सुप्रीम कोर्ट ने MBBS इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टरों को मिलने वाले स्टाइपेंड के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने 1 अप्रैल को नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों के स्टाइपेंड पेमेंट का पूरा ब्योरा देने के लिए कहा है.
क्या है पूरा मामला?
न्यूज वेबसाइट 'द लाइव लॉ' की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल सितंबर में कोर्ट ने NMC को एक लिस्ट बनाने के लिए कहा था. पिछले साल 15 सितंबर को दिए गए निर्देश में कोर्ट ने एनएमसी को एक टेबुलेटेड चार्ट दाखिल करने और यह बताने के लिए कहा था कि (i) क्या वाकई में देश के 70% मेडिकल कॉलेज इंटर्न को कोई वजीफा नहीं देते हैं या कोई राशि नहीं देते हैं. या फिर तयशुदा मिनिमम से कम देते हैं(ii) एनएमसी इंटर्नशिप स्टाइपेंड के भुगतान के मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठा रही है.
कोर्ट ने एक महीने में मांगी पूरी रिपोर्ट
सितंबर में दिए गए निर्देश के बाद भी NMC ने कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट के जज सुधांशु धूलिया और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने अब एनएमसी को चार हफ्ते के अंदर पूरी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.
वो कैसे कॉलेज हैं जो मोटी फीस वसूलते हैं और स्टाइपेंड भी नहीं देते: कोर्ट
पिछली सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने चिंता व्यक्त की थी कि कई मेडिकल कॉलेज मोटी फीस तो लेते हैं, लेकिन स्टाइपेंड देने में आनाकानी करते हैं. न्यायमूर्ति धूलिया ने इस बात पर अफसोस जताया कि मेडिकल कॉलेज इतनी भारी फीस वसूलने के बावजूद वजीफा देने के लिए तैयार नहीं हैं. जज ने कहा था, 'वे किस तरह के मेडिकल कॉलेज हैं? जो एक करोड़ चार्ज कर रहे हैं, मुझे नहीं पता नहीं पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स से कितना लेते हैं, पर इंटर्नशिप करने वालों को स्टाइपेंड देने को तैयार नहीं हैं. या तो स्टाइपेंड दो, नहीं तो इंटर्नशिप मत करवाओ.'
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