अफगानिस्तान में भूकंप आया तो सिर्फ पुरुषों को बचाया, महिलाओं को नहीं... कारण था वहां का ये कानून

महिलाओं को सिर्फ करीबी रिश्तेदार (पिता, भाई, पति या बेटा) ही छू सकता है. तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा और मेडिकल ट्रेनिंग पर रोक लगा दी है, इसलिए महिला डॉक्टर और रेस्क्यू वर्कर बहुत कम हैं. महिलाएं बिना पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं.

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तालिबान के सख्त "लैंगिक कानून" ने भूकंप जैसी आपदा में महिलाओं की त्रासदी और बढ़ा दी. अफगानिस्तान दुनिया के उन देशों में से एक है जहां महिलाओं की ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा पाबंदियां हैं. ( Photo: AP/ Reuters) तालिबान के सख्त "लैंगिक कानून" ने भूकंप जैसी आपदा में महिलाओं की त्रासदी और बढ़ा दी. अफगानिस्तान दुनिया के उन देशों में से एक है जहां महिलाओं की ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा पाबंदियां हैं. ( Photo: AP/ Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

भूकंप के दौरान अफगानिस्तान में पुरुषों और बच्चों को बचाया जाता है, लेकिन महिलाओं और बच्चियों को मलबे में दबकर मरने को छोड़ दिया जाता है. तालिबान के नियम के कारण अफगान महिलाएं भूकंप के मलबे में दब कर मर गईं. अफगानिस्तान में आए हालिया भूकंप ने 2,200 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली. लेकिन असली त्रासदी सिर्फ मलबे तक सीमित नहीं रही, बल्कि तालिबान का सख़्त "लैंगिक कानून" (No skin contact with unrelated males) भी बड़ी रुकावट बन गया. 

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आपको बता दें कि भूकंप के बाद जब लोग मलबे से निकालने लगे, तो पुरुषों और बच्चों को पहले बचा लिया गया. लेकिन महिलाएं और बच्चियां फंसी रह गईं. वजह? तालिबान का नियम –"अजनबी पुरुष किसी महिला को छू नहीं सकते". यानी अगर वहां महिला बचावकर्मी मौजूद न हों, तो किसी घायल महिला को मलबे से बाहर निकालना तक मुश्किल हो जाता है. तालिबान के कानून के हिसाब से अजनबी पुरुष अगर किसी महिला को छुएगा तो उसे सजा मिल सकती है.

पहले जानें क्या हैं ये लैंगिक कानून?
तालिबान के शासन में महिलाओं को लेकर कई सख्त नियम कानून हैं, जिन्हें “लैंगिक कानून” कहा जाता है. इनमें से कुछ सबसे अहम हैं:

किसी भी अजनबी पुरुष को छूना मना
अफगानिस्तान में कोई भी महिला अपने परिवार के बाहर के पुरुष (पिता, भाई, पति या बेटे को छोड़कर) को छू नहीं सकती. इसी वजह से बचाव दल का कोई पुरुष मलबे में फंसी महिला की मदद करने से डरता है.

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महिला बचावकर्मी या डॉक्टर की कमी
तालिबान ने महिलाओं को मेडिकल और अन्य पेशों में पढ़ाई करने पर रोक लगा दी है. इसका नतीजा यह हुआ कि वहां महिला डॉक्टर, नर्स या रेस्क्यू वर्कर लगभग न के बराबर हैं.

घर से बाहर निकलने की पाबंदी
अफगानिस्तान में महिलाएं बिना करीबी पुरुष रिश्तेदार  के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं. ऐसे में वे मदद के लिए खुद सामने भी नहीं आ पातीं.

महिलाओं की शिक्षा पर रोक
लड़कियों की शिक्षा 6वीं कक्षा के बाद बंद कर दी गई है. इसका असर लंबे समय में महिला प्रोफेशनल्स की कमी पर पड़ता है. 

महिलाओं की मदद के लिए नहीं बढ़ें हाथ 
कई बार ऐसा हुआ कि महिलाओं को जिंदा छोड़ दिया गया और मृतकों को पहले बाहर निकाला गया. ये दिखाता है कि अफगानिस्तान में सिर्फ़ मलबा ही नहीं, बल्कि समाज के नियम भी बचाव कार्य रोक रहे हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में एक महिला बीबी आयशा ने बताया कि भूकंप के बाद उन्हें और अन्य महिलाओं को एक कोने में बैठा दिया गया और घंटों तक किसी ने उनकी सुध तक नहीं ली. वो खून से लथपथ थीं, मगर किसी ने छुआ तक नहीं. एक स्थानीय स्वयंसेवक ने भी माना कि पुरुष बचावकर्मी महिलाओं को निकालने से डरते थे, क्योंकि तालिबान के कानून के खिलाफ जाने पर उन्हें सजा मिल सकती थी. 

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यह इस देश के कानून की वजह से हुआ. तालिबान के 'पुरुषों से त्वचा का संपर्क न करने' के नियम के कारण अफ़ग़ान महिलाएं भूकंप के मलबे में दबी रहीं. मलबे में फंसी महिलाओं को कभी-कभी पीछे छोड़ दिया जाता है, जबकि मृतकों को बाहर निकाला जाता है, जिससे यह बात और स्पष्ट हो जाती है कि किस प्रकार केवल मलबा ही नहीं, बल्कि लैंगिक नियम भी पिछले चार वर्षों से तालिबान द्वारा शासित देश में बचाव प्रयासों में बाधा डाल रहे हैं.

हाल ही में आए घातक भूकंप के बाद , जिसमें कम से कम 2,200 लोग मारे गए और कई इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं, सदियों पुराने रीति-रिवाज और तालिबान द्वारा लगाए गए लैंगिक प्रतिबंध अफ़ग़ान महिलाओं के लिए त्रासदी को और बढ़ा रहे हैं. अजनबी पुरुषों के साथ त्वचा का संपर्क वर्जित' नियम के कारण, जो पुरुषों को उन्हें छूने से रोकता है, महिलाओं को अक्सर सबसे आखिर में बचाया जाता है, या बचाया ही नहीं जाता.

खून से लथपथ महिलाओं को किया गया नजर अंदाज
न्यूयॉर्क टाइम की एक रिपोर्ट में बीबी आयशा के हवाले से कहा गया है, "उन्होंने हमें एक कोने में इकट्ठा कर लिया और हमारे बारे में भूल गए." उन्होंने बताया कि कैसे अफगानिस्तान के पहाड़ी कुनार प्रांत में उनके गांव में आए भीषण भूकंप के बाद बचाव दल 36 घंटे के बाद वहां पहुंचे. लेकिन मदद करने के बजाय, आयशा और अन्य घायल महिलाओं और लड़कियों, जिनमें से कुछ खून से लथपथ थीं, को नजरअंदाज कर दिया गया.

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किसी ने भी उन महिलाओं की मदद नहीं की, न ही उनकी जरूरतें पूछीं और न ही उनसे संपर्क किया. पास के गांव मजार दारा में पहुंचे 33 वर्षीय पुरुष स्वयंसेवक तहजीब उल्लाह मुहाजेब ने भी वैश्विक प्रकाशन को जमीनी हकीकत बताई और कहा कि मलबे के नीचे फंसी महिलाओं को इंतजार करना पड़ा, जबकि पुरुष बचावकर्मी उन्हें छूने से हिचकिचा रहे थे, क्योंकि उन्हें डर था कि अपरिचित महिलाओं के साथ बातचीत करने से मुश्किलें खड़ीं हो सकती हैं. 

पहले पुरुषों और बच्चों का होता है इलाज 
कुछ मामलों में, महिला पीड़ितों को तब तक दफनाया जाता रहा जब तक कि आस-पास के इलाकों से महिलाएं मदद के लिए नहीं आ गईं. मुहाज़ेब ने कहा, "ऐसा लग रहा था जैसे महिलाएं अदृश्य थीं. उन्होंने आगे बताया कि पुरुषों और बच्चों का इलाज पहले किया जाता था, जबकि महिलाएं अलग बैठी देखभाल का इंतजार करती थीं. उन्होंने आगे बताया कि अगर कोई पुरुष रिश्तेदार मौजूद नहीं होता था, तो शारीरिक संपर्क से बचने के लिए मृतकों को उनके कपड़ों से घसीटकर बाहर निकाला जाता था. 

अस्पताल में नहीं है कोई महिला कर्मचारी 
भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में महिला स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है. तालिबान द्वारा 2023 में महिलाओं के चिकित्सा शिक्षा में नामांकन पर प्रतिबंध लगाने के बाद ग्रामीण, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में महिला डॉक्टर और नर्सें दुर्लभ हो गई हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उनके पत्रकार द्वारा देखे गए एक अस्पताल में एक भी महिला कर्मचारी नहीं थी.  तालिबान द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता शराफत ज़मान ने महिला कर्मचारियों की कमी को स्वीकार किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि महिलाएं भूकंप पीड़ितों के इलाज के लिए कुनार, नांगरहार और लघमन प्रांतों के अस्पतालों में काम कर रही हैं.

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6वीं के बाद लड़कियों को पढ़ने का अधिकार नहीं
पिछले चार सालों से जारी तालिबान शासन के तहत, अफ़गानिस्तान महिलाओं और लड़कियों के लिए दुनिया के सबसे दमनकारी देशों में से एक बना हुआ है. व्यापक मुस्लिम जगत, मानवाधिकार समूहों और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बढ़ते दबाव के बावजूद, तालिबान ने अपनी सख्त लैंगिक नीतियों में छूट देने के कोई संकेत नहीं दिखाए हैं, जिनके बारे में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये देश की सामाजिक एकता और आर्थिक भविष्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही हैं.

लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने से रोक दिया गया है और महिलाओं को आने-जाने पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है, यहां तक कि छोटी दूरी की यात्रा के लिए भी पुरुष अभिभावक की आवश्यकता होती है. रोजगार के अवसर भी कम होते जा रहे हैं; महिलाओं को मानवीय संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों सहित अधिकांश क्षेत्रों में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है.

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