Small Car Sales: नौ साल में 10 लाख से सीधे 25 हजार यूनिट...छोटी कारों की बिक्री में इतनी बड़ी गिरावट कैसे?

Small Car Sales: 5 लाख रुपये से भी कम कीमत में आने वाली एंट्री लेवल कारें, जिनकी बिक्री वित्तीय वर्ष-16 में 10 लाख से ज्यादा यूनिट्स की थी वो वित्तीय वर्ष-25 में घटकर 25,402 यूनिट पर आ गिरी हैं. तो आइये जानत हैं कि, आखिर मडिल क्लास फैमिली की सपना कही जाने वाली छोटी कारें सड़कों से क्यों गायब हो रही हैं.

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Small Cars Sales Decline Small Cars Sales Decline

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2025,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

देश के मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कभी ड्रीम रहीं छोटी या हैचबैक कारें अब सड़कों से तेजी से गायब हो रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह की इनकी बिक्री में भारी गिरावट. बीते कुछ सालों देश भर में एक्सप्रेस-वे और हाईवे के साथ स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल (SUV) सेग्मेंट की कारों की डिमांड इस कदर बढ़ी है कि छोटी कारों के लिए मानों सड़क ही कम पड़ गई है. 5 लाख रुपये से भी कम कीमत में आने वाली एंट्री लेवल कारें, जिनकी बिक्री वित्तीय वर्ष-16 में 10 लाख से ज्यादा यूनिट्स की थी वो वित्तीय वर्ष-25 में घटकर 25,402 यूनिट पर आ गिरी हैं. तो आइये एक नज़र डालते हैं छोटी कारों की बड़ी मुश्किल पर- 

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छोटी कारों का आधा हुआ मार्केट शेयर:

कुल कार बिक्री में हैचबैक कारों की हिस्सेदारी आधी रह गई है, जो 2020 में 47 प्रतिशत से घटकर 2024 में 24 प्रतिशत हो गई है. भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी की हैचबैक कारों की बिक्री 2020 में 771,478 यूनिट से घटकर 2024 में 730,766 यूनिट रही. इस साल भी गिरावट जारी है, कंपनी के मिनी सेगमेंट (ऑल्टो और एस-प्रेसो) की बिक्री में मई में साल-दर-साल 31.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जो पिछले साल की 9,902 यूनिट से घटकर 6,776 इकाई रह गई.

वहीं मारुति सुजुकी के विकल्प के तौर पर देखी जाने वाली और देश की दूसरी सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी हुंडई मोटर इंडिया की हैचबैक कारों की बिक्री भी गिर गई है. साल 2020 में हुंडई ने 1,92,080 यूनिट छोटी कारों की बिक्री की थी जो 2024 में घटकर 1,24,082 यूनिट पर आ गई है.

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चिंतित है ऑटो इंडस्ट्री:

छोटी कारों की घटती डिमांड से वाहन निर्माता चिंतित हैं. मारुति सुजुकी के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी (मार्केटिंग और सेल्स) पार्थो बनर्जी ने 2 जून को मीडिया से बातचीत में कहा, "सरकार अगर ऑटो इंडस्ट्री को बढ़ावा देना चाहती है तो उसे यह समझना होगा कि, समस्या कहां है और छोटी कारों की बिक्री को आखिर कैसे संभाला और बढ़ाया जाए. इसके लिए कुछ प्रोत्साहनों की आवश्यकता है, ताकि जो ग्राहक कार खरीदने में सक्षम नहीं है, वह दोपहिया वाहन से चार पहिया वाहन की ओर रुख कर सके."

वहीं मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने इंडिया टुडे को बताया कि, "2018 तक छोटी कारों की बिक्री अच्छी थी. लेकिन अब कार बाजार का एक बड़ा हिस्सा बढ़ नहीं रहा है. ऑटो सेक्टर पूरी तरह से ग्रोथ तभी करता है जब सभी सेगमेंट बढ़ते हैं." उन्हें चिंता इस बात की है कि अगर इस मुद्दे को हल करने के लिए कुछ नहीं किया गया तो छोटी कारों की बिक्री में गिरावट जारी रहेगी और इससे अंततः कार निर्माताओं को भारी नुकसान होगा.

आखिर क्यों गिर रही है छोटी कारों की बिक्री?

हालांकि छोटी कारों की बिक्री के गिरावट में कई प्रमुख कारण हैं. लेकिन यहां कुछ ख़ास बिंदुओं पर फोकस किया गया है-

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बढ़ती लागत:

आर. सी. भार्गव कहते हैं, "बीते कुछ सालों में जरूरतों और नियमों में होने वाले बदलाव के कारण छोटी कारों की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट पर बड़ा असर पड़ा है. इस साल, हमें कुछ छोटी कारों की कीमत बढ़ानी पड़ी क्योंकि हमने उनमें एयरबैग लगाया. इससे रिटेल सेल्स में गिरावट आई है." केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने छोटी कारों को सुरक्षित बनाने के लिए उनमें 6 एयरबैग (6 Airbags) अनिवार्य कर दिया है. ऐसे में इंडस्ट्री का अनुमान है कि एयरबैग की लागत और जरूरी बदलाव के चलते वाहनों की कीमत तकरीबन 60,000 रुपये तक बढ़ सकती है. 

हालांकि वाहनों में सेफ्टी फीचर्स को बढ़ाने और नए फीचर्स को जोड़ने का असर सभी तरह के वाहनों की कीमत पर पड़ता है. लेकिन हैचबैक और छोटे कारों वाला सेग्मेंट इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है. क्योंकि 5 लाख रुपये से कम बज़ट वाले खरीदारों को ऐसी अतिरिक्त लागतें परेशान कर सकती है. कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि, बज़ट कार बायर्स बढ़ती कीमतों से परेशान हो सकते हैं.

3 साल का अनिवार्य इंश्योरेंस:

ग्राहकों को अब नया वाहन खरीदते वक्त 3 साल का व्हीकल इंश्योरेंस (Car Insurance) अनिवार्य कर दिया गया है. जो कि कार खरीदारी की शुरुआती लागत को और भी ज्यादा कर देता हैं. इंडस्ट्री का मानना है कि, इंश्योरेंस का ये नियम स्वैछिक होना चाहिए. यानी ग्राहक को यह तय करने का मौका मिलना चाहिए कि वो तीन साल की इंश्योरेंस चाहता है या नहीं. वो एक साल के इंश्योरेंस के साथ कार खरीद सकता है और अगले साल बीमा खत्म होने से पहले उसे रिन्यू करा सकता है. जिससे शुरुआती लागत कम होगी.

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रोड टैक्स और GST का बोझ:

कार निर्माता अब केंद्र और राज्य सरकारों से कर का बोझ कम करने और छोटी कारों को अधिक किफायती बनाने की मांग कर रहे हैं। भार्गव कुछ उपाय सुझाते हैं: “सबसे पहले, जीएसटी की समीक्षा करनी होगी और उसे कम करना होगा. दूसरा, रोड टैक्स को सालाना बनाना चाहिए. यदि रोड टैक्स को सालाना हिसाब से बांट दिया जाए तो इससे शुरुआती कार खरीदारी की कीमत में तकरीबन 10 प्रतिशत का सुधार होगा.

महाराष्ट्र में पेट्रोल वाहनों (10 लाख रुपये तक के) पर 11% जीएसटी लगता है, डीजल वाहन पर 13% और सीएनजी वाहन पर 7% जीएसटी लगाया जाता है. वहीं दिल्ली में पेट्रोल (6 लाख रुपये तक), सीएनजी वाहनों पर 5% और डीजल वाहनों पर 6.25% जीएसटी लगता है. वहीं 1200 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली छोटी कारों पर 18% जीएसटी लगता है.

SUV की बढ़ती मांग:

स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल्स यानी SUV कारों का एक वृहद रूप भारतीय बाजार में देखने को मिल रहा है. हमारे बाजार में माइक्रो, मिनी, कॉम्पैक्ट, मिड-साइज और फुल-साइज सहित एसयूवी कारों की एक तगड़ी रेंज मौजूद है. जिसमें मिनी और कॉम्पैक्ट एसयूवी सेग्मेंट सबसे तेजी से ग्रोथ कर रहा है. SUV का नाम, स्पोर्टी लुक, कम कीमत, बेहतर माइलेज जैसे कई कारक हैं जो ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं.

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पिछले कुछ सालों में एसयूवी कारों की बढ़ती डिमांड ने छोटी कारों को लगभग हाशिए पर ला दिया है. ग्राहक सबसे ज्यादा 10 लाख रुपये से कम कीमत वाली SUV कारों को प्राथमिकता दे रहे हैं. यही कारण है कि हर वाहन निर्माता कंपनी कम कीमत में एंट्री लेवल और कॉम्पैक्ट एसयूवी कारों को बाजार में उतारने की रेस में लगी हुई है.

टाटा नेक्सन, मारुति सुजुकी ब्रेज़ा और हुंडई वेन्यू जैसे मॉडलों की मांग में वृद्धि देखी जा रही है. न केवल इसलिए कि उनकी कीमत 10 लाख रुपये से कम है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि खरीदार अब बड़े साइज़ की कारों को पसंद कर रहे हैं. 

अगर बिक्री के आंकड़ों पर नज़र डाले तो एसयूवी की बिक्री 2020 में 7,16,976 यूनिट से बढ़कर 2024 में 23.4 लाख यूनिट हो गई है. जबकि  MPV कारों की बिक्री 2020 में 2,87,663 से बढ़कर 2024 में 5,86,467 यूनिट हो गई है. पिछले साल एसयूवी कारों का मार्केट शेयर 54% रहा है, जो चार साल पहले केवल 29% था.

जेएटीओ डायनेमिक्स के प्रेसिडेंट और निदेशक रवि भाटिया कहते हैं, "जैसे-जैसे आय बढ़ती है और कर्ज (Car Loan) मिलना आसान होता जाता है, कार खरीदार अपमार्केट की ओर रुख करते हैं. लोग ज्यादा सुविधाएँ, अधिक आराम और बेहतर ब्रांड अपील चाहते हैं. कार निर्माताओं को भी ये पसंद आता है. एक अच्छी तरह से फीचर पैक्ड मिड-साइज़ एसयूवी पर पैसा कमाना एक साधारण हैचबैक की तुलना में ज्यादा आसान है."

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बढ़ता सेकंड हैंड बाजार:

कार खरीदार पुरानी कारों की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं. रवि भाटिया कहते हैं, ''आज पांच या छह साल पुरानी कार पहले जैसी नहीं रही. यह सेफ और बेहतर तरीके से बनी है और तकनीक से फीचर पैक्ड है. पहली बार कार खरीदने वालों के लिए यह एक बेहतर विकल्प बन गया है. कम खर्च में ज्यादा बेहतर कार यूज्ड कार मार्केट में उपलब्ध है. इससे नए एंट्री-लेवल मॉडलों की बिक्री प्रभावित होती है.

जानकारों यह भी कहते हैं कि, नई कार पर ज्यादा रकम खर्च करने के बजाय ग्राहक अपने जरूरत के अनुसार कम कीमत में सेंकंड हैंड बाजार में उपलब्ध अच्छी कारों का चुनाव कर रहे हैं. उन्हें नई हैचबैक की कीमत में एक बेहतर कॉम्पैक्ट एसयूवी मिल रही है जो ज्यादा आकर्षक महसूस होती है. पुरानी कारों के बढ़ते बाजार ने भी छोटी कारों की बिक्री को प्रभावित किया है.
 

 

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