गांव जला दिए गए, लाइन में खड़ा करके गोली मार रहे थे... तब ऐसे पाकिस्तान से बचकर भारत आए साहिब सिंह

साहिब सिंह विरदी के पिता ने पाकिस्तान से भारत आते समय घुडसवार दंगाइयों से अपनी जान बचाने के लिए बंदूक का सहारा लिया. भीड़ से बचने के लिए उन्हें जम्मू-कश्मीर बॉर्डर तक जाने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ा.

Advertisement
दोनो देशों के बीच चलाई जा रही ट्रेनें भर चुकी थीं. (Photo: Aajtak) दोनो देशों के बीच चलाई जा रही ट्रेनें भर चुकी थीं. (Photo: Aajtak)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:18 AM IST

विभाजन के बाद अपने घरों से लाखों लोगों ने पलायन किया. लोगों के सुगम आवागमन के लिए पाकिस्तान से भारत की सीमा तक चलायी जा रही ट्रेनें भर चुकी थीं. लोगों को आने-जाने के लिए ट्रक, बस और पैदल रास्ते का सहारा लेना पड़ रहा था. सड़कों पर दंगाइयों की भीड़ थी, जो लोगों को जान से मार रहे थे. इसी बीच लोग अलग अलग तरीकों से भारत या पाकिस्तान में पहुंच रहे थे. उनमें से एक थे साहिब सिंह विरदी, जिन्होंने पाकिस्तान से भारत आते वक्त दंगाइयों की भीड़ से बचने के लिए लंबा रास्ता चुना था.

Advertisement

पाकिस्तान में भी भड़की थी हिंसा

साहिब सिंह का परिवार विभाजन से पहले पाकिस्तान में रहता था. इनके पिता एक डॉक्टर थे. विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर बसने का फैसला किया. विभाजन के बाद पाकिस्तान में भी हिंसा भड़क उठी. साहिब जहां रहते थे, वहां आसपास के सभी गांवों को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया, लोग जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गए. हर कोई अपने हाल पर छोड़ दिया गया था.

पाकिस्तान से साथ लेकर चले थे हथियार

द पार्टिशन म्यूजियम को दिए गए एक पुराने इंटरव्यू में साहिब बताते हैं कि उनके पिता ने तय किया कि वे पहले भारत के एक बड़े शहर (जहां उस समय एंग्लो-इंडियन जनसंख्या थी) जाएंगे और वहां से एक जत्थे के साथ पंजाब के डेरा बाबा नानक के लिए बढ़ेंगे. साहिब के पिता अपने साथ एक दुनाली (विन्चेस्टर की डबल-बैरल राइफल) और कुछ कारतूस लेकर चले. बाकी लोगों के पास भी अपनी सुरक्षा के लिए हथियार थे.

Advertisement

साहिब बताते हैं कि जब सब लोग शहर तक पहुंचे, तो वहां घोड़ों पर सवार 10-12 दंगाई बंदूक और तलवारें लिए उनकी ओर बढ़े. साथ के सभी लोग भागने में कामयाब हो गए और साहिब के पिता दंगाइयों के सामने अकेले खड़े रहे. वो याद करते हैं कि दंगाई उनके पिता से थोड़े ही दूर थे, उनके पिता ने सामने घोडे पर बैठे एक दंगाई पर गोली चला दी, इससे बाकी दंगाई पीछे हट गए.

पुलिसवाले ने मांगी माफी

साहिब कहते हैं कि एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर पाकिस्तान से आ रहे सारे लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोली मारना चाहता था. जब वो साहिब के पिता को गोली मारने के लिए आगे बढ़ा, तो उन्होने उसे डांट दिया. नाराज होकर उस सब-इंस्पेक्टर ने उन्हें धमकाते हुए उनका नाम पूछा. साहिब बताते हैं कि जब उनके पिता ने अपना नाम बताया, तो वो पुलिसवाला दंग रह गया. बाद में उन्हें पता चला कि उसके माता-पिता की आंखों का इलाज उनके पिता ने ही किया था. उस इंस्पेक्टर ने साहिब के पिता से माफी मांगी.

बाद में उसी ने साहिब के पिता को जम्मू-कश्मीर के रास्ते डेरा बाबा नानक जाने का सुझाव दिया, जिसके लिए उनका जत्था अगली सुबह रवाना हुआ.

देरी होने से बची जान

Advertisement

साहिब बताते हैं कि जत्थे के एक फौजी सिख ने उनके पिता और बाकी लोगों से उनके राइफल और हथियार बदल लिए, जिससे उन्हें आगे बढ़ने में देर हो गई. उनका जत्था एक गांव तक पहुंचा, जहां कईं लाशें और लूटा हुआ सामान बिखरा पड़ा था. एक पुलिसवाले ने वहां कुछ देर पहले नरसंहार या सामूहिक हत्याकांड होने की जानकारी दी. इस हत्याकांड में वो फौजी सिख भी मारा गया था और साहिब के पिता की राइफल सामान के साथ पड़ी थी.

भीड़ ने बहुत देर तक किया पीछा

जब वे लोग गांव से बाहर निकले तो हाथ में खून से सनी तलवारें और भाले लिए मुसलमानों की भीड़ नारे लगाते हुए उनकी ओर आ रही थी. तभी उनके पिता ने हमलावर भीड़ को दूर हटाने के लिए फिर हवा में गोलियां चलाई. हालांकि भीड़ ने काफी समय तक उनका पीछा किया. आखिर उनका जत्था डेरा बाबा नानक के रास्ते वापस नारोवाल और संखत्रा (पाकिस्तान) होते हुए जम्मू-कश्मीर बॉर्डर तक पहुंचा.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement