चीन सीमा के पास भारतीय सेना ने बनाई दुनिया की सबसे ऊंची सैन्य मोनो रेल

हिमालय की कामेंग घाटी में 16000 फुट ऊंचाई पर गजराज कोर ने देसी हाई एल्टीट्यूड मोनो रेल सिस्टम तैयार किया है. बर्फीले तूफानों और खतरनाक रास्तों में सप्लाई कट जाती थी, अब एक बार में 300 किलो सामान – गोला-बारूद, राशन, ईंधन – आसानी से पहुंच रहा है. ये किसी भी मौसम में दिन-रात चल सकता है.

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ये भारतीय सेना के गजराज कॉर्प्स द्वारा कामेंग घाटी में बनाई गई मोनो रेल. (Photo: Indian Army) ये भारतीय सेना के गजराज कॉर्प्स द्वारा कामेंग घाटी में बनाई गई मोनो रेल. (Photo: Indian Army)

शिवानी शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:50 PM IST

अरुणाचल प्रदेश में हिमालय की कामेंग घाटी में 16,000 फुट की ऊंचाई पर काम करना किसी साहसिक मिशन जैसा है. यहां खड़ी चट्टानें, अनिश्चित मौसम और बेहद ठंडक सप्लाई लाइनों को तोड़ देती हैं. बर्फीले तूफानों में आगे की चौकियां कई दिनों तक कट जाती हैं. पारंपरिक ट्रांसपोर्ट जैसे खच्चर या पैदल मार्ग नाकाम साबित होते हैं.

भारतीय सेना के गजराज कोर ने इस चुनौती को स्वीकार किया. एक अनोखा हाई एल्टीट्यूड मोनो रेल सिस्टम तैयार किया. यह पूरी तरह देसी तकनीक पर बना है, जो अब 16000 फीट पर काम कर रहा है और लॉजिस्टिक्स को बदल रहा है.

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गजराज कोर, जो पूर्वोत्तर सीमा की रक्षा करता है. इसने इस सिस्टम को खुद डिजाइन किया. बनाया और लगाया है. यह सिस्टम एक बार में 300 किलो से ज्यादा सामान ले जा सकता है. दूर-दराज चौकियों के लिए यह जोड़ने का धागा बन गया है, जहां कोई दूसरा रास्ता नहीं है. बर्फ से ढकी चोटियां और खतरनाक ढलान अब समस्या नहीं.

क्या है यह मोनो रेल सिस्टम? कैसे काम करता है?

यह एक साधारण लेकिन मजबूत रेल ट्रैक जैसा सिस्टम है, जो ऊंची चट्टानों और ढलानों पर फिट है. इसमें एक केबिन या ट्रॉली होती है, जो केबल या रेल पर चलती है. एक बार में यह गोला-बारूद, राशन, ईंधन, इंजीनियरिंग उपकरण और भारी सामान को ले जाती है. जो चीजें पैदल या हेलिकॉप्टर से मुश्किल से पहुंचती हैं, वे अब आसानी से पहुंच रही हैं.

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सबसे खास बात – यह सिस्टम दिन-रात चलेगा. तूफान हो, ओले बरसें या बर्फ गिरे, कोई फर्क नहीं पड़ता. बिना गार्ड के भी इस्तेमाल हो सकता है. मौसम की मार से बचने के लिए मजबूत डिजाइन किया गया है. सेना के अधिकारियों का कहना है कि इस सिस्टम ने हमारी सप्लाई चेन को मजबूत कर दिया. अब चौकियां कभी भूखी या हथियारों से खाली नहीं रहेंगी.

सिर्फ सप्लाई ही नहीं, घायलों को बचाव का जरिया

इस सिस्टम का फायदा सिर्फ सामान पहुंचाने तक सीमित नहीं. यह घायल सैनिकों को तेजी से निकालने का भी काम कर रहा है. ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर हमेशा नहीं उड़ सकते. पैदल निकालना धीमा और जोखिम भरा है. लेकिन यह मोनो रेल सिस्टम सुरक्षित और तेज तरीके से घायलों को पीछे के कैंप तक ले जा सकता है. डॉक्टरों और मेडिकल टीम को भी जल्दी मदद मिलेगी. यह एक बहुमुखी हथियार साबित हो रहा है.

गजराज कोर की बुद्धिमत्ता: सेना का गौरव

गजराज कोर की यह खोज उनकी चतुराई, अनुकूलन क्षमता और अथक मेहनत का प्रमाण है. ऊंचाई पर रहकर सैनिकों ने खुद ही यह सिस्टम बनाया. कोई विदेशी मदद नहीं ली. इससे अलग-थलग चौकियों की तैयारियां मजबूत हुई हैं. सेना का कहना है कि जटिल समस्याओं को व्यावहारिक समाधानों से हल करना हमारा मंत्र है.

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यह न सिर्फ लॉजिस्टिक्स को आसान बनाता है, बल्कि सैनिकों की जिंदगी बचाता है. कामेंग हिमालय सीमा पर चीन के साथ तनाव रहता है. ऐसे में यह सिस्टम रणनीतिक बढ़त देगा. विशेषज्ञों का मानना है कि सेना की इन इनोवेशंस से देश की सुरक्षा मजबूत हो रही है. आने वाले समय में अन्य कोर भी इसे अपना सकते हैं. 

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