गृह मंत्रालय देकर भी क्या नीतीश ने रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखा है? क्यों सम्राट को मिला पावर आधा-अधूरा माना जा रहा

बिहार में एनडीए सरकार गठन के बाद मंत्रिमंडल का भी स्वरूप सामने आ गया है. सीएम नीतीश कुमार ने भले ही गृह मंत्रालय का जिम्मा बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को सौंप दिया हो, लेकिन उनका रिमोर्ट कंट्रोल अपने हाथों में रखा है. जानें कैसे...

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बिहार में  सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Photo-PTI) बिहार में सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:35 PM IST

बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन गई है. कैबिनेट के गठन के बाद मंत्रालयों का बंटवारा भी हो गया है. इस नए मंत्रिमंडल में एक खास बात है- नीतीश सरकार में 2005 से अब तक जूनियर रही बीजेपी अब सीनियर बन गई है. मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या में ही नहीं, बल्कि पावर गेम में भी बीजेपी बीस साबित हुई.

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सियासी हालात इस बार बिहार के बदल गए हैं. बीजेपी 89 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो कैबिनेट में पावर शिफ्टिंग की झलक दिखी. जेडीयू से दो गुना ज्यादा मंत्री बीजेपी कोटे से बनाए गए. दो दशक में पहली बार नीतीश की जेडीयू ने सबसे पावरफुल माना जाने वाला गृह विभाग बीजेपी को दे दिया है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास पहली बार गृह मंत्रालय नहीं है. उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता सम्राट चौधरी को गृह विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है. जेडीयू ने भले ही गृह विभाग बीजेपी को दे दिया हो, लेकिन कंट्रोल अपने हाथ में रखा है. इस तरह बिहार में पावर शिफ्टिंग का अलग ही फॉर्मूला दिख रहा है.

सम्राट चौधरी को क्या फुल पावर नहीं मिला?

बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय का जिम्मा मिलने के बाद उनके पास राज्य की कानून व्यवस्था और पुलिस का कंट्रोल आ गया है. इससे सम्राट चौधरी का सरकार में सियासी कद बढ़ गया है, लेकिन इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन पर पूरा कंट्रोल बीजेपी के पास नहीं गया है. आईएएस और आईपीएस समेत अन्य अफ़सरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग अब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों में है.

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बिहार के गृह मंत्री होने के नाते सम्राट चौधरी प्रशासन के ज़रिए कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने का मोर्चा संभालेंगे, लेकिन उन पर सियासी दबाव नीतीश कुमार का ही होगा. इसकी वजह यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गृह विभाग भले ही सम्राट चौधरी को दिया हो, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग अपने पास रखा है.

सामान्य प्रशासन विभाग एक तरह से हर विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण का केंद्र माना जाता है. राज्य में आईएएस और आईपीएस से लेकर बीएएस और बीपीएस अफ़सरों तक के तबादला, नियुक्ति, प्रमोशन और यहां तक कि अनुशासनात्मक कार्रवाई के काम भी सामान्य प्रशासन विभाग ही करता है, ऐसे में सीएम नीतीश कुमार ने इस विभाग को अपने पास रखा है.

सम्राट चौधरी के सामने कई चुनौतियां

गृह विभाग किसी भी राज्य में चुनौतीपूर्ण मंत्रालय माना जाता है, लेकिन बिहार में यह सीधे परफ़ॉर्मेन्स का मैदान है. गृह मंत्रालय के ज़रिए ही सीएम नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू वाली अपनी छवि बनाने में कामयाबी हासिल की. नीतीश कुमार इसी यूएसपी के सहारे जंगलराज के तिलिस्म को तोड़ा। कानून-व्यवस्था, पुलिस प्रशासन और भ्रष्टाचार नियंत्रण जैसे मामलों पर सीधी पकड़ रखी.

20 साल बाद नीतीश कुमार ने गृह विभाग ज़रूर बीजेपी को सौंप दिया है, लेकिन सामान्य प्रशासन की जिम्मेदारी अभी भी अपने नियंत्रण में रख रखी है. बीजेपी की नज़र लंबे समय से इसी गृह विभाग पर है, जिसे लेकर 2024 में जेडीयू के साथ कई दिनों तक बार्गेनिंग करती रही। उस समय बात नहीं बनी, लेकिन इस बार बीजेपी इसे अपने हाथ में लेने में सफल रही.

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सम्राट चौधरी गृहमंत्री बने हैं और उनके सामने तीन चुनौतियां हैं, जिसमें पहली अपराध नियंत्रण है. सूबे में बीजेपी की उम्मीदों पर खरा उतरना और अपने नेतृत्व की क्षमता साबित करना. अगर वे सफल होते हैं, तो बीजेपी उन्हें बड़े चेहरे के रूप में पेश कर सकती है और अगर फेल होते हैं तो राजनीतिक समीकरण बदलना तय है.

नीतीश के हाथ में सम्राट का रिमोर्ट?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी अब पहले की तुलना में काफी मजबूत स्थिति में है. नीतीश शायद अपने लिए राजनीतिक स्पेस सुरक्षित रखना चाहते हों, जहां से वो भविष्य में दबाव बना सकें. नीतीश ने प्रदेश में होने वाले अपराध पर आलोचना से बचने के लिए गृह विभाग को बीजेपी को सौंप दिया. ऐसे में अगर कानून-व्यवस्था बिगड़ती है, तो अब विपक्ष के निशाने पर बीजेपी होगी, नीतीश कुमार नहीं.

वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग अपने पास रखकर नीतीश कुमार पावर बैलेंस को बनाए रखने की भी स्ट्रेटेजी अपना रहे हैं. गृह मंत्रालय कांटों भरा ताज है, जो नेताओं को चमका देता है और कई बार राजनीतिक करियर भी खत्म कर देता है. नीतीश कुमार के लगातार बिहार के सीएम बनने में इसी विभाग की छवि का बड़ा योगदान था। अब यह विभाग बीजेपी और सम्राट चौधरी के कंधों पर है. देखना होगा कि डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी किस तरह से बीजेपी की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं.

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बिहार में बीजेपी का राजनीतिक मंसूबा

बिहार हिंदी पट्टी का ऐसा राज्य है, जहां पर बीजेपी अभी तक अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी है. इस बार सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद सत्ता का नियंत्रण धीरे-धीरे बीजेपी अपने हाथ में लेना चाहती है. इसके लिए वह अगला सीएम चेहरा तैयार कर रही है. सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम के साथ गृह विभाग देकर अपनी रणनीति को आगे बढ़ा रही है. ऐसे में बिहार की सबसे बड़ी खबर कानून-व्यवस्था का परफ़ॉर्मेन्स होगा.

बीजेपी ने पिछली सरकार में दो उपमुख्यमंत्री, सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को बनाया था। इस बार भी बीजेपी के कोटे में ये दोनों हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पहली बार सम्राट चौधरी को गृह मंत्री भी बनाया गया है. 

 बिहार में अभी तक नीतीश कैबिनेट में जूनियर पार्टनर रही बीजेपी के सबसे ज़्यादा 14 मंत्री हैं, जबकि जेडीयू के सिर्फ आठ मंत्री हैं। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) को दो सीटें मिलीं, जबकि जीतन राम मांझी की हम (एस) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक-एक मंत्री बनाए गए हैं. इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी कैसे बिहार में आत्मनिर्भर बनने ही नहीं, बल्कि सत्ता को भी अपने हाथ में लेने का दांव चल रही है.

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