बिहार में जब-जब बढ़ी वोटिंग तब लौटी नीतीश सरकार, क्या इस बार भी दिखा पाएंगे कमाल?

बिहार की सत्ता नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द 20 सालों से सिमटी है. 2005 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनी थे, उसके बाद से चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, वोटिंग पैटर्न बता रहा है कि जब-जब वोटिंग बढ़ी है तो नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में लौटी है?

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बिहार में क्या नीतीश कुमार का दिखेगा चमत्कार (Photo-ITG) बिहार में क्या नीतीश कुमार का दिखेगा चमत्कार (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के 121 सीटों के उम्मीदवारों की किस्मत गुरुवार को ईवीएम में कैद हो गई है. पहले फेज़ की 121 सीटों पर 64.69 फीसदी मतदान हुआ है जबकि 2020 में इन सीटों पर 56.1 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी. 

पहले चरण की वोटिंग पैटर्न के लिहाज से करीब साढ़े आठ फीसदी मतदान इस बार ज़्यादा हुआ है, जो बिहार के इतिहास में एक रिकॉर्ड बन गया.  बिहार में बीस साल से जब-जब वोटिंग बढ़ी है तो नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी हुई है. 

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बिहार के पहले चरण की वोटिंग के आंकड़े को देखें तो यह साफ है कि बिहार में अभी तक की सबसे ज़्यादा वोटिंग हुई है. इससे पहले राज्य में सबसे अधिक मतदान साल 2000 के चुनाव में सामने आया था. तब पूरे बिहार में सर्वाधिक 62.57 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस बार करीब 64.69 प्रतिशत वोटिंग हुई. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार में पिछले 20 साल का वोटिंग पैटर्न क्या रहा?

किसके पक्ष में पहले चरण की वोटिंग?

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पहले चरण की वोटिंग पैटर्न को सियासी दल अपने-अपने पक्ष में बता रहे हैं। महागठबंधन के नेता नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बता रहे हैं तो एनडीए अपने पक्ष में दावा कर रहा है. वोटिंग पैटर्न के लिहाज़ से देखें तो बिहार में जब-जब पांच फ़ीसदी से ज़्यादा वोटिंग बढ़ी है तो सरकार बदल गई.

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हालांकि, एक हकीकत यह भी है कि वोटिंग बढ़ने का सियासी लाभ नीतीश कुमार को मिला है. पिछले 20 साल के विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो साफ जाहिर होता है कि मतदान बढ़ने का लाभ नीतीश कुमार को मिला है. बिहार में 2005 से लेकर 2020 तक हुए विधानसभा चुनाव के मतदान के विश्लेषण से यह पता चलता है.

वोटिंग बढ़ी तो लौटी नीतीश सरकार

बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार पहली बार अक्तूबर 2005 में आए. उस साल दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे. पहली बार फ़रवरी 2005 में चुनाव हुए, तो 46.05 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था. इस तरह 2000 की तुलना में करीब 13 फीसदी मतदान कम हुआ तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. 

अक्तूबर 2005 में दोबारा बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें 45.85 प्रतिशत मतदान रहा था. मामूली अंतर से कम हुई वोटिंग ने सत्ता बदल दी थी, नीतीश के नेतृत्व में पहली बार एनडीए ने सरकार बनाई. 

2005 से 2020 चुनाव का वोटिंग पैटर्न

नीतीश कुमार को पहली बार भले ही बिहार में वोटिंग कम होने का लाभ मिला था, लेकिन उसके बाद से चार बार चुनाव हुए हैं. इस तरह से हर बार वोटिंग बढ़ी है और उसका लाभ नीतीश कुमार को मिला. 2005 में बिहार की कुल 243 सीटों में से एनडीए 143 सीटें जीतने में सफल रही थी, इस तरह नीतीश ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई.

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2010 में बिहार के विधानसभा चुनाव में 52.73 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2005 की तुलना में 6.88 फ़ीसदी ज़्यादा वोटिंग रही. इस चुनाव में 243 सीटों में एनडीए 206 सीटें जीतने में सफल रही थी. जेडीयू 115 सीटें और बीजेपी 91 सीटें जीती थी. आरजेडी को ज़बरदस्त झटका लगा था, 54 सीटों से घटकर 22 सीट पर सिमट गई थी. 

समीकरण के साथ सत्ता का बदलाव

2015 में बिहार का सियासी समीकरण बदल गया. नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी से हाथ मिला लिया. 2015 चुनाव में 56.91 फीसद मतदान रहा था, जो 2010 की तुलना में 4.18 फीसदी मतदान ज्यादा रहा. इसका सीधा लाभ नीतीश के अगुवाई वाले महागठबंधन को मिला. महागठबंधन 178 सीटें जीतने में सफल रही, जिसमें आरजेडी 80, जेडीयू 71 और कांग्रेस 27 सीटें जीती थी. बीजेपी 91 सीटों से घटकर 54 पर आ गई थी.

2020 में विधानसभा चुनाव हुए तो गठबंधन का स्वरूप फिर बदल गया. नीतीश कुमार आरजेडी-कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर एनडीए में घर वापसी कर गए. 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 फीसदी मतदान रहा था, जो 2015 की तुलना में 0.38 फीसदी ज्यादा रही. मतदान के मामूली वोट बढ़ोतरी ने एनडीए की सीटें जरूर कम की, लेकिन उसे सत्ता में बरकरार रखा.

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एनडीए 125 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहा था, जिसमें बीजेपी को 74 सीटें, जेडीयू को 43 सीटें, मांझी को चार और वीआईपी को चार सीटें आईं थी. महागठबंधन भले ही सत्ता में नहीं आ सकी, लेकिन कांटे की टक्कर दी थी. आरजेडी 75 सीट, कांग्रेस 19 और लेफ्ट पार्टियां 16 सीटें जीतने में सफल रही थी.

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