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काले हिरण को पूजता है बिश्नोई समाज, सलमान के लिए ऐसे बना संकट

प्रियंका शर्मा
  • 05 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 10:35 AM IST
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बहुचर्चित काला हिरण शिकार मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान को जोधपुर कोर्ट ने दोषी करार दिया हैं.  इसके साथ तब्बू, सैफ, नीलम कोठारी और सोनाली बेंद्रे
को बरी कर दिया गया है. बता दें, ये मामला 1998 का है जिसमें सलमान खान समेत इन बॉलीवुड कलाकारों पर शिकार का आरोप लगा था. बताया जाता है इस मामले को इतना आगे बढ़ाने के पीछे वजह है 'बिश्नोई समाज'. जो सलमान खान को सजा दिलवाने के लिए कोशिश कर रहा था. आइए जानते हैं बिश्नोई समाज से जुड़ी कई अहम और दिलचस्प बातें...

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क्या है काला हिरण शिकार मामला: पहले आपको बता दें कि आखिर ये मामला क्या है? दरअसल सितंबर 1998 में राजस्थान में फिल्म निर्माता सूरज बड़जात्या की फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की शूटिंग चल रही थी. इसमें सलमान के अलावा अभिनेता सैफ अली खान, सोनाली बेंद्रे, तब्बू और नीलम भी इस फिल्म में काम कर रही थीं. फिल्म की शूटिंग के दौरान सलमान के साथ इन कलाकारों पर भी संरक्षित जानवर काले हिरण के शिकार का आरोप लगाया गया था.


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बिश्नोई समाज जोधपुर के पास पश्चिमी थार रेगिस्तान से आता है और इसे प्रकृति के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है. बिश्नोई समाज में जानवर को भगवान तुल्य मान जाता है और इसके लिए वह अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहते हैं.

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यह समाज प्रकृति के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले लोगों को शहीद का दर्जा भी देता है. बता दें कि इस समाज के कई ऐसे लोग भी हुए हैं, जिन्होंने जानवरों के लिए अभी जान भी गंवाई है, उसमें गंगा राम विश्नोई जैसे कई नाम है.

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दरअसल बिश्नोई बीस (20) और नोई (9) से मिलकर बना है और यह समाज 29 नियमों का पालन करता है. इन नियमों में एक नियम शाकाहारी रहना और हरे पेड़ नहीं काटना भी शामिल है. साथ ही ये लोग जम्भोजी को पूजते हैं.

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कुछ दिनों पहले एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें एक महिला हिरण के बच्चे को अपना दूध पिला रही थीं. दरअसल ये लोग हिरण को भगवान की तरह मानते हैं और इसका सरंक्षण करते हैं. राजस्थान के कुछ गांवों में आज भी महिलाएं हिरण को दूध पिलाती हैं.



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बिश्नोई समाज के लोग लगभग 550 साल से प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं. काला हिरण विलुप्त होती प्रजाति है जिसकी सुरक्षा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत की जाती है.

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करीब एक दशक पहले एक बिश्नोई युवक निहालचंद वन्यजीवों की रक्षा की कोशिश में शिकारियों से लड़ते हुए अपनी जान पर खेल गया था. बाद में इस घटना पर ‘विलिंग टू सैक्रीफाइस’ फिल्म भी बनाई गई

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वहीं चिपको आंदोलन में भी विश्नोई समाज का अहम योगदान है.

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इस आंदोलन में बिश्नोई समाज का भी बहुत बड़ा हाथ था. बिश्नोई समाज आमतौर पर पर्यावरण की पूजा करने वाला समुदाय माना जाता है. ये बिश्नोई समाज ही था जिसने पेड़ों को बचाने के लिए अपने जान की आहुती दी थी. जोधपुर के राजा द्वारा पेड़ों के काटने के फैसले के बाद एक बड़े पैमाने पर बिश्नोई समाज की महिलाएं पेड़ो से चिपक गई थी और उन्हें काटने नहीं दिया. इसी के तहत पेड़ों को बचाने के 363 बिश्नोई समाज के लोगों के अपनी जान भी दे दी थी. 

फोटो: सोशल मीडिया


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