Japan Crisis: जापान की इकोनॉमी को कौन मार रहा? स्टडी में बड़ा दावा, अब दोहरी मुसीबत है सामने

Who Is Killing Japan Economy: भारत ने बीते दिनों जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का तमगा अपने नाम किया था. तो वहीं जापान दोहरी मुसीबत में घिरा हुआ है और उसकी पुरानी नीतियां अब काम नहीं आ रही हैं.

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जापान की इकोनॉमी के पिछड़ने के पीछे कई बड़े कारण जापान की इकोनॉमी के पिछड़ने के पीछे कई बड़े कारण

आजतक बिजनेस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2025,
  • अपडेटेड 9:33 AM IST

जापान (Japan) लंबे समय तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी रहा, लेकिन बीते दिनों ये भारत से पिछड़कर पांचवें पायदान पर खिसक गया. जापान की अर्थव्यवस्था कुछ समय से संकट (Japan Economic Crisis) में नजर आई है और इसके चरमराने के पीछे के कारणों का खुलासा सीएफओ की एक स्टडी में एनालिस्ट्स ने किया है. उन्होंने कहा कि जापान ने दशकों तक जीरो फीसदी ब्याद पर कर्ज (Japan 0% Interest Loan) दिया और अब यही जापान पर भारी पड़ गया, क्योंकि देश में पुरानी नीतियां अब काम नहीं कर रही हैं. इसके साथ ही एनालिस्ट्स ने कहा है कि जापान इस समय दो भंवर में फंसा हुआ है, जिससे उसे निकलना होगा. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...  

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दशकों तक 0% ब्याज पर कर्ज पड़ा भारी
बिजनेस टुडे पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, Japan ने दशकों तक दुनिया को सस्ते में कर्ज लेने दिया, लेकिन अब यह व्यवस्था ध्वस्त होती जा रही है. CFO कोच लौकिक शाह इसे स्पष्ट रूप से समझाते हुए कहा है कि जापान ने ब्याज दरों (Japan Policy Rates) को शून्य या उसके आसपास रखा और यहां तक कि कभी-कभी ये निगेटिव भी रहीं. इसका कारण था कि जापान खुद को कम ग्रोथ, डिफ्लेशन और जनसांख्यिकीय गिरावट से बाहर निकाल सके. उन्होंने कहा कि बैंक ऑफ जापान (BoJ) ने सरकारी बॉन्ड्स की खरीद की और उधारी की लागत कम रखने का वादा किया. इससे सिस्टम में पैसों की बाढ़ सी आ गई. 

'येन कैरी ट्रेड' की ऐसे हुई शुरुआत
सीएफओ के मुताबिक, इसके पीछे जापान का उद्देश्य कर्ज को सस्ता बनाए रखना था, जिससे कि व्यवसाय और परिवार खर्च व निवेश करने में सक्षम रहें. लेकिन सरकार के इस फैसले ने कुछ और भी बड़ा बनाया, जो एक वैश्विक मध्यस्थता मशीन (Global Arbitrage Machine) और इसी सेटअप से येन कैरी ट्रेड का जन्म हुआ. बता दें कि Yen Carry Trade एक इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी है, जिसमें निवेशक कम ब्याज दर वाली मुद्रा जापानी येन (JPY) में उधार लेते हैं और उच्च ब्याज दरों वाली अन्य मुद्राओं में संपत्ति में निवेश करने के लिए उस धन का उपयोग करते हैं. इसका उद्देश्य दो मुद्राओं के बीच ब्याज दर के अंतर से लाभ कमाना मात्र होता है. 

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इस येन कैरी ट्रेड के तहत निवेशकों ने येन को लगभग शून्य दरों (Japan 0% Interest Rate) पर उधार लिया और पैसे को उन जगहों पर लगाया जहां रिटर्न ज्यादा था, इनमें उभरते बाजार, अमेरिकी शेयर, वैश्विक रियल एस्टेट प्रॉपर्टीज में निवेश शामिल है. कैलकुलेशन बेहद सरल था कि 0% पर उधार लें, 5% कमाएं, स्प्रेड जेब में डालें. जब तक जापान ने ब्याज दरें कम रखीं और येन कमजोर रहा, तब तक व्यापार चलता रहा, लेकिन फिर उलटफेर हुआ और तस्वीर पूरी तरह से बदलने लगी. 

महंगाई बढ़ी, तो उठाना पड़ा ये कदम 
बीते साल मार्च 2024 में महंगाई के लगातार बढ़ने (Japan Inflation) और Yen के बहुत नीचे गिरने के साथ ही बैंक ऑफ जापान (Bank Of Japan) को ब्याज दरें बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा और तेजी से अपनी अल्ट्रा लूज पॉलिसी से कदम पीछे खींचने लगा. इस कदम ने येन कैरी ट्रेड को तोड़ दिया. असर ये हुआ कि निवेशकों ने पोजीशन को अनवाइंड करने के लिए दौड़ लगानी शुरू कर दी और येन की कीमत बढ़ गई, ठीक उसी तरह जैसे 2007 में हुई थी जब इसी तरह की तेजी ने ट्रेड को लगभग पूरी तरह से खत्म कर दिया था. इसका असर जापान की इकोनॉमी (Japan Economy) के पिछड़ने के तौर पर देखने को मिला. 

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मई में जापान से आगे निकला भारत
बीते महीने के आखिरी कारोबारी हफ्ते में भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (World 4th Largest Economy India) बन गया था. नीति आयोग के सीईओ (CEO) बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने यह जानकारी शेयर की थी. उन्होंने नीति आयोग के गवर्निंग काउंसिल की 10वीं बैठक के बाद बताया था कि, 'ग्लोबल और इकोनॉमिक माहौल भारत के अनुकूल बना हुआ है और मैं मैं जब बोल रहा हूं, तब हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी हैं. आज हम 4,000 अरब डॉलर (4 Trillion Dollar Economy) की अर्थव्यवस्था बन चुके हैं.

अब उल्टा असर डाल रहीं पुरानी नीतियां
लौलिक शाह के मुताबिक, जापान अब दो बड़े दबावों के बीच फंस चुका है. एक ओर देश को महंगाई नियंत्रित करना है, तो वहीं दूसरी ओर येन को भी सुरक्षित रखना है. मतलब ब्याज दरों को कम रखना और पूंजी के पलायन का जोखिम उठाना. एनालिस्ट का मानना है कि जापान में अब पुरानी नीतियां काम करती नजर नहीं आ रही हैं. वे इंस्‍ट्रूमेंट जिन्होंने कभी जापान की अर्थव्यवस्था को संभाले हुए थे, अब उल्टा असर दिखा रहे हैं. इनमें शून्य ब्याज दरें, बड़े पैमाने पर बॉन्ड खरीदारी और एक कमजोर मुद्रा शामिल है. लौलिक शाह का कहना है कि यह सिर्फ जापान की समस्या नहीं है, बल्कि यह दशकों से सस्ती तरलता पर बनी ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम के लिए एक चेतावनी भी है, क्योंकि लीवरेज की हमेशा एक कीमत होती है और यह अब सामने आ रही है.

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