चीन सीमा पर भारत का सबसे ऊंचा एयरफील्ड शुरू, LAC पर तेज होगी तैनाती

लद्दाख के न्योमा में 13,700 फीट ऊंचाई पर भारत का सबसे ऊंचा एयरफील्ड चालू हो गया है. LAC के सबसे नजदीक ALG है. 3 किमी लंबा रनवे. 214 करोड़ की लागत से 2021 में शुरू हुआ था. सेना की तेज तैनाती, रणनीतिक मजबूती मिलेगी. सड़क-सुरंगों के साथ हिमालयी सीमा कनेक्टेड हो रही है. स्थानीय कनेक्टिविटी भी बढ़ेगी.

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ये है न्योमा एयरफील्ड का 3 किलोमीटर लंबा रनवे. (Photo: IAF) ये है न्योमा एयरफील्ड का 3 किलोमीटर लंबा रनवे. (Photo: IAF)

शिवानी शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 12 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:05 PM IST

लद्दाख के पूर्वी इलाके में स्थित मुध-न्योमा भारत का सबसे ऊंचा एयरफील्ड अब पूरी तरह से चालू हो गया है. यह हवाई पट्टी समुद्र तल से 13,700 फीट ऊपर बनी है. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से सबसे नजदीक एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (ALG) है. इससे भारत की सुरक्षा मजबूत हुई है.

सीमा पर तेजी से सेना पहुंचाने की क्षमता बढ़ गई है. यह एक ऐसा हवाई अड्डा है, जहां सेना के विमान जल्दी उतर-उतर सकेंगे, खासकर पहाड़ी इलाकों में जहां सड़कें मुश्किल हैं. 2021 में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट 214 करोड़ रुपये की लागत से पूरा हुआ.

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न्योमा एयरफील्ड: क्या है खास?

न्योमा एयरफील्ड लद्दाख के मुध गांव के पास बना है. यहां 3 किलोमीटर लंबी नई रनवे तैयार की गई है, जो इमरजेंसी उड़ानों के लिए बनी है. ऊंचाई इतनी ज्यादा है कि सामान्य हवाई पट्टियों की तुलना में यहां ऑक्सीजन कम है, लेकिन इंजीनियरों ने खास डिजाइन से इसे सुरक्षित बनाया.

भारतीय वायुसेना (IAF) के विमान जैसे C-17 ग्लोबमास्टर या छोटे ट्रांसपोर्ट प्लेन यहां आसानी से उतर सकेंगे. इससे LAC के पास सैनिकों, हथियारों और दवाइयों को घंटों में पहुंचाया जा सकेगा, जबकि सड़क से यह काम हफ्तों लगता.

न्योमा का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह LAC से महज 20-30 किलोमीटर दूर है. पहाड़ी रास्तों पर ट्रक या जीप भेजना खतरनाक होता है, लेकिन हवाई मार्ग से सब आसान हो गया. स्थानीय लोग भी खुश हैं, क्योंकि इससे सिविल उड़ानें भी शुरू हो सकती हैं- जैसे डॉक्टरों या जरूरी सामान की डिलीवरी.

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रणनीतिक महत्व: चीन तनाव के बीच मजबूत कदम

चार साल पहले 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच झड़प हुई थी. तब से LAC पर तनाव बना हुआ है. इसी बीच भारत ने सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बनाया. न्योमा इसी का हिस्सा है. हाल ही में डेमचोक और डेपसांग मैदानों में दोनों देशों के सैनिकों की डिसएंगेजमेंट हुई, जिससे पैट्रोलिंग फिर शुरू हो गई. लेकिन खतरा अभी बरकरार है.

न्योमा से IAF को सीधा एक्सेस मिलेगा, जिससे चीन की हरकतों का तेज जवाब दिया जा सकेगा. यह एयरफील्ड भारत की 'स्ट्रैटेजिक डेप्थ' बढ़ाता है. यानी सीमा पर दुश्मन को घेरने की ताकत. पहले सैनिकों को लेह एयरपोर्ट से 200 किलोमीटर दूर सड़क से जाना पड़ता था, जो ठंड में असंभव था. अब न्योमा से 30 मिनट में पहुंच जाएंगे. इससे न सिर्फ सेना, बल्कि स्थानीय चिकित्सा और आपदा राहत भी मजबूत होगी.

बिना रुके इंफ्रास्ट्रक्चर का चल रहा है तेजी से काम

भारत सरकार ने लद्दाख और आसपास के इलाकों में रिकॉर्ड स्पीड से काम किया. न्योमा के अलावा सड़कें, सुरंगें और पुल बने. जैसे...

  • अटल सुरंग: रोहतांग के नीचे 10 किमी लंबी, जो मनाली को लाहौल से जोड़ती है.
  • दरचुक-शिंकुन ला सुरंग: लेह को जम्मू से जोड़ेगी.
  • नई सड़कें: LAC के पास 100 से ज्यादा किलोमीटर सड़कें बनीं.
  • ये प्रोजेक्ट मुश्किल मौसम में बने- सर्दियों में -40 डिग्री ठंड, बारिश और बर्फ. BRO (बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन) ने 24 घंटे काम किया.
  • सरकार का मकसद साफ है: सेना को मजबूत बनाना और स्थानीय लोगों को सुविधा देना. न्योमा जैसी ऊंची ALG से हिमालयी सीमा कनेक्टेड हो रही है.

सुरक्षित और कनेक्टेड सीमा

न्योमा का चालू होना भारत की हिमालयी सीमा को मजबूत करने का मील का पत्थर है. यह न सिर्फ सैन्य ताकत बढ़ाता है, बल्कि दूरदराज के गांवों को भी फायदा देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीमा पर विकास ही सबसे बड़ा हथियार है. अब न्योमा इसकी मिसाल है. लेकिन चुनौतियां बाकी हैं- मौसम, रखरखाव और पड़ोसी देशों से तनाव. फिर भी, यह दिखाता है कि भारत तैयार है- हर हाल में अपनी जमीन बचाने को.

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