दिल्ली ब्लास्ट की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, हैरान कर देने वाले खुलासे हो रहे हैं. एनआईए की जांच में सामने आए 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' के केंद्र में लेडी शैडो यानी डॉक्टर शाहीन थी. वही शाहीन जिसकी 'दवाई' और 'हार्ट अटैक' के कोडवर्ड ने दिल्ली में फिदायीन हमला करने का संकेत दिया. पूछताछ में डॉक्टर शाहीन, अदील और मुजम्मिल के कबूलनामे ने जांच एजेंसियों के होश उड़ा दिए हैं.
एनआईए की पूछताछ में पहली बार साफ हुआ कि इस 'टेरर मॉड्यूल' ने एक पूरी कोडवर्ड डिक्शनरी तैयार कर रखी थी, ताकि बातचीत का एक-एक शब्द मेडिकल टर्म की आड़ में छिप जाए. इस डिक्शनरी को बनाकर डॉक्टर शाहीन ने डॉक्टर टेरर मॉड्यूल में बांटा था, ताकि कोई भी संदेश सुरक्षित रहे. इस पर सुरक्षा एजेंसियों की नजर ना पड़े. इसी कोडवर्ड की वजह से धमाका रोकने में एजेंसियों को देर हुई.
जांच एजेंसी के मुताबिक, आतंकियों ने हर अहम शब्द को मेडिकल साइंस के टर्म में बदल रखा था. 'ऑपरेशन थिएटर' का मतलब 'बम फैक्ट्री' था. फिदायीन की भर्ती का मतलब 'ब्लड टेस्ट' था. टारगेट को 'वेंटिलेटर' कहा जाता था. 'सर्जरी' का मतलब सीरियल बम धमाके था. 'ट्रीटमेंट' का मतलब जिहादी काम था. 'दवा' का मतलब दिल्ली था. 'ब्लड प्रेशर' यानी विस्फोटक की खेप थी. MD सुसाइड बॉम्बर था.
इस कोडवर्ड डिक्शनरी के चक्रव्यूह ने उन्हें महीनों तक खुफिया एजेंसियों के रडार से दूर रखा. जांच में पता चला है कि 10 नवंबर को हुए हमले से लगभग दो हफ्ते पहले उमर और शाहीन के बीच कई चैट हुई थीं. इनमें शाहीन ने संदेश भेजा, ''उमर, तुम्हें दवा देनी है.'' इसका मतलब था कि दिल्ली में धमाका होना है. जवाब में उमर ने लिखा, ''सर्जरी की पूरी तैयारी है.'' यानी सीरियल ब्लास्ट का पूरा इंतजाम हो चुका है.
इस बातचीत को पढ़कर जांच टीम भी हैरान है कि किस तरह ये डॉक्टर अपने मेडिकल ज्ञान को आतंक का नकाब बनाकर इस्तेमाल कर रहे थे. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जैश-ए-मोहम्मद ने पहली बार इतने पढ़े-लिखे डॉक्टरों को फिदायीन मिशन का हिस्सा बनाया. उसके इस टेरर मॉड्यूल के डॉक्टर उमर नबी ने दिल्ली में धमाका किया. डॉ. शाहीन, अदील और मुजम्मिल फिदायीन हमले की तैयारी में थे.
इनके मंसूबे कामयाब होते, इससे पहले की पुलिस ने इस साजिश का खुलासा कर दिया. लेकिन उमर तक पुलिस पहुंचती, उससे पहले उसने लाल किले के पास कार धमाका कर दिया. इस मॉड्यूल में शामिल हर आतंकी दोहरी जिंदगी जी रहा था. अस्पताल में मरीजों को देखकर इलाज करने वाले ये डॉक्टर, रात में बैठकर सीरियल धमाकों का ब्लूप्रिंट बना रहे थे. कोई मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर था. कोई ओपीडी में था.
पर्दे के पीछे यही डॉक्टर ‘ऑपरेशन थिएटर’ में बम तैयार कर रहे थे और ‘ट्रीटमेंट’ के नाम पर जिहाद को अंजाम दे रहे थे. जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि दिल्ली कार ब्लास्ट को अंजाम देने से ठीक पहले, उमर ने अमोनियम नाइट्रेट और TATP जैसे खतरनाक विस्फोटकों का इस्तेमाल किया था. उसके जूते से TATP के निशान मिले हैं. इस विस्फोटक से में अलकायदा आतंकी रिचर्ड रीड हवाई जहाज उड़ाना चाहता था.
जांच एजेंसियों को शक है कि उमर ने ‘शू बम’ का इस्तेमाल किया, जिसे TATP से तैयार किया गया था. फरीदाबाद के जिस घर से 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट मिला है, उसने खतरे की एक और परत खोल दी है. इतना बड़ा विस्फोटक स्टॉक साफ इशारा करता है कि डॉक्टर टेरर मॉड्यूल सिर्फ एक नहीं, कई फिदायीन हमलों की तैयारी में था. विस्फोटकों के गोदाम दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग इलाकों में बनाए गए थे.
आतंकियों से पूछताछ में ये भी सामने आया है कि जैश-ए-मोहम्मद के लेडी विंग की कमान खुद डॉक्टर शाहीन संभाल रही थी. उसने 20 लाख रुपए जुटाकर विस्फोटक खरीदने में मदद की थी. शाहीन के मन में जिहाद ऐसा भरा था कि उसने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा फिदायीन हमले के लिए लगा दिया. इस व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के सभी डॉक्टर भी उसकी तरह ही ब्रेनवॉश किए गए थे.
दिल्ली को दहलाने वाली इस साजिश से पहले, खुफिया एजेंसियों ने कई एन्क्रिप्टेड चैनलों पर जैश की धमकी भरी पोस्ट देखी थीं. श्रीनगर के नौगाम गांव में लगे पोस्टरों से भी एजेंसियों को अंदेशा हुआ था कि कुछ बड़ा होने वाला है. लेकिन आतंक के डॉक्टरों ने मेडिकल कोडवर्ड का ऐसा जाल बुना कि असली प्लान को डिकोड करने में देर हो गई. इसकी वजह से देश की राजधानी दिल्ली में धमाका हो गया.
आजतक ब्यूरो