यूपी उपचुनाव: करहल में यादव Vs यादव... BJP प्रत्याशी अनुजेश की पैठ बढ़ा रही सपा की टेंशन! पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट

Karhal By Election: करहल विधानसभा सीट का मुकाबला दिलचस्प हो चला है. बीजेपी ने यहां 'यादव बनाम यादव' की लड़ाई खड़ी कर दी है. सपा से जहां तेज प्रताप यादव उम्मीदवार हैं, वहीं बीजेपी ने अनुजेश यादव को मैदान में उतारा है. दोनों उम्मीदवार आपस में रिश्तेदार हैं, लेकिन अब रिश्तों में काफी तल्खी है. जो चुनाव में एक मुद्दा बन रही है.

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करहल उपचुनाव: तेज प्रताप यादव और अनुजेश यादव करहल उपचुनाव: तेज प्रताप यादव और अनुजेश यादव

कुमार अभिषेक

  • करहल ,
  • 13 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:31 AM IST

यूपी उपचुनाव में करहल विधानसभा सीट का मुकाबला दिलचस्प हो चला है. बीजेपी ने यहां 'यादव बनाम यादव' की लड़ाई खड़ी कर दी है. जो सीट अभी तक समाजवादी पार्टी की सबसे सुरक्षित सीट थी, पिछले कई दशकों से बीजेपी जिस सीट को नहीं जीत सकी है, उस करहल सीट पर पार्टी ने सपा के सामने यादव परिवार (मुलायम परिवार) के ही एक रिश्तेदार को मैदान में उतारकर चुनावी लड़ाई रोमांचक बना दी है. 

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गौरतलब हो कि मुलायम सिंह यादव का परिवार अगर सूबे का सबसे बड़ा सियासी परिवार है तो बीजेपी ने जिस अनुजेश यादव को करहल से टिकट दिया है उनका घोरावन नामी परिवार सबसे पुराना सियासी परिवार है. दोनों परिवारों मे रिश्तेदारियां हैं लेकिन इस उपचुनाव ने सबसे बड़े सियासी परिवार और सबसे पुराने सियासी परिवार को आमने-सामने खड़ा कर दिया है. 

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बता दें कि अनुजेश यादव रिश्ते में मुलायम सिंह यादव के दामाद हैं. अखिलेश यादव के बहनोई हैं और सपा उम्मीदवार तेज प्रताप यादव के फूफा हैं. अनुजेश से जब बड़े सियासी परिवार की बात 'आजतक' ने की तो वो बिफर पड़े, बोले कि क्या हमसे बड़ा परिवार या पुराना परिवार मुलायम सिंह का है, 1952 में मेरे दादा सदन में रहे हैं. 

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अनुजेश यादव ने आगे कहा कि जब उनकी तरफ से भरे मंच से यह कह दिया गया कि हमारे परिवार के साथ कोई रिश्ता नहीं तो हम भी उनसे (मुलायम परिवार) कोई संबंध रखने के लिए लालायित नहीं है. 

दो परिवारों में चुनावी युद्ध! 

मालूम हो कि अनुजेश की मां उर्मिला यादव दो बार समाजवादी पार्टी से विधायक रह चुकी हैं. वो इस चुनाव में अपने बेटे और बीजेपी उम्मीदवार अनुजेश के लिए गांव-गांव वोट मांग रही हैं. गांव में चौपाल लगाकर लोगों को एक रहने की बात कह रही हैं. साथ ही अपने परिवार से पुराना वास्ता देकर बीजेपी के लिए वोट मांग रही हैं. लेकिन जैसे ही परिवार और रिश्ते की बात आती है तो उनके सब्र का बांध भी टूट जाता है. 

उर्मिला यादव कहती है कि इस परिवार (मुलायम परिवार) ने हमें छोड़ा है, हमें पार्टी से निकला है. जब पार्टी से निकाल दिया तो अब कैसा साथ और कैसा रिश्ता? तेज प्रताप यादव भी हमारे परिवार से रिश्ते खत्म मानते हैं. वे इन दिनों हर उस यादव परिवार के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं, जहां लगता है कि ये यादव वोट उनसे खिसक जाएगा.  

दरअसल, रिश्तेदारी पर जब बात निकली तो तेज प्रताप यादव ने कह दिया था कि मैंने तो फूफा और भतीजा सुना था, दो दामादों की बात तो मैं पहली बार सुन रहा हूं. वैसे उनसे अब रिश्ते नहीं है, क्योंकि जो बीजेपी का हो गया वो सपा का नहीं हो सकता. रही बात परिवार और पार्टी छोड़ने की तो पार्टी ने कभी इस परिवार को नहीं छोड़ा. इन लोगों (अनुजेश फैमिली) ने खुद ही पार्टी छोड़ी और एक बार नहीं दो-दो बार पार्टी छोड़कर बाहर गए. इसलिए उनके आरोप निराधार हैं.

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फिलहाल, करहल के इस चुनाव में लड़ाई यादव वोटों पर आकर टिक गई है. अमूमन हर बार यादव वोट एकतरफा सपा को जाता रहा है और यही सपा के जीत की वजह भी रही है. लेकिन इस बार यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की असली लड़ाई है. 2002 में जब बीजेपी इस सीट को जीती थी, तब बीजेपी के यादव उम्मीदवार (शोभारण) ही मैदान में थे. 

करहल का जातीय समीकरण 

इस सीट पर सबसे ज्यादा 1 लाख 25 हजार यादव मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर शाक्य वोट माना जाता है, जो तकरीबन 35 हजार है. वहीं, जाटव वोट 30 हजार है. इसके अलावा क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 18 हजार, पाल 18 हजार, लोधी 13 हजार और 15 हजार मुसलमान मतदाता हैं. 

बीजेपी इस बार यादवों के अलावा सभी गैर यादव ओबीसी वोटों को अपने साथ रखने की जद्दोजहद में है. यादव बहुल इलाकों में अभी अखिलेश यादव का वही जलवा बरकरार है और जो भी मिले सपा के ही समर्थक मिले. लेकिन दूसरी ओबीसी और सवर्ण बिरादरियों में बीजेपी के लिए जोर दिखाई देता है. 

बसपा ने शाक्य उम्मीदवार पर दांव लगाया
 
करहल उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने शाक्य उम्मीदवार पर दांव लगाया है. बसपा को जाटव और शाक्य बिरादरी का एक धड़ा वोट कर सकता है, लेकिन क्या यह जीत के लिए काफी है, शायद नहीं! ऐसा कई बसपा समर्थक भी मान रहे हैं. हालांकि, बसपा की वजह से करहल का मुकाबला और दिलचस्प हो गया है. 

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स्थानीय पत्रकार भी मानते हैं कि इस बार बीजेपी का असर यादवों में बढ़ेगा लेकिन यह बीजेपी की वजह से नहीं बल्कि 'यादव बनाम यादव' यानी अनुजेश यादव की वजह से बढ़ने वाला है और यही समाजवादी पार्टी के लिए टेंशन वाली बात है. 

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