रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर हैं. उनकी इस यात्रा पर तमाम देशों की निगाहें टिकी हैं. पिछले दिनों रूसी तेल को मुद्दा बनाकर अमेरिका ने भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था. जिससे भारत से अमेरिकी आयात पर कुछ टैरिफ 50 फीसदी तक बढ़कर हो गया. अमेरिका का कहना है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे.
दरअसल रूस सस्ती कीमत पर भारत को कच्चा तेल दे रहा है, अगर भारत पूरी तरह से रूस से तेल खरीदना बंद करता है तो फिर दूसरे देशों से महंगे भाव पर खरीदना पड़ेगा. अब भारत को फैसला लेना है. लेकिन रूस और भारत की दोस्ती केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, दोनों देशों करीब 7 दशक से एक-दूसरे के लिए मुसीबत में सहारा बना है.
रूसी तेल खरीदने से भारत पर दबाव क्यों?
अब जब रूसी राष्ट्रपति भारत में हैं, उन्होंने इन मसलों पर खुलकर 'आजतक' से बातचीत की है. इस ऐतिहासिक इंटरव्यू में गीता मोहन ने उनसे पूछा कि फिलहाल व्यापार के मोर्चे पर भारत और रूस दोनों पर खासा अंतरराष्ट्रीय दबाव है. खासतौर पर अगर तेल की बात की जाए तो भारत को पश्चिम के दबाव के चलते काफी नुकसान भी उठाना पड़ा. पश्चिम की ओर से पड़ रहे दबाव का सामना भारत और रूस मिलकर कैसे कर सकते हैं?
इसके जवाब में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि आप जिस दबाव की बात कर रहे हैं, वो दरअसल राजनीति का इस्तेमाल कर आर्थिक हितों को साधने की कोशिश है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के साथ हमारे उर्जा सहयोग पर इस तरह के अल्पकालीन राजनीतिक दबाव का असर नहीं पड़ता.
उन्होंने कहा कि भारत के साथ हमारा उर्जा समझौता बहुत पुराना और भरोसे पर टिका है. इसका यूक्रेन में हुई घटनाओं से कोई संबंध नहीं है, बल्कि हमारी एक बड़ी तेल कंपनी ने भारत में एक तेल रिफायनरी का अधिग्रहण किया है. ये किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में अब तक के सबसे बड़े निवेश में से एक है. यहां हमने 20 बिलियन यूएस डॉलर से ज्यादा का निवेश किया. हमारी कंपनी अपने साझेदारों के साथ इस रिफायनरी पर सफलतापूर्वक काम कर रही है.
रूसी तेल नहीं है मसला, पुतिन ने बताई असली वजह
राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि भारत मौजूदा दौर में यूरोप के बाजारों में बड़े स्तर पर तेल सप्लाई कर पा रहा है, क्योंकि वो हमसे सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है. लेकिन इसके पीछे हमारे दशकों पुराने संबंध हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये बात बहुत से लोगों को चुभ रही है, क्योंकि भारत रूस की मदद से तेल के बाजार का एक अग्रणी सप्लायर बन चुका है, और इसलिए वो भारत को नए-नए राजनीतिक हथकंडों से परेशान कर रहे हैं. उसके विकास के रास्ते में रोड़े अटका रहे हैं.
पुतिन से गीता मोहन का अगला सवाल था कि आपने भारत को लेकर रणनीतिक स्वायत्ता की बात की है. भारत के हितों के लिये ये बेहद जरूरी है. क्या भारत ने पश्चिम के दबाव में रूस से तेल की खरीद कम की है?
जिसपर पुतिन का जवाब था कि ये सही है कि साल के पहले 9 महीनों के मुकाबले अब भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कुछ कमी आई है. लेकिन इसे एक तरह के समायोजन के रूप में देखा जाना चाहिए. लेकिन कुल मिलाकर भारत के साथ रूस का व्यापार लगभग पहले जैसा ही है.
पुतिन ने कहा, 'मैं इस समय महीने के हिसाब से सटीक आंकड़े नहीं दे सकता. लेकिन रूस का भारत के साथ हाइड्रोकार्बन्स और तेल को लेकर व्यापार स्थाई रूप से जारी है. मैं इसे लेकर रूसी तेल कंपनियों और हितधारकों का मत अच्छी तरह जानता हूं. वो मानते हैं कि उनके भारतीय साझेदार पूरी तरह से भरोसेमंद हैं.'
अंजना ओम कश्यप / गीता मोहन