Rape Convicts Relief in India: डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा एक सजायाफ्ता मुजरिम है, जिसे साल 2017 में दो महिला अनुयायियों के साथ बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था. इसके अलावा, एक पत्रकार की हत्या के आरोप में भी उसे सजा सुनाई गई. उसे दोषी करार दिए जाने के बाद 20 साल की कैद की सजा हुई, लेकिन बार-बार पैरोल और फर्लो मिलने से वो जेल से बाहर आता रहा है. इसी तरह से यूपी में पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को साल 2017 में उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराया गया था. उसे एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और अपहरण के मामले में उम्रकैद की सजा मिली. लेकिन हाल ही में हाई कोर्ट ने उसकी सजा सस्पेंड कर दी. ऐसे मामलों की वजह से कई सवाल उठ रहे हैं. चलिए जानते हैं इस मामले की पूरी कहानी.
बाबा को पैरोल मिलने की वजह
राम रहीम को मिलने वाली आजादी को हरियाणा सरकार की मेहरबानी के तौर पर देखा जाता है. इसके पीछे राजनीतिक प्रभाव की आशंका भी है. राम रहीम को अब तक 12 से ज्यादा बार पैरोल मिल चुकी है, जिसमें 2025 में भी 30 दिनों की पैरोल शामिल है. यह मामला महिलाओं की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है. हैरानी की बात ये है कि हर बार रेपिस्ट बाबा को पैरोल अच्छे व्यवहार और पारिवारिक कारणों के आधार पर दी जाती है, जैसा कि हरियाणा सरकार दावा करती है. लेकिन आलोचक कहते हैं कि डेरा सच्चा सौदा का बड़ा अनुयायी आधार राजनीतिक पार्टियों को प्रभावित करता है.
उदाहरण के तौर पर, 2024 में हरियाणा चुनाव से पहले 20 दिनों की पैरोल दी गई, जिसमें चुनावी गतिविधियों में भाग न लेने की शर्त थी. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कई बार पैरोल पर रोक लगाने की कोशिश की, लेकिन सरकार फिर से पैरोल देती रही. इससे पहले वहां कारागार के नियमों में संशोधन भी किया गया था. साल 2023 में बीबीसी रिपोर्ट में कहा गया कि राम रहीम ने पिछले साल का एक तिहाई समय जेल से बाहर बिताया. यह प्रक्रिया जेल नियमों के तहत है, लेकिन इसमें पारदर्शिता की कमी है.
राजनीतिक कनेक्शन और पैरोल
डेरा सच्चा सौदा के लाखों अनुयायी हरियाणा और पंजाब में वोट बैंक माने जाते हैं, जिससे राम रहीम को पैरोल मिलने में आसानी होती है. द हिंदू अखबार में 2022 में रिपोर्ट आई कि राजनीतिक नेता राम रहीम से मिलने जाते हैं. 2025 में अप्रैल में 21 दिनों की फर्लो दी गई, जिसमें भारी सुरक्षा के साथ जेल से बाहर निकले. विपक्षी पार्टियां जैसे कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की कि यह वोट प्रभावित कर सकता है. पैरोल के दौरान राम रहीम डेरा मुख्यालय में रहता है और अनुयायियों से मिलता है. ऐसे में यह सवाल उठाता है कि क्या पैरोल का दुरुपयोग हो रहा है?
अदालती दखल का असर
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 2024 में राम रहीम की पैरोल पर सवाल उठाए और कहा कि बिना कोर्ट की अनुमति के आगे पैरोल न दी जाए. कोर्ट ने मार्च 2024 में सरेंडर करने का आदेश दिया, लेकिन फिर भी नई पैरोल मिल गई. कुछ मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, राम रहीम 1990 से डेरा प्रमुख है और उसके खिलाफ कई केस हैं. पैरोल के खिलाफ याचिकाएं दाखिल होती रहती हैं, लेकिन राज्य सरकार के पास पैरोल देने का अधिकार है. यह दिखाता है कि कानूनी प्रक्रिया में राजनीतिक दखल हो सकता है. महिलाओं के अधिकार संगठन इस पर विरोध जताते हैं.
ऐसा ही है कुलदीप सिंह सेंगर का मामला
कुलदीप सिंह सेंगर यूपी का पूर्व बीजेपी विधायक है. उसे 2017 उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराया गया था. एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और अपहरण के आरोप में उसे उम्रकैद की सजा हुई. साल 2019 में दिल्ली की अदालत ने सजा सुनाई, लेकिन 2025 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा सस्पेंड कर दी. सेंगर पर पीड़िता के पिता की हत्या कराने का भी आरोप था. यह केस पूरे देश में सुर्खियां बना, क्योंकि पीड़िता ने आत्मदाह की कोशिश की थी. सेंगर अब भी अन्य सजाओं के कारण जेल में हैं.
सजा सस्पेंड होने का कारण
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सेंगर उस समय विधायक थे, लेकिन POCSO एक्ट के सेक्शन 5(c) के तहत 'पब्लिक सर्वेंट' नहीं माने जाते, क्योंकि अपराध आधिकारिक ड्यूटी में नहीं हुआ. कोर्ट ने उम्रकैद सस्पेंड की और बेल दी, लेकिन वो अन्य मामलों में जेल में रहेगा. लाइव लॉ रिपोर्ट में कहा गया कि सेक्शन 5(c) लागू नहीं होता. सीबीआई ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है. यह फैसला पीड़िता के लिए झटका है, जो न्याय की लड़ाई लड़ रही है.
कानूनी आधार और बहस
कोर्ट ने कहा कि सेंगर को पब्लिक सर्वेंट न मानने से सजा कम हो सकती है, लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट आई कि वह जेल में ही रहेंगे. रिपोर्टस् के अनुसार, यह गैंग रेप का मामला था जिसमें सेंगर मुख्य आरोपी था. सोशल मीडिया पर फैसले की आलोचना हो रही है, लोग कहते हैं कि यह महिलाओं की सुरक्षा को कमजोर करता है. सीबीआई का सुप्रीम कोर्ट जाना दिखाता है कि मामला अभी खत्म नहीं हुआ. यह केस राजनीतिक प्रभाव का भी उदाहरण है.
पीड़िता की स्थिति और प्रभाव
उन्नाव रेप पीड़िता ने कई बार न्याय की गुहार लगाई, लेकिन सेंगर की सजा सस्पेंड होने से उसे काफी निराशा हुई. एक रिपोर्ट में कहा गया कि घटना के समय सत्तारुढ़ दल का विधायक होने से कुलदीप सिंह सेंगर को फायदा मिला. पीड़िता के परिवार पर हमले हुए. पुलिस हिरासत में उसके पिता की मौत हो गई. एक सड़क दुर्घटना में पीड़िता गंभीर रूप से घायल हुई, जबकि उसकी चाची और एक अन्य रिश्तेदार मौत की चपेट में आ गई. अब रेप के दोषी सेंगर को जमानत दिए जाने के फैसले से महिला अधिकार संगठन नाराज हैं और आगे अपील की मांग कर रहे हैं. यह दिखाता है कि कानूनी प्रक्रिया में तकनीकी आधार पर राहत मिल सकती है. कुलदीप सिंह सेंगर अब भी अन्य आरोपों में फंसा हुआ है.
पैरोल के प्रावधान
भारत में पैरोल प्रिजन एक्ट 1894 और 1900 के तहत दी जाती है, जिसमें प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं. आईप्लीडर्स ब्लॉग के अनुसार, अच्छे व्यवहार वाले कैदियों को पैरोल मिल सकती है, लेकिन रेप जैसे गंभीर अपराधों में रेस्ट्रिक्शन हैं. कैदी को कम से कम एक साल जेल में बिताना जरूरी है. पैरोल एक महीने तक की हो सकती है, विशेष मामलों में ज्यादा. लेकिन कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र में रेप कन्विक्ट्स को पैरोल नहीं दी जाती. यह सुविधा सामाजिक पुनर्वास के लिए होती है, लेकिन इसका दुरुपयोग होता है.
रेप दोषियों के लिए विशेष नियम
कई मीडिया रिपोर्टस् और अन्य स्रोतों से पता चलता है कि रेप और मर्डर के दोषियों को पैरोल के लिए अच्छा व्यवहार दिखाना पड़ता है. राजस्थान प्रिजन रूल्स में एसिड अटैक, रेप और डकैती के दोषियों को स्पेशल पैरोल नहीं मिलती. लेकिन हरियाणा में राम रहीम को मिल रही है, जो राज्य के नियमों पर निर्भर करता है. पैरोल कैदी की स्थिति नहीं बदलती, सिर्फ अस्थायी राहत देती है. यह प्रावधान पुनर्वास के लिए हैं, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा पर इससे असर पड़ता है.
अदालतों में राहत के आधार
भारत में रेप दोषियों को राहत अपील, बेल या सजा सस्पेंशन के जरिए मिल सकती है. एक लॉ वेबसाइट के अनुसार, तकनीकी आधार जैसे POCSO सेक्शन की व्याख्या पर सजा सस्पेंड हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई रद्द की, क्योंकि नियमों का उल्लंघन हुआ था. राहत के लिए सबूतों की कमी या कानूनी खामियां आधार बनती हैं. लेकिन पीड़िता के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं.
कानूनी सुधार और चुनौतियां
साल 2013 और 2018 में रेप कानूनों में बदलाव हुए, जिसमें सजा बढ़ाई गई, लेकिन पैरोल नियम पुराने हैं. ईए वर्ल्डव्यू रिपोर्ट में कहा गया कि सिस्टम पीड़िताओं को धोखा देता है. दोषियों को राहत मिलने से दोबारा अपराध की आशंका बढ़ती है. सुधार की जरूरत है कि गंभीर अपराधों में पैरोल सख्त हो. अल जजीरा ने बिलकिस केस में कहा कि केंद्र सरकार ने नियम तोड़े. यह बहस जारी है.
समाज पर प्रभाव
ऐसे मामलों से महिलाओं में डर बढ़ता है और न्याय पर भरोसा कम होता है. फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म पर लोग विरोध जता रहे हैं. राम रहीम और सेंगर जैसे केस दिखाते हैं कि राजनीतिक प्रभाव कानून और न्याय को प्रभावित करता है. पीड़िताओं को मुआवजा और सुरक्षा मिलनी चाहिए, जैसा कि कानून कहता है. लेकिन अमल में कमी है. समाज को जागरूक होने की जरूरत है.
आगे की संभावनाएं
सीबीआई सेंगर केस में सुप्रीम कोर्ट जा रही है, जो फैसला बदल सकता है. राम रहीम की पैरोल पर हाई कोर्ट सख्ती दिखा सकता है. कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि पैरोल नियमों में एकरूपता लानी चाहिए. यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है. भविष्य में सुधार हो सकते हैं.
पारदर्शिता बढ़ाने की ज़रूरत
राम रहीम और सेंगर जैसे मामलों से साफ है कि कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है. पैरोल और राहत के लिए पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए. पीड़िताओं के अधिकार मजबूत करने की जरूरत है. समाज और सरकार को मिलकर काम करना होगा. तभी न्याय व्यवस्था मजबूत होगी.
परवेज़ सागर