देश अमेरिका हो, या फिर भारत. जॉब मार्केट में चुनौतियां हैं. क्योंकि इकोनॉमी में उतार-चढ़ाव का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है. दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. जब अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है तो कंपनियों का प्रोडक्शन, बिक्री और मुनाफा बढ़ता है, जिससे वे अधिक लोगों को भर्ती करती हैं और रोजगार बढ़ता है. वहीं जब GDP ग्रोथ सुस्त पड़ती है, महंगाई बढ़ती या घटती है, तो कंपनियां लागत बचाने के लिए हायरिंग रोक देती हैं या छंटनी तक कर देती हैं.
दरअसल, साल 2025 खत्म होने वाला है. इस साल छंटनी का दौर तेज रहा, खासतौर पर टेक और डिजिटल कंपनियों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं दिखी. इसका असर 2026 में भी महसूस होगा. कई बड़ी कंपनियां लागत कम करने और ऑटोमेशन को तेजी से अपनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगी. जिससे कई पारंपरिक और मैनुअल जॉब पहले से ज्यादा खतरे में रहेंगी. IMF भी ग्लोबल मंदी का संकेत दे रहा है. आर्थिक अनिश्चितता, भू-आर्थिक तनाव (जैसे ट्रेड टेंशन) और मुद्रास्फीति जैसी चुनौतियां जॉब क्रिएशन को प्रभावित कर सकती हैं.
चुनौतियां का साल रहेगा 2026
ऐसे में साल 2026 का जॉब मार्केट एक ऐसे मोड़ पर होगा, जहां दुनिया तेजी से बदलती तकनीक, आर्थिक अनिश्चितता और ग्लोबल स्किल कंपीटिशन से गुजर रही होगी. सरकार की नीतियां, ब्याज दरें, निवेश, वैश्विक माहौल और टेक्नोलॉजी भी रोजगार की दिशा तय करते हैं.
इन सबके बीच साल 2026 नए अवसरों का भी साल बन सकता है. AI, मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी, डेटा साइंस, रोबोटिक्स, क्वांटम और ऑटोमेशन ऐसे सेक्टर होंगे, जहां नई नौकरियों की मांग तेजी से बढ़ेगी. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की मानें तो 2026 से 2030 के बीच लाखों नई नौकरियां सिर्फ टेक्नोलॉजी आधारित स्किल्स की वजह से पैदा होंगी. यानी जिसे स्किल अपग्रेड, डिजिटल लर्निंग और नई टेक्नोलॉजी की समझ होगी, उनके लिए आने वाला वर्ष बेहतरीन रह सकता है.
हालांकि वैश्विक स्तर पर दो बड़ी चुनौतियां 2026 को प्रभावित करेंगी. पहली- आर्थिक मंदी का दबाव और दूसरी- स्किल गैप. दुनिया के कई देशों में बढ़ती ब्याज दरें, वैश्विक व्यापार विवाद, और निवेश में गिरावट जॉब क्रिएशन को धीमा कर सकते हैं. वहीं बड़ी संख्या में लोगों के पास डिग्रियां हैं, लेकिन उनके पास स्किल्स नहीं, जिनकी मार्केट में मांग सबसे ज्यादा है. कॉलेज ग्रेजुएट्स के लिए यह राह थोड़ी कठिन हो सकती है, क्योंकि एंट्री-लेवल नौकरियों में कंपीटिशन बहुत तेज रहने वाला है.
दूसरी ओर ग्रीन इकोनॉमी साल 2026 में एक बड़ा ट्रेंड होगा. रिन्यूएबल एनर्जी, EV, सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग और क्लाइमेट टेक जैसे सेक्टर्स में लाखों नई नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है. अमेरिका, यूरोप, चीन, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में यह सेक्टर तेजी से बढ़ने वाला है, क्योंकि सरकार का भी इस पर फोकस है.
अमेरिका में गहराता संकट
दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के जॉब मार्केट की तस्वीर भी फिलहाल धुंधली है. डेटा के मुताबिक यहां सितंबर में 1.19 लाख नई नौकरिया जुड़ीं, लेकिन बेरोज़गारी दर 4.4% तक पहुंच गई, यानी नौकरी मिल भी रही है, लेकिन आसानी से सबको नहीं मिल रही है. चौंकाने वाली बात यह रही कि लेबर डिपार्टमेंट की बैक डेटा समीक्षा में सामने आया कि पिछले 12 महीनों में अमेरिका ने पहले बताए गए आंकड़ों से करीब 9 लाख से अधिक कम नौकरियां जेनरेट कीं, यानी इकोनॉमी की रफ्तार में चुनौतियां हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल टेक कंपनियों ने 76,000 से ज्यादा नौकरियों में कटौती की है, और कुछ नॉन-टेक कंपनियों को मिलाकर यह संख्या 1.1 लाख से ऊपर हो जाती है. सबसे ज्यादा अमेरिका में नौकरियों से अवसर कम हुए हैं.
अब सवाल है कि अमेरिका जैसे देश में रोजगार को लेकर ऐसी चुनौतियां क्यों? दरअसल, जॉब ओपनिंग्स अभी भी मजबूत हैं, कंपनियां पोज़ीशन तो निकाल रही हैं, लेकिन हायरिंग की रफ्तार में ब्रेक लगा है. नियोक्ता अब बहुत सोच-समझकर भर्ती कर रहे हैं. कंपनियों पर लागत, महंगाई, संभावित मंदी और अनिश्चित ग्लोबल माहौल का दबाव साफ दिख रहा है.
भारत की थोड़ी स्थिति बेहतर
अगर भारत की बात करें तो नौकरी जेनरेट करने की दर ई-कॉमर्स, स्टार्टअप, लॉजिस्टिक्स और रिटेल जैसे सेक्टर्स में बढ़ने की उम्मीद है. तमाम रिपोर्ट कहती है कि साल 2026 में 'New Roles' की भर्ती बढ़ेगी. हर 4 में से 1 भर्ती नई नौकरी की होगी. TeamLease की रिपोर्ट के मुताबिक 2025-26 के दूसरे हाफ में नेट जॉब ग्रोथ 4.4% हो सकती है. खासकर AI, क्लाउड, साइबर और डेटा स्किल्स की मांग बढ़ेगी.
वैसे तो अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत में 2026 का जॉब मार्केट काफी मजबूत रहने वाला है, और कई सेक्टर रोजगार के लिए बेहतरीन साबित हो सकते हैं. सबसे ज्यादा मौके बैंकिंग और फाइनेंस (BFSI) सेक्टर में दिख रहे हैं. डिजिटल बैंकिंग, UPI, ऑनलाइन लोन और इंश्योरेंस सर्विसेज के बढ़ने से इस सेक्टर में बड़ी संख्या में नौकरियां बनेंगी.
इसके बाद IT और टेक सेक्टर 2026 में रोजगार का बड़ा केंद्र बनेगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सिक्योरिटी और डेटा एनालिटिक्स जैसी स्किल्स की मांग तेजी से बढ़ रही हैं. कंपनियां अनुभव और स्किल वाले प्रोफेशनल्स को अच्छे पैकेज ऑफर करने वाली हैं.
मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री भी तेजी पकड़ रही है, खासकर Make in India और डिजिटल फैक्ट्री की दिशा में निवेश बढ़ने से. बिजली, स्टील, मशीनरी और ऑटो सेक्टर में नए रोजगार बन सकते हैं. इसके साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी यानी सोलर, विंड और ग्रीन एनर्जी आने वाले समय में जॉब का बड़ा सेक्टर बनकर उभरने वाला है. सरकार और निजी कंपनियां इसमें बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं. हेल्थकेयर सेक्टर भी धीरे-धीरे ही सही जॉब मार्केट के लिए एक नया ठिकाना बनने वाला है.
स्किल्स वालों की डिमांड
CII की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल- 2026 के लिए भारत में हायरिंग इरादा (Intention) 11% है, जो 2025 में 9.75% था. साथ ही अगले साल वेतन में करीब 9% बढ़ोतरी की भी उम्मीद है. राहत की बात ये है कि घरेलू जॉब मार्केट में स्थिरता और लगातार बढ़ोतरी की गुंजाइश है, हायरिंग में टियर-2 शहरों की हिस्सेदारी बढ़ने वाली है. रिपोर्ट के अनुसार टियर-2 शहरों में 32% जॉब्स की प्रोजेक्शन है. भारत में अनुभव वाले कर्मचारियों की मांग बढ़ेगी. खासकर टेक्नोलॉजी (AI/GenAI, क्लाउड, साइबर सिक्योरिटी) और डेटा जैसी स्किल्स की मांग बहुत ज्यादा रहेगी.
India Skills Report 2026 के मुताबिक भारत में नौकरी पाने की योग्यता (Employability) 56.35% पहुंच गई है. इसमें खास बात यह है कि पहली बार महिलाओं की नौकरी-तैयारी (Employability) पुरुषों से आगे चली गई है. यह दिखाता है कि स्किल-फर्स्ट इकोनॉमी की दिशा में भारत आगे बढ़ रहा है.
हालांकि WEF के अनुसार 2030 तक बहुत सारे नए रोल बनेंगे. कुल मिलाकर भारत समेत दुनिया के लिए साल 2026 स्किल-अप और री-स्किलिंग के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है.
अमित कुमार दुबे