वक्‍त ज्‍यादा दूर नहीं, जब नर्सरी की फीस के लिए चुकानी पड़ेगी EMI... मिडिल क्‍लास पर नया संकट!

पिछले 10 सालों में मिडिल क्‍लास की सैलरी में सालाना सिर्फ 0.4 फीसदी की ग्रोथ हुई है, फिर भी एजुकेशन का खर्च अब इनकम का लगभग पांचवा हिस्‍सा खत्‍म कर रहा है.

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नर्सरी की पढ़ाई के लिए फीस हर साल 30% तक बढ़ रहा है. (Photo: AI Generated) नर्सरी की पढ़ाई के लिए फीस हर साल 30% तक बढ़ रहा है. (Photo: AI Generated)

आजतक बिजनेस डेस्क

  • नई दिल्‍ली,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

स्‍कूली शिक्षा भारत में दिन-ब-दिन महंगी होती जा रही है. कई अभिभावकों के लिए अपने बच्‍चों को स्‍कूल भेजना एक आर्थिक बोझ बन चुका है, जो हर साल और भी ज्‍यादा बढ़ता जा रहा है. बच्‍चों की स्‍कूली शिक्षा के लिए कई अभिभावक लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं. ऐसे में मिडिल क्‍लास पर एक नया संकट (Crisis on Middle Class) आता हुआ दिख रहा है. कॉइनस्विच और लेमन के Co-Founder आशीष सिंघल ने इस लेकर बड़ा खुलासा किया है. 

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अपने लिंक्‍डइन पोस्‍ट में उन्‍होंने लिखा कि फीस में 30% की बढ़ोतरी.. अगर यह चोरी नहीं है, तो और क्या है? उन्‍होंने अपनी बेटी के स्‍कूल को लेकर कहा कि जो स्‍कूल में हो रहा है, उससे हैरान हूं. बेंगलुरु में, माता-पिता अब तीसरी क्‍लास के लिए 2.1 लाख रुपये दे रहे हैं. यह कोई इंटरनेशनल स्कूल नहीं है. यह CBSE है.

सिंघल ने बताया कि एक अभिभावक ने क्‍लास 3rd की 2 लाख रुपये की फीस पर सवाल उठाते हुए कहा कि इंजीनियरिंग की डिग्री भी इससे कम खर्चीली है. देशभर में अभिभावक हर साल फीस में 10 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी देख रहे हैं, जबकि उनकी अपनी सैलरी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है. दरअसल, ये घटना सिर्फ बेंगलुरु तक ही सीमित नहीं है, जहां हर साल 10 से 30 फीसदी तक फीस बढ़ोतरी की खबरें आती रहती हैं. फीस में इस तरह का इजाफा अब आम हो गया है. 

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महंगाई से ज्‍यादा बढ़ रही फीस 
ये आंकड़े एक डराने वाली तस्‍वीर पेश कर रही हैं. पिछले 10 सालों में मिडिल क्‍लास की सैलरी में सालाना सिर्फ 0.4 फीसदी की ग्रोथ हुई है, फिर भी एजुकेशन का खर्च अब इनकम का लगभग पांचवा हिस्‍सा खत्‍म कर रहा है. उदाहरण के तौर पर अहमदाबाद में माता-पिता चौथी क्‍लास में पढ़ने वाले अपने बच्‍चे के लिए सालाना करीब 1.8 लाख रुपये खर्च करते हैं. 

कर्ज लेने को मजबूर हैं अभिभावक
इससे निपटने के लिए कई परिवार अब नर्सरी या प्राइमरी स्कूल की फीस भरने के लिए भी कर्ज लेने को मजबूर हैं. उन्होंने लिखा, 'कॉलेज के लिए बचत करना तो भूल ही जाइए. माता-पिता अब नर्सरी के लिए EMI भर रहे हैं.' इससे भी बुरी बात यह है कि सरकारी आंकड़े शिक्षा महंगाई के सिर्फ 4 फीसदी के आसपास होने का दावा करते हैं, लेकिन पैरेंट्स जानते हैं कि हकीकत कहीं ज्‍यादा कठोर है. कई लोगों के लिए किराया, बस की फीस और किताबों का जुगाड़ करना मानसिक त्‍याग की परीक्षा बन गया है. 

सबसे बड़ा खर्च बनती जा रही स्‍कूली शिक्षा 
उन्होंने इसे सरल शब्दों में कहा कि यह सिर्फ महंगाई नहीं है, नुकसान है. बचत का, विवेक का, और यहां तक कि पारिवारिक सपनों का भी. कभी बेहतरी अवसरों की चाबी मानी जाने वाली स्‍कूली शिक्षा अब कई मिडिल क्‍लास फैमिली के लिए सबसे बड़ा खर्च बनती जा रही है. कॉइनस्विच के को-फाउंडर ने कहा कि हम कहते थे, शिक्षा महान समानता लाने वाली है. अब यह सबसे बड़ी मासिक जिम्‍मेदारी बन गई है. 

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उन्‍होंने कहा कि माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन बिना किसी सहयोग के, स्कूल की फीस परिवारों के लिए इतना भारी बोझ बन सकती है कि वे अकेले नहीं उठा पाएंगे. 

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