बिहार सीरीज में आज पलायन की कहानी... भिखारी ठाकुर ने 113 साल पहले नाटक 'बिदेसिया' में जैसा चित्र दिखाया था, आज भी वैसे, क्यों नहीं बदले हालात? करोड़ों लोग चले गए, लेकिन सिर्फ लाखों की घरवापसी के लिए सरकार के पास जॉब प्लान, कैसे बदलेंगे हालात?
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पलायन बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. बिहार के पिछले चुनावों के ठीक बाद से ही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और तेजस्वी यादव बेरोजगारी और शिक्षा के साथ पलायन का मुद्दा उठाते आ रहे हैं. जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) का चुनाव अभियान का ताना-बाना भी पलायन के इर्द-गिर्द ही बुनते नजर आ रहे हैं तो वहीं कांग्रेस भी कन्हैया कुमार की अगुवाई में 'पलायन रोको, नौकरी दो' पदयात्रा के साथ खुलकर मैदान में आ गई है. कन्हैया की यात्रा का आज (11 अप्रैल को) पटना पहुंचकर समापन हो गया है तो वहीं पीके की पार्टी गांधी मैदान में बिहार बदलाव रैली कर रही है. इन दोनों ही आयोजनों के सिरे पलायन के मुद्दे से जुड़ते हैं.
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पलायन को लेकर विपक्षी पार्टियां क्या कह रही हैं और सरकार की राय क्या है? इसकी चर्चा से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं. भोजपुरी का शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर ने 113 साल पहले सन 1912 में एक नाटक लिखा था- बिदेसिया. इस नाटक के जरिये भिखारी ठाकुर ने पलायन के दर्द और परिवार के विरह का जीवंत चित्रण किया ही था, उन्होंने यह भी दर्शाया था कि पलायन करने वाले लोग किस कदर अपने परिवार और गांव-समाज से कट जाते हैं. किन हालातों में रहते हैं और किस तरह की दुश्वारियों का सामना उन्हें करना पड़ता है. तब से अब तक काल बदला, समाज बदला, हालात बदले लेकिन बिदेसिया में जैसा चित्र दिखाया गया था, पलायन की तस्वीर कमोबेश आज भी वैसी ही है.
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क्या कहते हैं पलायन से संबंधित आंकड़े
बिहार से रोजी-रोजगार, अच्छी शिक्षा की तलाश में छात्र-युवा बड़ी तादाद में बिहार से बाहर जाने को मजबूर हैं. पलायन के आंकड़ों की बात करें तो सरकार की ओर से पिछले साल मॉनसून सत्र के दौरान सितंबर महीने में एक प्रश्न के जवाब में पलायन के आंकड़े दिए गए थे. इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार से दो करोड़ 90 लाख से अधिक लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके थे. यह संख्या सिर्फ उन श्रमिकों की है जिन्होंने ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया है. ऐसे लोगों की तादाद भी बहुत बड़ी है जो पलायन कर चुके हैं लेकिन ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड नहीं हैं.
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कोविड काल में जगी उम्मीद, बड़ी बातें भी हुईं लेकिन नतीजा सिफर
पलायन की समस्या के समाधान की एक उम्मीद कोविड काल में जगी थी जब देश में लगे लॉकडाउन की वजह से कल-कारखानों में काम बंद हो गया. रेल से लेकर बस और हवाई जहाज तक, आवागमन के सभी साधनों का परिचालन भी ठप हो गया तो अप्रवासी मजदूर शहर से अपने गांव-घर की दूरी नापने पैदल ही सड़कों पर उतर आए. प्रवासियों की घर वापसी के इस सफर का दर्द पुरी दुनिया ने देखा. सरकारों की ओर से भी प्रवासियों को गृह राज्य में ही ठोस प्लान की बातें कही गईं लेकिन हालात सामान्य हुए और फिर उसी रफ्तार से पलायन भी पुराने ढर्रे पर लौट आया.
क्यों नहीं बदले हालात
अब सवाल ये भी है कि हालात क्यों नहीं बदले? दरअसल, बिहार की आबादी 13 करोड़ है. करोड़ों लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं और इंतजाम के नाम पर लाखों में ही नौकरी और रोजगार के अवसरों की बात होती है. सात निश्चय-2 योजना के तहत नीतीश कुमार सरकार ने 12 लाख सरकारी नौकरियां और 38 लाख अन्य रोजगार देने का लक्ष्य रखा है. जिस राज्य की करीब तीन करोड़ आबादी रोजगार के लिए पलायन कर चुकी है, वहां सरकार के पास 50 लाख लोगों के लिए जॉब प्लान है. ऐसे में हालात कैसे बदलेंगे?
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क्या है सरकार का दावा
बिहार सरकार का दावा है कि पलायन दर में गिरावट आई है. पुराने आंकड़ों का हवाला देते हुए दावे ये भी किए जा रहे हैं कि पहले पांच करोड़ लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाते थे. अब यह आंकड़ा घटकर तीन करोड़ से भी कम हो गया है. सरकारी नौकरी करने के लिए दूसरे राज्यों के युवा भी बिहार आ रहे हैं. कौशल विकास प्रशिक्षण, औद्योगीकरण के जरिये भी युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है और युवा उद्यमी बनकर आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं. कृषि क्षेत्र से संबंधित योजनाओं से ग्रामीण पलायन में कमी आई है.
क्या कह रहे राजनीतिक दल
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और आरजेडी विधायक तेजस्वी यादव पलायन के आंकड़े पर नीतीश सरकार को घेरते हुए कहा था कि एक अनुमान के मुताबिक बिहार से लगभग पांच करोड़ लोग अस्थायी नौकरी और रोजगार के लिए बिहार से पलायन करते हैं. 20 साल की नीतीश-बीजेपी सरकार में पलायन के आंकड़े भयावह हैं. उन्होंने सत्ता में आने पर राज्य में ही काम देने का वादा करते हुए कहा था कि किसी को भी रोजी-रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा.
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जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर पहले ही यह ऐलान कर चुके हैं कि सरकार बनी तो 10 हजार तक के रोजगार के लिए किसी को भी बिहार से बाहर नहीं जाना पड़ेगा. जेडीयू एमएलसी खालिद अनवर ने 2005 से पहले और 2005 के बाद की पलायन दर के आंकड़े गिनाए हैं. उन्होंने कांग्रेस की यात्रा को लेकर कहा है कि वह (कांग्रेस) स्किल्ड लोगों की बेइज्जती कर रही है. बीजेपी प्रवक्ता पंकज कुमार ने कांग्रेस की यात्रा पर कहा है कि वह पहले अपने अंदर के पलायन को रोक लें, तब बिहार में पलायन रोकने की बात करें.
बिकेश तिवारी