नेहरू का पहला सरकारी आवास, आजादी और बंटवारे का गवाह वो बंगला 1100 करोड़ में बिका

दिल्ली के लुटियंस जोन में स्थित इस ऐतिहासिक बंगले की डील को देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट डील माना जाना रहा है. इस बंगले को खरीदने वाले शख्स के नाम का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है.

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वो बंगला जिसकी दीवारों ने देखा है भारत का इतिहास (Photo: AI-Generated) वो बंगला जिसकी दीवारों ने देखा है भारत का इतिहास (Photo: AI-Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:48 AM IST

लुटियंस दिल्ली... वो इलाका जो भारत के इतिहास की पहचान है. यहां हर सड़क और इमारत की अपनी एक कहानी है. इसी ऐतिहासिक क्षेत्र में एक ऐसा बंगला है, जिसने आजादी की सुबह और बंटवारे का दर्द, दोनों को करीब से देखा है. यह कोई आम प्रॉपर्टी नहीं, बल्कि उस घर की कहानी है, जहां भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहा करते थे. अब यह बंगला 1100 करोड़ रुपये के भारी-भरकम दाम में बिक चुका है और इसी के साथ इसने रियल एस्टेट के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.

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यह सौदा सिर्फ एक लेन-देन नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक विरासत का बदलना है. इस बंगले की दीवारों ने देश को बनते-बिखरते देखा है, नेताओं की बैठकें और आम लोगों की शिकायतें सुनी हैं. यह वो जगह है, जहां से नेहरू ने आजादी के बाद देश की बागडोर संभाली थी, और यह वही घर है जो कभी शरणार्थियों से भरा हुआ था. आज यह बंगला फिर से चर्चा में है, क्योंकि इसकी कीमत ने इसे देश की सबसे महंगी डील बना दिया है. 

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क्या है इस बंगले की कहानी

ये कहानी है 17, मोती लाल नेहरू मार्ग की, जिसे पहले यॉर्क रोड के नाम से जाना जाता था. 14 अगस्त 1947 की रात, जब देश आजादी का इंतजार कर रहा था, तब इसी घर से जवाहरलाल नेहरू शपथ लेने के लिए वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) गए थे. आजादी की उस ऐतिहासिक रात को भी यहां सन्नाटा नहीं था. यहां कुछ साधु नेहरू को आशीर्वाद देने आए थे, और नेहरू ने भी उनका खुशी-खुशी स्वागत किया था. ये बंगला सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस दौर का गवाह है, जब देश करवट ले रहा था.

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नेहरू का 'असुरक्षित' घर

आज के दौर में किसी बड़े नेता के घर में परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन नेहरू का ये घर बिल्कुल अलग था. उस समय यहां कोई खास सुरक्षा नहीं थी. किसी को भी अंदर आने से रोका नहीं जाता था, न ही कोई नाम रजिस्टर में दर्ज होता था. लोग बस अपनी मर्जी से आते-जाते थे. पत्रकार सोमनाथ धर ने अपनी किताब में लिखा है कि भारत की आजादी के दौर में यह नेहरू का 'मुख्यालय' था. हालांकि, आजादी के बाद जब दंगे भड़के और पंजाब से शरणार्थी दिल्ली आने लगे, तो उनकी सुरक्षा को लेकर सवाल भी उठे थे.

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 जब शरणार्थियों से भर गया था परिसर

आजादी के बाद, जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तो लाखों शरणार्थी भारत आए. नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल ने अपनी किताब में लिखा है कि जब वह नेहरू से मिलने दिल्ली आई थीं, तो उन्होंने देखा कि 17, यॉर्क रोड का पूरा परिसर शरणार्थियों के टेंटों से भरा हुआ था. यह उस दौर की भयावह स्थिति को दिखाता है, जब नेहरू का घर सिर्फ उनका निवास नहीं, बल्कि बेघर हुए लोगों के लिए एक आसरा बन गया था.

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सरदार पटेल से दोस्ती का निशान

दिलचस्प बात यह है कि जब नेहरू 17, यॉर्क रोड पर रहते थे, तो उनके गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल उनके घर के ठीक सामने एक बंगले में रहते थे. यह बंगला उनके दोस्त का था, जिसे पटेल ने उनके अनुरोध पर लिया था. यह एक छोटा सा वाकया है, जो उस समय के नेताओं के बीच की दोस्ती और सादगी को दिखाता है.

नेहरू का ससुराल, मगर गए कभी नहीं

कहा जाता है कि नेहरू ने 17, यॉर्क रोड या तीन मूर्ति भवन में रहते हुए कभी भी अपने ससुराल सीताराम बाजार का दौरा नहीं किया था, जबकि वह वहां से बस कुछ ही मील की दूरी पर था. उनकी पत्नी कमला के पूर्वज भी उन्हीं सालों में दिल्ली आकर बस गए थे, लेकिन नेहरू अपने राजनीतिक जीवन की व्यस्तताओं में इतना डूबे रहे कि वह कभी वहां जा नहीं पाए.

 1100 करोड़ की ऐतिहासिक डील

दिल्ली के सबसे महंगे इलाकों में से एक, लुटियंस जोन में स्थित यह बंगला अब तक की सबसे बड़ी प्रॉपर्टी डील का गवाह बना है. करीब 3.7 एकड़ में फैले इस बंगले की शुरुआती कीमत 1400 करोड़ रुपये थी, लेकिन इसे 1100 करोड़ रुपये में खरीदा गया है. इस हेरिटेज बंगले की मौजूदा मालिक राजकुमारी कक्कड़ और बीना रानी हैं, जो राजस्थानी राजघराने से जुड़ी हुई मानी जाती हैं. इस डील को एक अज्ञात भारतीय बिजनेसमैन ने फाइनल किया है, जिनकी पहचान अभी सामने नहीं आई है.

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