू यादव ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से बार-बार गुहार लगाई मगर लालू ने उनकी एक नहीं सुनी और बीमा भारती के रूप में अपना उम्मीदवार उतार दिया. गौर करने वाली बात यह है कि खुद पप्पू यादव भी पूर्णिया से ही चार बार निर्दलीय के रूप में चुनाव जीत चुके हैं और एक बार फिर से वह निर्दलीय यहां से चुनाव मैदान में हैं.

कटिहार में कांटे की टक्कर 

सीमांचल क्षेत्र का एक और मुस्लिम बहुल इलाका है कटिहार. कटिहार जिले में तकरीबन 45 फीसदी मुस्लिम आबादी है जो कि किसी भी चुनाव में निर्णायक साबित होती है. कटिहार लोकसभा जिले के 6 विधानसभा सीटों से मिलकर बना हुआ है जिसमें कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर, मंझरी और बरारी शामिल है.

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कटिहार लोकसभा चुनाव के पिछले तीन नतीजों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि यहां के मतदाता की कोई स्पष्ट राय उम्मीदवार या पार्टी को लेकर नहीं है. 2009 में जहां बीजेपी से निखिल चौधरी यहां से चुनाव जीतकर सांसद बने थे, वहीं 2014 में एनसीपी के तारीक अनवर ने चुनाव जीता था और 2019 में जनता दल यूनाइटेड से दुलालचंद गोस्वामी सांसद बने थे.

लोकसभा चुनाव में कटिहार में इस बार मुकाबला जनता दल यूनाइटेड के दुलाल चंद गोस्वामी और कांग्रेस के तारीक अनवर के बीच है.  कुछ वर्ष पहले तारीक अनवर एनसीपी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. तारीक अनवर पूर्व में पांच बार कटिहार से सांसद रह चुके हैं. दुलालचंद गोस्वामी पहली बार 2019 में सांसद बने थे और इस बार फिर नीतीश कुमार ने उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट दिया है.

हालांकि, कटिहार से मौजूदा सांसद और जदयू उम्मीदवार दुलालचंद गोस्वामी का मानना है कि कटिहार में जात-पात के नाम पर वोटिंग नहीं होती है क्योंकि अगर मुसलमान केवल महागठबंधन के लिए वोट करते तो फिर 2019 में एनडीए से उनकी जीत नहीं होती.

अररिया का राजनीतिक समीकरण

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो सीमांचल के चार जिले जो मुस्लिम बहुल है उसमें तीसरे नंबर पर अररिया जिला आता है जहां पर तकरीबन 43 फीसदी मुस्लिम आबादी है. किसी भी चुनाव में मुस्लिम आबादी यहां भी निर्णायक भूमिका निभाती है. अररिया में चुनाव तीसरे चरण में होना है. अररिया लोकसभा सीट पर अगर पिछले तीन चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले तो है सीट पर कभी बीजेपी तो कभी राजद का दबदबा रहता है.

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2009 में अररिया से बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप सिंह सांसद चुने गए थे और फिर 2014 में राजद से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन संसद पहुंचे थे. 2019 में एक बार फिर भाजपा ने यह सीट जीती थी और प्रदीप सिंह सांसद बन गए थे.

जहां तक सीमांचल में ओवैसी फैक्टर का सवाल है तो किशनगंज जिले में जहां एक तरीके से साफ है कि ओवैसी वहां के वोटरों की पसंद बन चुके हैं खासकर युवा वोटरों की वहीं अररिया की बात करें तो यहां पर मुस्लिम मतदाता साफ कहते हैं कि ओवैसी बीजेपी की B टीम हैं और उनका मानना है कि ओवैसी भी विभाजनकारी राजनीति करते हैं जिससे भाजपा को फायदा पहुंचता है.

अररिया के मुस्लिम मतदाताओं में इस बार लोकसभा चुनाव में महागठबंधन पर ज्यादा भरोसा है. हालांकि, अभी तक राजद ने अररिया लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है. मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि तेजस्वी यादव ने पिछले कुछ महीनों में बेहतर काम किया है और रोजगार के बेहतर विकल्प पैदा किए हैं और ऐसे में महागठबंधन पर ही मुस्लिम समाज इस बार भरोसा कर रहा है.

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