महागठबंधन का घोषणा पत्र साझा लेकिन चुनावी जोखिम RJD के सिर–माथे, आखिर क्या है 'तेजस्वी प्रण' के मायने?

बिहार चुनाव 2025 से पहले तेजस्वी यादव ने “तेजस्वी प्रण” घोषणापत्र जारी किया. हर घर नौकरी, महिलाओं को 2500 महीना, संविदाकर्मियों का स्थायीकरण और आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने जैसे वादे किए. महागठबंधन ने तेजस्वी को केंद्र में रखकर जनता से “संपूर्ण बिहार, संपूर्ण परिवर्तन” का वादा किया. अब देखना है कि जनता उनके इस “प्रण” को कितना स्वीकार करती है.

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रोजगार से लेकर महिला सशक्तिकरण तक वादों की झड़ी लगा दी गई (Photo: PTI) रोजगार से लेकर महिला सशक्तिकरण तक वादों की झड़ी लगा दी गई (Photo: PTI)

शशि भूषण कुमार

  • पटना,
  • 28 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:19 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग के ठीक आठ दिन पहले महागठबंधन अपना साझा चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिया. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन में शामिल अन्य घटक दलों के नेताओं ने साझा घोषणा पत्र जारी किया. इससे पहले 23 अक्टूबर को तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन के चुनावी मैदान में उतरने पर मुहर लगी थी और आज जब साझा घोषणा पत्र जारी किया गया, तब भी तेजस्वी का ही चेहरा सामने नजर आया.

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संपूर्ण बिहार के संपूर्ण परिवर्तन के लिए "तेजस्वी प्रतिज्ञा" और "तेजस्वी प्रण" के नाम से इस साझा घोषणा पत्र को जारी किया गया. घोषणा पत्र के ऊपर तेजस्वी की बड़ी तस्वीर यह संदेश देने के लिए काफी थी कि इस बार महागठबंधन ने न केवल तेजस्वी यादव को सीएम उम्मीदवार घोषित किया है, बल्कि तेजस्वी के संकल्प पर ही विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के बीच जाने की रणनीति बनाई है.

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, लेकिन उस वक्त "न्याय और बदलाव" के स्लोगन के साथ तेजस्वी और उनका गठबंधन जनता के बीच गया था. अब "तेजस्वी प्रण" के साथ जनता के बीच जाने की रणनीति आखिर क्या कहती है, यह समझने की जरूरत है.

तेजस्वी ने खोला वादों का पिटारा (Photo: PTI)

साल 2020 में तेजस्वी यादव ने "न्याय और बदलाव" के नारे के साथ सबसे प्रमुख एजेंडा रोजगार को बनाया था, लेकिन पांच साल बाद परिस्थितियां बदल चुकी हैं. तेजस्वी बीते पांच साल में विरोधी दल के नेता भी रहे और 17 महीने तक नीतीश कुमार के साथ सत्ता में भी रहे.

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सत्ता में रहते हुए तेजस्वी ने रोजगार जैसे एजेंडे पर काम भी करके दिखाया. अब बदली हुई परिस्थितियों में तेजस्वी ने रोजगार से दो कदम आगे बढ़ते हुए महिला सशक्तिकरण समेत समाज के अन्य वर्गों के लिए भी अपने और महागठबंधन के चुनावी घोषणा पत्र में वादे किए हैं.

संविदाकर्मियों, मजदूरों और अल्पसंख्यकों के लिए वादों की झड़ी

तेजस्वी ने अपनी सरकार बनने पर जहां एक तरफ सवा करोड़ रोजगार देने का वादा किया है, वहीं "हर घर नौकरी" का ऐलान वह पहले ही कर चुके हैं. पांच साल पहले तेजस्वी यादव भले ही नीतीश कुमार के साथ खड़ी महिला वोट बैंक की ताकत को न समझ पाए हों, लेकिन अब वे समझ चुके हैं कि महिला वोटर जीत में निर्णायक भूमिका निभाती हैं. यही वजह है कि तेजस्वी ने "MAA" और "BETI" जैसी योजनाओं के ज़रिए यह ऐलान किया है कि महिलाओं को हर महीने आर्थिक मदद दी जाएगी.

महिला वोट बैंक में जीविका दीदियों की ताकत को समझते हुए तेजस्वी ने उनकी सेवा को स्थाई करने और 30 हजार रुपए मासिक वेतन देने का वादा किया है. इतना ही नहीं, तेजस्वी ने नीतीश सरकार से नाराज़ और अपनी पुरानी मांगों को लेकर आंदोलनरत संविदाकर्मियों के लिए भी घोषणाओं का पिटारा खोल दिया है. तेजस्वी की नजर 2020 में संविदाकर्मियों के वोट बैंक पर नहीं गई थी, लेकिन इस बार उन्होंने उनकी सेवा स्थाई करने का कार्ड खेलकर एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है.

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महिलाओं के वोट बैंक पर सीधी नजर

महिला वोटर्स को साधने के लिए तेजस्वी चुनाव की घोषणा से पहले से ही "माई बहिन योजना" को लेकर चर्चा कर रहे थे. लेकिन नीतीश सरकार ने चुनाव की घोषणा से पहले ही "मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना" लागू करते हुए महिला लाभार्थियों के खाते में 10 हजार रुपए की पहली आर्थिक मदद भेज दी.

तेजस्वी, एनडीए सरकार के इस फैसले को महागठबंधन के साझा घोषणा पत्र के ज़रिए काउंटर करते नजर आए हैं. उन्होंने हर महीने महिलाओं को 2500 रुपये की आर्थिक मदद देने की पेशकश की है. इतना ही नहीं, तेजस्वी यादव ने कामगारों को भी साझा घोषणा पत्र में किए गए वादों के ज़रिए आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है.

आरक्षण का नया दांव और सामाजिक समीकरण

आरक्षण के दायरे को बढ़ाने वाला दाव तेजस्वी यादव का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जा सकता है. तेजस्वी ने सरकार में रहते हुए बिहार में जाति आधारित गणना पूरी होने के बाद आरक्षण बढ़ाने का फैसला लागू करके दिखाया था.

बाद में यह मामला न्यायालय पहुंचा और अब तेजस्वी, आरक्षण के बढ़े हुए दायरे को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर उसे स्थाई करवाने की बात कर रहे हैं. तेजस्वी की नजर त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों पर भी है, और उनके चुनावी वादों में यह तबका भी शामिल है.

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साल 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुस्लिम वर्ग के लिए अलग से कोई घोषणा नहीं की थी. सीमांचल के इलाके में तेजस्वी यादव को मुस्लिम बिरादरी ने झटका दिया था. ओवैसी की पार्टी ने यहां आरजेडी को कई सीटों पर मात दी थी. मौजूदा चुनाव में तेजस्वी यह गलती नहीं दोहराना चाहते.

यह भी पढ़ें: 'नौकरी का वादा सिर्फ दिखावा, तेजस्वी अब परिवार में भी अकेले...', नीतीश-सम्राट का महागठबंधन के घोषणापत्र पर हमला

शायद यही वजह है कि उन्होंने अल्पसंख्यक वोटरों के बिखराव को रोकने के लिए वक्फ कानून को बिहार में अपनी सरकार बनने के बाद लागू करने के साथ-साथ अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर भी साझा घोषणा पत्र में कई वादे किए हैं.

राजनीतिक जोखिम और नई पहचान की लड़ाई

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि 2020 में तेजस्वी यादव की ओर से "न्याय और बदलाव" के स्लोगन के साथ जो चुनावी वादे और एजेंडा जनता के बीच रखे गए थे, वे उतने परिपक्व नहीं थे. तेजस्वी लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय की परछाई से बहुत आगे नहीं बढ़ पाए थे, लेकिन अब उन्होंने अपने चेहरे के साथ नए वादों के ज़रिए समाज के हर वर्ग के वोटरों तक पहुंचने की कोशिश की है.

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हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि तेजस्वी का यह चुनावी कार्ड जनता के बीच कितना असर दिखाता है. यह कहना गलत नहीं होगा कि मौजूदा चुनाव में सबसे बड़ा जोखिम खुद तेजस्वी यादव ने उठाया है. तेजस्वी सीएम उम्मीदवार हैं, उनके चेहरे के साथ "तेजस्वी प्रण" का स्लोगन लिए साझा चुनावी घोषणा पत्र जनता के सामने है. तेजस्वी के संकल्प को अगर बिहार की जनता स्वीकार करती है तो वे बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन अगर जनता ने इसे खारिज किया तो यह उनकी राजनीति का सबसे बड़ा झटका साबित हो सकता है.

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