Crime Katha of Bihar: सीवान तेजाब कांड बिहार के इतिहास का सबसे खौफनाक और सनसनीखेज हत्याकांड था. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. यह कांड रंगदारी की मांग से शुरू हुआ, लेकिन इसका अंत एक परिवार के तीन बेटों की दर्दनाक मौत से हुआ था. कत्ल के तरीके और आरोपी के नाम ने इस केस को देश का सबसे चर्चित मामला बना दिया था. आरोपी का नाम था, पूर्व सांसद और बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन. जिसके नाम से पूरा सीवान कांपता था. ये बिहार का वो दौर था जह अपराधी राजनीतिक संरक्षण में खुलेआम अपराध करते थे. 'बिहार की क्राइम कथा' में पेश है सीवान के उसी तेजाब कांड की दिल दहला देने वाली दास्तान.
साल 2004 से पहले सीवान जिले में चंदा बाबू अपनी पत्नी कलावती देवी, दो बेटियों और चार बेटों के साथ आराम से रहते थे. गोशाला रोड पर उनकी किराने की दुकान थी. जिसका नाम था- राजीव किराना स्टोर. दुकान पर उनके बेटे सतीश (25 वर्ष), गिरीश (20 वर्ष) और राजीव रोशन (बड़ा भाई) काम करते थे. सबसे छोटा बेटा नीतीश विकलांग था और घर पर ही रहा करता था. चंदा बाबू का घर खर्च दुकान से ही चलता था. लेकिन 1990 का दशक उनके लिए परेशानी लेकर आया. क्योंकि उस वक्त वहां शहाबुद्दीन का राज शुरू हो चुका था.
शहाबुद्दीन राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से चार बार सांसद रह चुके थे. वह रंगदारी वसूलते थे और विरोधियों को बख्शते नहीं थे. सीवान में उनकी कोठी पर 'कोर्ट' लगती थी, जहां फैसले सुनाए जाते थे. मामले निपटाए जाते थे. चंदा बाबू का परिवार भी उनके इसी खौफ में जी रहा था, लेकिन वो कभी झुके नहीं. उनके परिवार चैन सुकून उस वक्त खत्म हो गया, जब रंगदारी की मांग ने उनका सबकुछ उजाड़ दिया.
16 अगस्त 2004
सुबह करीब 10 बजे थे. उस दिन शहाबुद्दीन के गुर्गे आफताब, झब्बू मियां, राजकुमार शाह, शेख असलम, मोनू उर्फ सोनू उर्फ आरिफ हुसैन और मकसूद मियां चंदा बाबू की दुकान पर पहुंचे. वहां जाकर उन लोगों ने 2.5 लाख रुपये की रंगदारी मांगी. मगर चंदा बाबू ने रंगदारी देने से इनकार कर दिया. हालांकि दुकान पर उस वक्त सतीश भी बैठा था, जिसने 30-40 हजार रुपये देने की पेशकश की, लेकिन गुर्गों ने इनकार कर दिया.
हथियारों से लैस बदमाशों ने सतीश को पीटना शुरू कर दिया और गल्ले से दो लाख से ज्यादा नकदी लूट ली. राजीव वहां पहुंचा और सब देखता रहा. सतीश ने बचाव में बाथरूम से तेजाब का मग लाकर गुर्गों पर फेंक दिया, जिसमें राजीव पर भी छींटे पड़े. इससे वहां भगदड़ मच गई, लेकिन बदमाश सतीश को पकड़कर ले गए. दुकान में लूटपाट के बाद आग लगा दी गई.
बदमाश सतीश को एक गाड़ी में डालकर शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर ले गए. दूसरी दुकान पर बैठे उसके भाई गिरीश को भी अगवा कर लिया गया. राजीव छिपकर भाग निकला, लेकिन बाद में बदमाशों ने उसे भी पकड़ लिया. आरोप था कि तीनों भाइयों को शहाबुद्दीन की कोठी पर ले जाया गया, जहां राजीव को रस्सी से बांध दिया गया. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन खुद भी वहां मौजूद थे और उन्होंने 'कोर्ट' लगाकर फैसला सुनाया- विरोध करने वालों को सबक सिखाओ.
सतीश और गिरीश को तेजाब से नहलाया
शहाबुद्दीन के फरमान के बाद उनके गुर्गों ने सतीश और गिरीश पर तेजाब से भरी बाल्टी उड़ेल दी. दोनों ने तड़प-तड़प कर अपने भाई की आंखों के सामने दम तोड़ दिया. वहां मौजूद बदमाशों की दरिंदगी यहीं नहीं थमी. सतीश और गिरीश की लाशों को टुकड़ों में काटकर बोरे में भरा गया और फिर उन बोरों को नदी में फेंक दिया गया. रोता बिलखता राजीव इस वारदात का चश्मदीद था, लेकिन इसके बावजूद उसे जिंदा छोड़ दिया गया ताकि चंदा बाबू को धमकाया जा सके. उस दिन चंदा बाबू अपने भाई के पास पटना गए हुए थे.
बिखर गया था पूरा परिवार
इस खौफनाक वारदात की खबर सीवान में आग की तरह फैल गई. किसी ने चंदा बाबू को फोन किया- 'सिवान मत आना, मार दिए जाओगे.' बताया गया कि दो बेटे मारे गए, तीसरा कैद है. राजीव दो दिनों बाद गन्ने से लदे ट्रैक्टर में छिपकर उत्तर प्रदेश के पडरौना पहुंचा, जहां उसने स्थानीय सांसद के घर में शरण ली. इस बीच चंदा बाबू की पत्नी, बेटियां और विकलांग बेटा नीतीश घर छोड़कर भाग गए. पूरा परिवार बिखर चुका था. बाद में चंदा बाबू को फोन पर खबर मिली की उनका तीसरा बेटा भी मर गया, लेकिन यह झूठ था. चंदा बाबू टूट चुके थे, लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारे थे.
चंदा बाबू को मारने की साजिश
बदमाशों ने चंदा बाबू को लालच देकर सीवान बुलाने की साजिश रची. उन्हें फोन किया गया कि तुम्हारा बेटा छत से गिर गया है. बदमाशों का मकसद था उन्हें मारना. बावजूद इसके चंदा बाबू सीवान जा पहुंचे. वो एसपी से मिलने गए, लेकिन वहां दरवाजा बंद था. थाने पहुंचे को दारोगा ने कहा- फौरन सिवान छोड़ दो.' लेकिन वो हार नहीं मानें. छपरा सांसद के साथ वो पटना के एक बड़े नेता से मिले, लेकिन उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया.
चंदा बाबू के भाई को धमकी
जब इस बात की खबर बदमाशों को लगी तो उन्होंने चंदा बाबू के पटना वाले भाई को धमकी दे डाली. भाई ने डरकर उनका साथ छोड़ दिया और अपना तबादला मुंबई करा लिया. हालांकि वहां भी उन्हें धमकियां मिलती रही. नतीजा ये हुआ कि दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में ही उनकी मौत हो गई. अब चंदा बाबू अकेले पड़ गए थे.
दिल्ली में बड़े नेता से मुलाकात
धमकियों से परेशान और हताश होकर चंदा बाबू पटना में भटकने लगे. उनकी हालत साधु जैसी हो गई थी. वह बेसुध, इधर-उधर घूमते रहते थे. कई दिनों तक खाना पीना सब भूले रहे. फिर एक विधायक ने उन्हें शरण दी. इसी बीच उन्हें खबर मिली कि राजीव जिंदा है. इस बात से उन्हें नई ताकत मिली. इसके बाद वह सोनपुर के एक नेता से मिले, जिन्होंने डीजीपी नारायण मिश्रा को पत्र लिखवाया. आईजी-डीआईजी से एसपी तक चिट्ठियां गईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी. फिर निराश होकर चंदा बाबू दिल्ली आ गए और राहुल गांधी से मिले. वहां भी केवल आश्वासन मिला. चंदा बाबू ने हिम्मत जुटाई और फिर सीवान लौट गए.
सुरक्षा की गुहार
सीवान लौटकर चंदा बाबू अकेले एसपी के घर पहुंचे. डीआईजी की चिट्ठी दिखाई और उनसे सुरक्षा मांगी. एसपी ने उनसे फिर कहा- सिवान छोड़ दो. निराश होकर डीआईजी ए.के. बेग से मिले. डीआईजी ने एसपी को फटकार लगाई और सुरक्षा का आदेश दिया. आखिरकार चंदा बाबू को गार्ड मिल गए. वे सीवान में ही रहने लगे. राजीव भी लौट आया था, साथ में पत्नी-बेटियां और नीतीश भी. फिर राजीव की शादी हो गई. परिवार थोड़ा संभला, लेकिन खतरा अब भी बरकरार था. शहाबुद्दीन का खौफ अब भी था. क्योंकि राजीव चश्मदीद गवाह था. मुश्किलें खत्म होने वाली नहीं थीं.
16 जून 2014
राजीव की शादी के 18वें दिन यानी 16 जून को सीवान के डीएवी मोड़ पर राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. हालांकि पहले ही राजीव कोर्ट में बयान दे चुका था, और उसके बाद शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में दोषी ठहराया गया था. इस तरह चंदा बाबू के तीनों बेटे अब मारे जा चुके थे. परिवार अब नीतीश और माता-पिता पर टिका था. कलावती देवी ने मुफस्सिल थाने में एफआईआर दर्ज कराई. जिसमें शहाबुद्दीन और उनके बेटे ओसामा का नाम आया. इस हत्या ने साबित कर दिया कि शहाबुद्दीन जेल में रहकर भी गैंग चला रहे थे. उस वक्त चंदा बाबू ने कहा था, 'मैं तीन बार मारा गया हूं.'
शहाबुद्दीन पर कसा शिकंजा
2004 के तेजाब कांड में शहाबुद्दीन के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत केस दर्ज हुआ था, लेकिन तब गिरफ्तारी नहीं हुई थी. साल 2005 में बिहार की सत्ता बदली और नीतीश कुमार की सरकार बनी, तब जाकर शहाबुद्दीन पर दबाव बढ़ा. जून 2005 में उन्हें दिल्ली से गिरफ्तार किया गया. अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए पेशी होती रही. उनके खिलाफ 39 हत्या और अपहरण के संगीन मामले थे. 38 में जमानत मिल चुकी थी. तेजाब कांड 39वां था.
9 दिसंबर 2015
उस दिन विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन, राजकुमार साह, शेख असलम और आरिफ उर्फ सोनू को तेजाब कांड डबल मर्डर का दोषी ठहराया. 11 दिसंबर को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. मगर इसके बाद भी चंदा बाबू ने लड़ाई जारी रखी. साल 2017 में पटना हाईकोर्ट ने उनकी उम्रकैद बरकरार रखी.
30 अक्टूबर 2018
फिर शहाबुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन देस की सबसे बड़ी अदालत ने सजा बरकरार रखी. कोर्ट ने उनसे पूछा- 'राजीव को क्यों मारा?' इससे पहले साल 2016 में राजीव हत्या केस में शहाबुद्दीन को जमानत मिली थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया था. चंदा बाबू ने 15 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. साल 2019 में उनकी पत्नी कलावती देवी की मौत हो गई. 16 दिसंबर 2020 को हार्ट अटैक से चंदा बाबू का निधन हुआ. नीतीश अकेला बचा, जो विकलांग है.
1 मई 2021 - शहाबुद्दीन की मौत
इस कांड के दोषी शहाबुद्दीन की कहानी भी उस वक्त खत्म हो गई, जब 1 मई 2021 को कोरोना से उनकी मौत हुई. बिहार का कोई चुनाव ऐसा नहीं जहां सीवान के शहाबुद्दीन का जिक्र ना होता हो. शहाबुद्दीन का नाम खौफ पैदा करता है, लेकिन चंदा बाबू का साहस इंसाफ के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है. चंदा बाबू का बेटा नीतीश कहता है, 'हमने सब खो दिया, लेकिन हार नहीं मानी.'
परवेज़ सागर