भारतीय सेना ने एक शानदार 24 सेकंड का टैक्टिकल वीडियो जारी किया है, जिसमें नई AK-203 राइफल को दिखाया गया है. इसे 'शेर' नाम दिया गया है, क्योंकि यह जंग के मैदान में दुश्मनों पर गरजने वाली है. यह राइफल 1990 के दशक की पुरानी INSAS राइफल की जगह ले रही है, जो अब जंग के लिए कमजोर पड़ चुकी है.
उत्तर प्रदेश के अमेठी में रूस की क्लाश्निकोव कंपनी के साथ मिलकर बनाई जा रही यह राइफल आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है. सेना साल के अंत तक 75000 और राइफलें शामिल करने वाली है, ताकि सीमा पर तैनात जवान और मजबूत हो सकें.
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वीडियो का नाम है 'शैडोज एंड स्टील'. इसमें अमेठी के कोरवा प्लांट में राइफल को जोड़ते और चलाते सैनिक दिखाए गए हैं. वीडियो में लिखा है – छाया में सिर्फ स्टील ही सच बोलता है. शेर (AK-203) की दहाड़ सुनो – भारत का नया सिग्नेचर साउंड. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.
सेना के ADG PI ने ट्वीट किया – आत्मनिर्भर स्टील, भारत में बनी. टैक्टिकल ASMR. वीडियो से साफ लगता है कि यह राइफल जवान की जान बचाने और दुश्मन को भगाने के लिए बनी है.
पुरानी INSAS राइफल 1990 में बनी थी. यह 5.56mm की गोली चलाती थी, जो दुश्मन को सिर्फ घायल करती थी, मार नहीं पाती. ठंड, गर्मी या नमी में यह अक्सर जाम हो जाती थी. करगिल युद्ध में भी सैनिकों को परेशानी हुई थी. अब AK-203 आ रही है – 7.62mm की गोली चलाती है, जो दूर तक जाती है और ज्यादा घातक है.
एक AK-203 में 50 मुख्य पार्ट्स और 180 छोटे पार्ट्स हैं. यह कम से कम 15,000 गोलियां चला सकती है बिना खराब हुए. INSAS की तुलना में यह ज्यादा विश्वसनीय है, जो सीमा पर जवान की जान बचाएगी.
यह राइफल भारत-रूस की संयुक्त कंपनी 'इंडो-रूसिया राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड' (IRRPL) में बन रही है. कंपनी में भारत का ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (अब AWEIL और MIL) का 50% से ज्यादा हिस्सा है. रूस की क्लाश्निकोव (42%) और रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (7.5%) साझेदार हैं।
2021 में 5,124 करोड़ रुपये का सौदा हुआ – कुल 6.7 लाख राइफलें बनेंगी. पहली 70000 रूस से आईं, अब अमेठी में बन रही हैं. आत्मनिर्भर भारत के तहत पहले 25% पार्ट्स भारतीय स्टील से बने. अब 70% तक पहुंच गया. दिसंबर 2025 तक 100% भारतीय पार्ट्स से बनेगी. फैक्ट्री में बैरल, ट्रिगर और रिसीवर जैसे मुख्य पार्ट्स अब भारत में ही बन रहे हैं. रूस ने तकनीक दी, लेकिन भारत ने अपना स्टील और मजदूर लगाए. इससे नौकरियां बढ़ीं और आयात कम हुआ.
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अभी तक 35,000 राइफलें डिलीवर हो चुकी हैं. अमेठी की फैक्ट्री तेजी से काम कर रही है – हर महीने 12,000 राइफलें बनेंगी. INSAS को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है. पहले बॉर्डर पर तैनात इकाइयों को मिलेंगी.
चीन के साथ LAC पर तनाव और पाकिस्तान से बॉर्डर पर हमले बढ़े हैं. ऐसे में जवान को मजबूत हथियार चाहिए. AK-203 से सैनिकों की फायरिंग पावर दोगुनी हो जाएगी. यह न सिर्फ INSAS की कमियों को दूर करेगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत को मजबूत बनाएगी. भविष्य में यह राइफल नेपाल या अन्य देशों को निर्यात भी हो सकती है.
AK-203 से भारत छोटे हथियारों में आत्मनिर्भर हो रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं, 100% भारतीय उत्पादन से कीमत कम होगी और एक्सपोर्ट बढ़ेगा. लेकिन अभी सॉफ्टवेयर और एक्सेसरीज में सुधार की जरूरत है. सेना का लक्ष्य – हर जवान के हाथ में 'शेर'. यह वीडियो सिर्फ एक प्रचार नहीं, बल्कि भारत की सैन्य ताकत का नया अध्याय है.
ऋचीक मिश्रा