8 महीने में 22 सुसाइड... डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के नाम पर कोटा में यूं दम तोड़ रहे ख्वाब

पिछले 11 दिनों में 4, पिछले आठ महीने में 22, पिछले एक साल में 29 और पिछले दस सालों में 160 से ऊपर. मुर्दा बचपन की कीमत पर आबाद ये आंकड़े उस कोटा शहर के हैं, जो बचपन को मुंहमांगी कीमत और अपनी शर्तों पर डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का ख्वाब बेचता है.

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कोटा में छात्रों की मौत से जुड़े आंकड़े बेहद डराने वाले हैं कोटा में छात्रों की मौत से जुड़े आंकड़े बेहद डराने वाले हैं

शम्स ताहिर खान / चेतन गुर्जर / परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली/कोटा,
  • 17 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 7:27 PM IST

Kota: राजस्थान का कोटा शहर यूं छात्र-छात्राओं के लिए एक बड़ा शिक्षण-प्रशिक्षण केंद्र माना जाता है, जहां वर्षों से जो हो रहा है, वो तो हो ही रहा है. लेकिन इस साल, इसी महीने और इन्हीं पिछले 11 दिनों में वहां जो कुछ हुआ है, उसने सबको सकते में डाल दिया. आप सिर्फ उसकी कहानी भर सुन लेंगे, तो कांप उठेंगे. इससे पहले कि हम वो कहानी आपको बताएं, ज़रा कुछ तारीखों पर नजर डाल लें.

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15 अगस्त 2023
नाम - वाल्मिकी प्रसाद जांगिड़
अंजाम - वॉटर कूलर के पाइप से ख़ुदकुशी

10 अगस्त 2023
नाम - मनीष प्रजापति
अंजाम - बेडशीट से फंदा लगा कर खुदकुशी

05 अगस्त 2023
नाम - भार्गव मिश्रा
अंजाम - गले में फंदा लगा कर खुदकुशी

04 अगस्त 2023
नाम - मनजोत सिंह
अंजाम - चेहरे पर पॉलीथिन और हाथ में रस्सी बांध कर खुदकुशी

डरावने आंकड़े
पिछले 11 दिनों में 4, पिछले आठ महीने में 22, पिछले एक साल में 29 और पिछले दस सालों में 160 से ऊपर. मुर्दा बचपन की कीमत पर आबाद ये आंकड़े उस कोटा शहर के हैं, जो बचपन को मुंहमांगी कीमत और अपनी शर्तों पर डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का ख्वाब बेचता है. इस ख्वाब की कोई गारंटी नहीं होती. लेकिन मासूम बचपन को कामयाब जिंदगी देने की ख्वाहिश में तमाम मां-बाप ना सिर्फ बिना गारंटी वाले इस ख्वाब को खरीदने की होड़ में लगे हैं, बल्कि जाने अनजाने वो अपने बच्चों के बचपन को कामयाब जिंदगी की बजाय मुर्दा बचपन की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. ये डरावने आंकडें बस उसकी बानगी भर हैं. 

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बढ़ते रहेंगे ऐसी मौत के मामले
इसमें कोई दो राय नहीं कि जंदगी एक इम्तेहान है, लेकिन कोटा जैसी फैक्ट्री अगर इम्तेहान को ही जिंदगी बनाने लगे, तो ये आंकडे़ कम होने की बजाय आने वाले वक्त में बढ़ते रहेंगे. अब ये मां-बाप को तय करना है कि वो अपने बच्चों को क्या देना चाहते हैं? खुशहाल और कामयाब जिंदगी या फिर मुर्दा बचपन.

फेल हो जाने का डर बना मौत का सबब
15 अगस्त को जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा था, ठीक उसी वक्त कोटा फैक्ट्री के एक खामोश कमरे में देश का एक नौजवान अपने और अपने घरवालों के सपनों के मर जाने के डर से खुद मरने की तैयारी कर रहा था. शायद उसे अहसास हो चुका था कि एक कामयाब जवानी की खातिर जिस गलाकाट मुकाबले के लिए उसे कोटा भेजा गया है उसमें वो फेल हो जाएगा और बस इसी डर की वजह से मौत को गले लगाने के लिए जब उसे कुछ नहीं मिला तब उसने वॉटर कूलर में पानी भरने के लिए जिस पाइप का इस्तेमाल होता है, उसी पाइप को गले में कसकर रौशनदान से लटककर फांसी लगा ली. और इस तरह जिंदगी का इम्तिहान फिर एक मासूम बचपन को निगल गया. इस बार इस मुर्दा बचपन का नाम था वाल्मिक प्रसाद जांगिड़. 

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ऐसे टूटा इंजीनियर बनने का सपना
वाल्मिकी बिहार के गया इलाके से अपने बस्ते में इंजीनियर बनने का भारी बोझ लेकर सात महीने पहले ही कोटा पहुंचा था. दसवीं-बारहवीं में उसके नंबर अच्छे थे. घरवालों को लगा कि बेटा JEE का एग्ज़ाम क्लियर कर इंजीनियर बन जाएगा. लेकिन कोटा पहुंचते ही वाल्मिकी का सामना अपने ही जैसे हजारों मासूम बचपन से हुआ. वो तमाम बच्चे भी अपने अपने बस्ते में इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना भर-भर कर लाए थे. मुकाबले में वाल्मिकी खुद को बहुत पीछे महसूस कर रहा था. घरवालों के डर की वजह से शायद वो सच्चाई बताना भी नहीं चाहता था. और बोझ इतना था कि सह भी नहीं पा रहा था. बस इसी कशमकश में उसे इस गलाकाट मुकाबले से बचने का एक ही रास्ता नजर आया और वो था वॉटर कूलर का पाइप. 

कोटा में हर माह 3 बच्चों की मौत
अभी साल का आठवां महीना पूरा भी नहीं हुआ और इस कोटा फैक्ट्री से 22 बच्चों की खुदकुशी की खबर आ चुकी है. यानि औसतन हर महीने करीब 3 बच्चों को उनका बस्ता मार रहा है. अकेले सिर्फ पिछले 11 दिनों में ही 4 बच्चों को ये कोटा फैक्ट्री निगल चुकी है. 

कोटा आते ही बदलने लगती है सोच
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि 15 अगस्त 2023 तक जिन 22 बच्चों ने खुदकुशी की है वो सभी दो, चार या आठ महीने पहले ही कोटा पढ़ने आए थे. इन 22 में से एक भी ऐसा बच्चा नहीं है जो एक-दो साल से कोटा में रह रहा हो. यानि इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि एक बच्चा जब कोटा मे कदम रखता है, तो उसके कुछ दिन बाद से ही उसकी जिंदगी और सोच दोनों बदलनी शुरु हो जाती है. इससे ये पता चलता है कि कोटा आने के बाद अगले कुछ महीनों तक अगर बच्चों का खास ख्याल रखा जाए, खासकर कोचिंग सेंटर, पीजी, हॉस्टल के जिम्मेदार और परिवार वालों की तरफ से तो शायद मुर्दा बचपन की तादाद कम हो जाए.

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भारत की कुल आबादी का सिर्फ 0.7 फीसदी हैं डॉक्टर-इंजीनियर 
आखिर 16, 17, 18 साल के बच्चे कोटा फैक्ट्री पहुंचने के बाद सिर्फ एक इम्तिहान में फेल हो जाने के डर से इतना बड़ा क़दम क्यों उठा लेते हैं? जिन्होंने अभी जिंदगी और जिंदगी की जद्दोजहद तक नहीं देखी वो मासूम बचपन में ही मौत के अलग-अलग तरीके क्यों कर ढूंढने लगते हैं? एक कामयाब जिंदगी या जिंदगी के पेशे के नाम पर सिर्फ डॉक्टर या इंजीनियर ही तो नहीं है. वर्ल्ड बैंक की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल आबादी का सिर्फ और सिर्फ 0.7 फीसदी हिस्सा ही डॉक्टर और इंजीनियर हैं. यानि ये हमारी आबादी का 1 फीसदी भी नहीं है. ये आंकड़ें इस बात के गवाह है कि डॉक्टर और इंजीनियर के अलावा भी सैकड़ों ऐसे पेशे हैं जो एक खुशहाल जिंदगी की गारंटी देते हैं. 

कोटा में पढ़ने वाले 400 बच्चों पर रिसर्च 
कोटा में मुर्दा बचपन पर डॉ. दिनेश शर्मा ने बड़ी तफ्सील से रीसर्च किया है. आइए जानते हैं कि आखिर बच्चे इस मासूम उम्र में इतना सख्त फैसला क्यों ले लेते हैं? डॉक्टर दिनेश शर्मा ने अपनी रीसर्च में कोटा में पढ़ने वाले करीब 400 बच्चों को शामिल किया था. इस रीसर्च के दौरान उन्होंने पूरी डीटेल में बच्चों के दिमाग को पढ़ने की कोशिश की. इस रीसर्च के दौरान कई चौकाने वाली बातें सामने आईं.

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MMBS की कुल सीटें सिर्फ 1 लाख 
कोटा में इस साल भी लगभग ढाई से तीन लाख बच्चे कोचिंग के लिए पहुंचे हैं. अगर आंकड़ों की बात करें तो हर साल NEET और JEE का एग्जाम क्लियर कर डॉक्टर और इंजीनियर बनने वाले लाखों छात्र एग्जाम में बैठते हैं. 2023 के आंकड़ों के मुताबिक डॉक्टर बनने के लिए नीट के एग्जाम में इस साल देशभर से कुल 20 लाख 38 हजार 500 छात्र बैठे थे. जिनमें से 11 लाख 45 हजार 900 ने एग्जाम क्लियर किया. जबकि MMBS की कुल सीटें सिर्फ 1 लाख थी.

ऐसे बढ़ता है बच्चों पर दबाव
इसी तरह इंजीनियर बनने के लिए होने वाले JEE एग्जाम में 2022 में कुल 10 लाख 26 हजार 799 छात्रों ने अपनी किस्मत आजमाई. लेकिन इनमें से सिर्फ ढाई लाख छात्रों को ही अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल पाया. NEET और JEE के एग्जाम में कोटा की कामयाबी का प्रतिशत 8 से 10 फीसदी है. जबकि देश के बाकी सेंटर्स की कामयाबी का प्रतिशत सिर्फ 3 फीसदी. यही वजह है कि पूरे उत्तर भारत के ज्यादातर छात्र डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए कोटा फैक्ट्री का रुख करते हैं. हालाकि एक सच ये भी है कि यहां आने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स दसवीं और बारहवी में 80 या 90 फीसदी से ज्यादा नंबर लेकर पहुंचते हैं. और बस यहीं से मां-बाप की उम्मीदें बढ़ जाती हैं और बच्चों पर दबाव. हालांकि ऐसा नहीं है कि इस दबाव से बच्चों को बाहर नहीं निकाला जा सकता. पर जरूरी है इसके लिए खुद बच्चा, उसके पेरेंट्स और कोचिंग सेंटर वाले कुछ जरूरी कदम उठाएं.

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खुदकुशी के बढ़ते मामलों से CM भी चिंतित
कोटा में बच्चों की खुदकुशी के बढ़ते मामले से राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी चिंतित हैं. उन्होंने इस मामले में खुद अपनी मिसाल दी. सीएम गहलोत ने कहा कि वो खुद डॉक्टर बनना चाहते थे. रात-रात भर पढ़ाई की लेकिन नहीं बन पाए. और अब वो मुख्यमंत्री हैं. केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों पर दबाव डालने के बजाय उन्हें इस बात की छूट देनी चाहिए कि वो अपने लिए कौन सा करियर चुनना चाहते हैं. इस बीच राजस्थान सरकार के आदेश पर कोटा में बच्चों की खुदकुशी के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. 

सरकार ने जारी किए दिशा निर्देश
कोटा के हरेक कोचिंग सेंटर को ये आदेश दिया गया है कि वो रविवार को कोई टेस्ट या एग्जाम नहीं लेंगे. उस दिन सारे बच्चे पूरी तरह से फ्री रहेंगे. हफ्ते में एक दिन कोचिंग सेंटर को बच्चों के लिए स्पेशल, मोटिवेशनल क्लास रखने को भी कहा गया है. हर हॉस्टल और पीजी में सुरक्षा डिवाइस वाले पंखे लगाना जरूरी है. इन खास पंखों में स्प्रिंग होगी. ताकि अगर पंखे पर कोई वजन पड़े तो वो सीधे नीचे आजाए और अलार्म बजा दें.

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(साथ में मनीषा झा)

 

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