बिहार: सुपौल में 2 दशक से स्कूल की बिल्डिंग बनने का इंतजार, खुले आसमान में पढ़ने को मजबूर बच्चे

बिहार के सुपौल में दो दशक पुराने स्कूलों की इमारतें आज भी नहीं बन पाई हैं. यहां छात्र-छात्राएं खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं, जहां उन्हें भीषण गर्मी और बारिश का सामना करना पड़ता है. इन स्कूलों में लड़कियों की तादाद लड़कों से ज्यादा है.

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सुपौल में पेड़ के नीचे चलता है स्कूल, स्टूडेंट्स के लिए नहीं है बिल्डिंग (Photo: Amit Bhardwaj/ITG) सुपौल में पेड़ के नीचे चलता है स्कूल, स्टूडेंट्स के लिए नहीं है बिल्डिंग (Photo: Amit Bhardwaj/ITG)

अमित भारद्वाज

  • सुपौल,
  • 29 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:56 PM IST

बिहार के सुपौल जिले में दो दशक से स्कूल की इमारतें नहीं बन पाई हैं, जिसके कारण छात्र खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं. आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट से पता चला है कि नारायणपुर गांव के मुखिया टोला और पीपरा खुर्द पंचायत के मंडल टोला के स्कूलों में छात्र गर्मी, बारिश और सांप जैसे जानवरों के बीच पढ़ते हैं. इन स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है. इन स्कूलों की स्थापना 2006 में हुई थी और यहां लड़कों की तुलना में लड़कियां ज्यादा तादाद में आती हैं.

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सरायगढ़ भपतियाही ब्लॉक के इन स्कूलों में छात्र खुले में पढ़ते हैं. उन्हें तेज गर्मी और भारी बारिश से जूझना पड़ता है. मुखिया टोला के प्राइमरी स्कूल में 184 छात्र-छात्राएं हैं. इसी स्कूल की कक्षा 4 की छात्रा नैना ने बताया कि बारिश होने पर वे और उनकी किताबें भीग जाती हैं. नैना ने कहा कि उन्हें बड़ी बिल्डिंग, पंखा और वॉशरूम चाहिए.

नैना के पिता एक किसान हैं. नैना अगली साल प्राइमरी स्कूल से पास हो जाएगी. उसने कहा अगर सुधार हो जाएगा तो यहां पर हमारे बाद आने वाले बच्चों की पढ़ाई बेहतर होगी. उसके परिवार में उसके बड़े भाई सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ते हैं, जबकि उसकी बड़ी बहन बिहार पुलिस में शामिल होने का सपना देखती है. वे मल्लाह समुदाय से हैं.

सांपों का डर और शिक्षकों की लाचारी...

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क्लास 5 की छात्रा सोनिया सुमन ने बताया कि बारिश के मौसम में सांप आ जाते हैं. वह और उसके दोस्त टीचर्स को बताते हैं, जो इनसे निपटते हैं. मुखिया टोला के स्कूल में छात्रों को बारिश और प्रतिकूल मौसम से बचाने के लिए एक पक्की शेड को अस्थायी 'क्लासरूम' में बदल दिया गया है. यहां का स्टाफ आधे से भी कम है, केवल तीन टीचर्स हैं, जिनमें से एक ट्रेनिंग पर हैं.

टीचर ने बयान किया दर्द की दास्तान...

मुखिया टोला के प्राइमरी स्कूल के हेड बिपिन रे ने कहा, "अगर ये छात्र मजबूत सामाजिक बैकग्राउंड या बड़ी जाति से होते तो अब तक स्थिति में बदलाव आ चुका होता." जब उनसे छात्रों के भविष्य के बारे में पूछा गया, तो वे भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि ये बच्चे क्या बनेंगे. एक और स्कूल, बौलाल मंडल टोला के प्राइमरी स्कूल में भी तीन टीचर मिलकर पांच कक्षाओं को पढ़ाते हैं. यहां भी कोई बिजली कनेक्शन नहीं है.

बिहार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव का पैतृक गांव इसी के पास है. वे सुपौल विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. हालांकि, ये गांव उनके विधानसभा क्षेत्र में नहीं आते, फिर भी ग्रामीणों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं.

 
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