बड़े पर्दे पर एक बार फिर रामकथा लाने की तैयारियां जारी हैं. बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर, साउथ की दीवा साई पल्लवी और एक्टर यश को साथ लेकर निर्देशक नीतेश तिवारी रामायणम् बना रहे हैं. फिल्म की शूटिंग जारी है और एक-एक करके मुख्य किरदारों की स्टारकास्ट सामने आ रही है. इसमें रणबीर कपूर श्रीराम, साई पल्लवी सीता, यश- रावण, सनी द्योल-हनुमान, रवि दुबे-लक्ष्मण और खुद अरुण गोविल- महाराज दशरथ का किरदार निभाने जा रहे हैं. फिल्म की बड़ी स्टार कास्ट के बीच अभी हाल ही में सामने आया है अभिनेता अमित सियाल का नाम.
मिर्जापुर, महारानी और कई चर्चित वेब सीरीज में मुख्य भूमिकाएं निभा चुके इस अभिनेता को रामायण जैसे बड़े प्रोजेक्ट में भी अहम किरदार मिला है. खबर है कि सियाल नीतेश तिवारी की रामायणम् में सुग्रीव का किरदार निभाएंगे.
रामायण का अहम किरदार है सुग्रीव
आदिकवि वाल्मीकि की रामायण और संत तुलसीदास की रामचरित मानस में सुग्रीव अहम किरदार है. सुग्रीव वन में श्रीराम से मित्रता करते हैं और सीता माता की खोज के लिए चारों दिशाओं में वानर सेना भेजते हैं. इसलिए इस किरदार को निभाना बड़ी बात होगी. अब बात करते हैं सुग्रीव की पौराणिक कथा पर.
असल में रामायण में सुग्रीव अकेला किरदार नहीं है , बल्कि यह जुड़वा भाइयों की कहानी है जो हमशक्ल भी हैं और हूबहू एकजैसे ही दिखते हैं. कहानी में आता है कि श्रीराम को जब बाली को मारना था तो वह खुद भ्रम में पड़ जाते हैं और पहचान के लिए हनुमान सुग्रीव को वैजयंती फूलों की एक माला पहना देते हैं. इस माला के कारण ही श्रीराम सुग्रीव को पहचान पाते हैं और बाली का छिपकर वध कर देते हैं.
रोचक है बालि और सुग्रीव की कथा
श्रीराम के मित्र बनने से अलग भी सुग्रीव और बाली की कहानी बहुत रोचक है. बाली और सुग्रीव जुड़वा भाई थे और दोनों की सूरत एक सी ही थी, फिर भी समय के थोड़े अंतर के चलते ही बाली बड़ा था और सुग्रीव छोटा. इनके बारे में यह भी किवदंतियां है कि इन दोनों का जन्म मां के गर्भ से नहीं हुआ था. इसके अलावा पौराणिक संदर्भ है कि इनकी माता तो एक थी लेकिन पिता अलग-अलग थे.
कथाओं के मुताबिक, बाली के पिता देवराज इंद्र थे जबकि सुग्रीव के पिता सूर्यदेव थे, लेकिन इनकी माता एक थी. इनकी माता के बारे में कथा है कि वह पुरुष से स्त्री बनी थी. इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कहानी है. ऋक्षराज नाम का एक शक्तिशाली नर वानर था जो ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था. उस वानर को अपने बल का अहंकार था और वह खूब उदंडता किया करता था. एक दिन उदंडता करते हुए वह एक तालाब में कूद गया. ऋक्षराज को पता नहीं था कि वह तलाब शापित है कि जो भी नर उसमें डुबकी लगाएगा वह सुंदर स्त्री बन जाएगी.
सुग्रीव की माता पहले पुरुष थी
ऋक्षराज जब तालाब से निकले तो स्त्री बन चुके थे और अपने स्त्री रूप को देखकर असहज महसूस कर रहे थे. ऋक्षराज अभी अपने रूप को लेकर उलझन में ही थे कि उस बीच देवराज इंद्र की नजर उन पर पड़ गई और वह पुरुष से स्त्री बनी ऋक्षराज के अनुपम सौंदर्य को देखकर कामातुर हो गए. इसी संबंध से एक बालक का जन्म हुआ. बल पूर्वक संबंध बनाने के कारण जन्म होने से वह बाली कहलाया. दंतकथा ऐसी भी है देवराज इंद्र के शरीर से निकलने वाली देव आभा स्त्री के बालों पर पड़ी और बलिष्ठ बालक का जन्म हुआ इसलिए वह बाली कहलाया. हालांकि वह बालक मूलरूप से वानर ही था.
इसी तरह सूर्यदेव भी उसी मार्ग से गुजर रहे थे. उन्हें भी वह स्त्री बहुत मनोहर लगी तो उन्होंने भी उससे संबंध बना लिए. इस संबंध के कारण जो बालक जन्मा वह सुग्रीव कहलाया. कहते हैं सूर्यदेव ने ऋक्षराज से स्त्री बनी उस सुंदरी की सुंदर गर्दन को पहले देखा, इसलिए उनके तेज से सुंदर गर्दन वाले बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम सुग्रीव हुआ.
कैसे पड़े बालि और सुग्रीव नाम?
इस दंतकथा का एक और वर्जन लोक में प्रचलित है. कहते हैं कि जब इंद्र ने स्त्री बने ऋक्षराज से जबरन संबंध स्थापित किए तब उसने खुद को पुरुष ही समझकर उनका बलपूर्वक विरोध भी किया. इसी वजह से बाली बलशाली और गुस्सैल भी था. लेकिन जब सूर्यदेव ने संबंध बनाए तो उनके तेज के आगे ऋक्षराज (स्त्री) टिक न सका, इसलिए सुग्रीव का बल बाली से कुछ कम रहा.
सुग्रीव और बाली दोनों का पालन गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या ने किया, ऐसा भी जिक्र मिलता है. बाद में वह उसी ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचा दिए गए जहां कभी उनकी माता, पुरुष ऋक्षराज के रूप में शासन करते थे.
बालि के पास अपार बल था और साथ ही जो भी उससे युद्ध करता था, उसका आधा बल भी बालि को मिल जाता था. इसके पीछे की वजह इंद्र देव का वरदान ही था. इंद्रदेव ने अपने पुत्र बालि को एक मंत्रयुक्त स्वर्ण माला दी थी. उस माला का ही यह प्रभाव था कि कोई भी बालि के सामने टिक नहीं सकता था. वह सामने वाली की शक्ति खींचकर बालि को ही बलवान बना देती थी.
क्यों हुई बालि और सुग्रीव में लड़ाई
बालि और सुग्रीव में पहले बहुत प्रेम था, लेकिन कई बार क्रोध में बालि विवेक खो बैठता था. एक बार उसका दुंदुभि नामके एक असुर से युद्ध हुआ. बालि ने एक ही पल में दुंदुभि को हराकर उसका खून से लथपथ शरीर उछालकर फेंक दिया. असुर का शव मतंग मुनि के पवित्र आश्रम में पड़ीं तो उन्होंने शाप दिया कि बालि अगर उनके आश्रम के 1 योजन के दायरे में आया तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा.
उधर 1 वर्ष के बाद इसी दुंदुभि का भाई मायावी बालि से लड़ने पहुंच गया. दोनों में घोर युद्ध हुआ. बालि से डरकर असुर एक गुफा में छिप गया. बालि मारे गुस्से के उसी गुफा में घुस गया. सात दिन तक दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. सातवें दिन गुफा से रक्त की धारा बहकर निकलने लगी. अंदर से कोई आवाज भी नहीं आ रही थी. सुग्रीव ने सोचा कि कहीं बालि मारा तो नहीं गया. यह सोचकर उसने गुफा के मुखपर विशाल पत्थर रखकर गुफा द्वार को बंद कर दिया और किष्किंधा आकर सर्वसम्मति से राजा बन गया.
उधर, कुछ दिनों बाद बालि वापस लौट आया और सुग्रीव को राजा बना देखकर आपा खो बैठा. उसने समझा कि सुग्रीव ने राज्य हथियाने के लिए जानबूझ कर उसे गुफा में बंद किया था. उसने सुग्रीव की एक भी बात नहीं सुनी. तब वह सुग्रीव को मारने लगा. भाई के भय से बचकर सुग्रीव मतंग मुनि के आश्रम वाले पर्वत पर भाग आया और तबतक निर्वासित जीवन बिताया, जबतक कि श्रीराम ने बालि का वध नहीं कर दिया.
कौन कर सकता था बालि का वध?
दरअसल, बालि का वध एक सामान्य घटना नहीं थी. यह एक तरह का परीक्षण भी था कि श्रीराम, रावण को मार सकते हैं या नहीं. क्योंकि एक समय बालि ने रावण को अपनी कांख में दबाकर सभी दिशाओं में दौड़ लगाकर सूर्यदेव की कई परिक्रमा लगाते हुए उनकी पूजा की थी. इस कृत्य से रावण बिलबिला गया था.
रावण के अलावा दो ही योद्धा श्रेष्ठ थे. एक कार्तिवीर्य सहस्त्रबाहु अर्जुन जिसका वध परशुराम ने किया था और दूसरा बालि. श्रीराम बालि को मार पाएंगे या नहीं, सुग्रीव ने यह भी जांच की थी. दरअसल ऋष्यमूक पर्वत पर ही प्राचीन सात ताड़ (साल) के वृक्ष थे. सातों एक ही सीध में खड़े थे. इन सातों को एक ही बाण से काट गिराने वाला ही बालि का वध कर सकता था.
श्रीराम ने अपने एक साधारण बाण से ही सातों ताड़ वृक्ष एक ही साथ काटकर गिरा दिए थे. इससे यह संदेह दूर हो गया कि श्रीराम बालि को मार पाएंगे या नहीं. श्रीराम के जीवन में मर्यादा ही मर्यादा कहीं छल नही है, लेकिन बालि वध ही ऐसा एक समय है, जहां श्रीराम छल का सहारा लेते हैं और ओट में रहकर शत्रु को मारते हैं.
कंबन रामायण और आनंद रामायण में आता है कि बालि ही द्वापरयुग में जरा नाम का एक शिकारी बन कर आया था. यह वही शिकारी था, जिसने छिपकर श्रीकृष्ण के पैर में तीर मारा था और इसी वजह से श्रीकृष्ण गोलोकधाम को वापस गए थे. बालि का विवाह सुषेण वैद्य की कन्या तारा से हुआ था.
तारा से कैसे हुआ बालि का विवाह
कुछ पौराणिक संदर्भ यह भी बताते हैं कि तारा देवताओं के गुरु बृहस्पति की पौत्री थी. कथा ऐसी है कि अनुसार समुद्र मन्थन के दौरान चौदह मणियों में से अप्सरा रंभा भी निकली. उस दौरान उसके साथ अप्सराओं का एक समूह भी था जो नृत्य कर रहा था. उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी. बालि और सुषेण दोनों ही मंथन में देवतागणों की मदद कर रहे थे. जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी. बालि तारा के दाहिनी तरफ तथा सुषेण उसके बायीं तरफ खड़े हो गए. तब विष्णु ने फैसला सुनाया कि विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ उसका होने वाला पति तथा बायीं तरफ कन्यादान करने वाला पिता होता है. कन्यादान के बाद ही स्त्री अपने पति के बाईं ओर आती है. इस तरह बालि तारा के पति हुए और सुषेण वैद्य उसके पिता घोषित किए गए.
सुग्रीव की पत्नी कौन थीं?
सुग्रीव का विवाह रूमा नाम की एक गंधर्व कन्या से हुआ था. रामायण में रूमा का जिक्र बहुत अधिक नहीं आता है. सिर्फ इतना ही परिचय मिलता है कि वह सुग्रीव की पत्नी थीं. सुग्रीव का किरदार रामायण में बहुत रोचक है और इसलिए भी इस किरदार की भूमिका बढ़ जाती है,क्योंकि राम-रावण युद्ध में सुग्रीव राम के मुख्य सलाहकार, वानर सेना के अधिपति और श्रीराम के मित्र भी थे. अमित सियाल इस भूमिका को किस तरह से निभाने वाले हैं, फिल्म रिलीज होने पर ही सामने आएगा.
विकास पोरवाल