CrPC Section 173: जांच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट का प्रावधान करती है ये धारा

सीआरपीसी की धारा 173 में अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 173 इस बारे में क्या बताती है?

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पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है ये धारा पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है ये धारा

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 08 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 7:03 AM IST
  • पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस जांच (Police investigation) के संबंध में कई तरह के कानूनी प्रावधान (Provision) दर्ज किए गए हैं, जिनका प्रयोग पुलिस करती है. इसी तरह से सीआरपीसी की धारा 173 में अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 173 इस बारे में क्या बताती है?  

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सीआरपीसी की धारा 173 (CrPC Section 173)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1975) की धारा 173 में किसी मामले की जांच खत्म हो जाने के बाद पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट का प्रावधान किया गया है. CrPC की धारा 173 के मुताबिक- 

(1) इस अध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलंब के बिना पूरा किया जाएगा.

(क) बालिका के साथ बलात्संग के संबंध में अन्वेषण उस तारीख से, जिसको पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा इत्तिला अभिलिखित की गई थी, तीन मास के भीतर पूरा किया जा सकेगा.

(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें कथित होंगी-

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(क) पक्षकारों के नाम;

(ख) इत्तिला का स्वरूप;

(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम;

(घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा;

(ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है;

(च) क्या वह अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं सहित है या प्रतिभुओं रहित;

(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है;

(ज) जहां अन्वेषण भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 376, 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 376ङ के अधीन किसी अपराध के संबंध में है, वहां क्या स्त्री की चिकित्सा परीक्षा की रिपोर्ट संलग्न की गई है.

(ii) वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किए जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी, उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए.

(3) जहां धारा 158 के अधीन कोई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहां ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिए, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निदेश दे सकता है कि वह आगे और अन्वेषण करे.

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(4) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र के उन्मोचन के लिए या अन्यथा ऐसा आदेश करेगा जैसा वह ठीक समझे.

(5) जब ऐसी रिपोर्ट का संबंध ऐसे मामले से है जिसको धारा 170 लागू होती है, तब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट के साथ-साथ निम्नलिखित भी भेजेगा-

(क) वे सब दस्तावेज या उनके सुसंगत उद्धरण, जिन पर निर्भर करने का अभियोजन का विचार है और जो उनसे भिन्न हैं जिन्हें अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेज दिया गया है;

(ख) उन सब व्यक्तियों के, जिनकी साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, धारा 161 के अधीन अभिलिखित कथन.

(6) यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है या उसे अभियुक्त को प्रकट करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है और लोकहित के लिए असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित करेगा और अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिए निवेदन करते हुए और ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों का कथन करते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेजेगा.

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(7) जहां मामले का अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी ऐसा करना सुविधापूर्ण समझता है वहां वह उपधारा (5) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं दस्तावेजों की प्रतियां अभियुक्त को दे सकता है.

(8) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहां वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्ट्रेट को विहित प्ररूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहां तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 172: जांच में कार्यवाही की डायरी का प्रावधान करती है ये धारा

क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. 

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CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

 

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