पहले बाबरी और अब नई पार्टी... हुमायूं कबीर की मुस्लिम पॉलिटिक्स ममता बनर्जी की कितनी मुश्किल बढ़ाएगी?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सियासी ध्रुवीकरण का भी दांव चला जाने लगा है. बाबरी मस्जिद की नींव रखकर सुर्खियों में आए हुमायूं कबीर ने अब अपनी नई राजनीतिक पार्टी का भी ऐलान कर दिया है. हुमायूं की राजनीति जिस दिशा में बढ़ रही है, उससे ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं?

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बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी के लिए चुनौती बन रहे हुमायूं कबीर (Photo-ITG) बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी के लिए चुनौती बन रहे हुमायूं कबीर (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:52 PM IST

बाबरी मस्जिद की नींव रखने के चलते टीएमसी से बाहर हुए हुमायूं कबीर ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर दिया है. हुमायूं कबीर ने अपनी पार्टी का नाम जनता उन्नयन पार्टी रखा है. अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में हुमायूं कबीर पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि ममता बनर्जी की मुस्लिम पॉलिटिक्स के लिए हुमायूं कबीर कितनी मुश्किलें बढ़ाएंगे?

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पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे हिंदू-मुस्लिम की राजनीति तेज हो गई है. इसका मुख्य केंद्र मुर्शिदाबाद जिला बना हुआ है. यहां टीएमसी से बाहर किए गए हुमायूं कबीर मुसलमानों के बीच अपनी सियासी पकड़ बनाने में जुटे हैं.

हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद के बेलडांगा इलाके में एक नई बाबरी मस्जिद बनाने की नींव रखी. इसके चलते ममता बनर्जी ने हुमायूं कबीर को टीएमसी के बाहर का रास्ता दिखा दिया. ऐसे में हुमायूं कबीर ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं, जिसका औपचारिक ऐलान सोमवार को मुर्शिदाबाद के रेजीनगर में आयोजित सभा करेंगे.

हुमायूं कबीर ने बनाया नया दल

टीएमसी से निष्कासित होने के बाद अब हुमायूं कबीर अपनी खुद की पार्टी बनाने का फैसला किया है. इसका ऐलान अपने समर्थकों के बीच करेंगे, जिसके लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं. कह चुके हैं कि उनकी पार्टी सिर्फ आम लोगों के विकास की बात करेगी, जिसके आधार पर जनता उन्नयन पार्टी नाम रखा गया है. उन्नयन का मतलब ही विकास होता है. उन्होंने अपनी पार्टी के चुनाव निशान के लिए पहली पसंद 'टेबल' और दूसरी पसंद जोड़े गुलाब बताया.

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बंगाल का किंगमेकर बनने का प्लान

हुमायूं कबीर ने बंगाल की सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया है. इसके साथ ही हुमायूं दावा कर रहे हैं कि बंगाल के किंगमेकर बनकर उभरेंगे. हुमायूं के मुताबिक वो बंगाल में बीजेपी और टीएमसी दोनों के ख़िलाफ़ लड़ेंगे और कांग्रेस, सीपीआईएम और ओवैसी की पार्टी से गठबंधन से इनकार नहीं किया है.

हुमायूं ने मुर्शिदाबाद में 10 सीट जीतने का दावा कर दिया है. मुर्शिदाबाद की 22 सीटों में से बीस पर टीएमसी का क़ब्ज़ा है और दो पर बीजेपी ने जीती थी. इस बार मुर्शिदाबाद की राजनीति में हुमायूं कबीर अफनी दावा ठोक दिया है.

ममता को सीधे चुनौती दे रहे हुमायूं

हालांकि, हुमायूं कबीर ने कहा है कि उनकी पार्टी का मुकाबला न सिर्फ बीजेपी से होगा, बल्कि ममता बनर्जी की टीएमसी से भी होगा. हुमायूं कबीर ने मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा, 'अब मुसलमान ममता के बहकावे में नहीं आएंगे, क्योंकि मुसलमान समझ गए कि ममता सिर्फ उनका वोट लेती हैं, लेकिन उनके लिए कुछ नहीं करती है. ऐसे में हुमायूं कबीर जो सियासी संदेश मुसलमानों को देना चाह रहे हैं, वो जमीन पर पहुंच रहा है.

मुस्लिमों को साधने का प्लान

हुमायूं कबीर बाबरी मस्जिद के बहाने अपनी राजनीतिक दशा और दिशा तय कर ली है. बाबरी मस्जिद बनाने के बहाने हुमायूं कबीर मुर्शिदाबाद के मुस्लिम वोटों को साधने का दांव चला तो अब नई पार्टी बनाकर बंगाल के मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं. इस तरह से उनकी नजर बंगाल के 30 फीसदी मुस्लिम वोटों पर है, जो फिलहाल ममता बनर्जी का कोर वोटबैंक बना हुआ है.

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हुमायूं कबीर की सियासत ममता बनर्जी के लिए चिंता का सबब बन गए हैं. हुमायूं कबीर अपनी पार्टी बनाकर ममता को चैलेंज करना चाहते हैं. यह घटना बंगाल की राजनीति में नया मोड़ ला सकती है. मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी 70 फीसदी से अधिक है. यहां का मुस्लिम वोट बैंक तय करता है कि कौन विधायक बनेगा. ऐसे में हुमायूं कबीर खुद को मुस्लिमों के नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं.

ममता की बढ़ाएंगे मुश्किल?

बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जो सूबे के 294 सीटों में से करीब-करीब 100 पर निर्णयक भूमिका में हैं. 2010 के बाद से बंगाल में मुस्लिम मतदाता टीएमसी का कोर वोटबैंक माना जाता है. ममता बनर्जी की लगातार तीन बार जीत में मुस्लिम वोटरों की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर मुस्लिम वोटों को बांट सकता है.

हुमायूं के कदम से ममता बनर्जी की टीएमसी के लिए मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं, क्योंकि हुमायूं कबीर अब अपनी नई पार्टी बनाकर सीधा मुकाबला करने का दावा कर रहे हैंय हुमायूं कबीर का नया दल टीएमसी के लिए चुनौती बन सकता है, खासकर उन जिलों में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. हुमायूं कबीर का यह कदम बंगाल की राजनीति में नया समीकरण पैदा कर सकता है.

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हुमायूं कबीर जिस तरह से कह रहे हैं कि मुस्लिमों को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए सत्‍ताधारी पार्टी इस्‍तेमाल करती रही हैं. इन्‍हें काफी चीजों से वंचित रखा गया है. हम उनके हक की आवाज उठाएंगे. अभी हमें कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है, लेकिन जल्‍द ही लोगों को पता चल जाएगा कि हुमायूं कबीर क्‍या है. बाबरी मस्जिद का नाम और नया दल दोनों ही मुद्दे तृणमूल कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन सकते हैं. सवाल यह है कि क्या हुमायूं का यह दांव उन्हें बंगाल की सियासत में बड़ा खिलाड़ी बनाएगा या यह सिर्फ एक शोर साबित होगा?

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